07 जुलाई 2022

माँ काली

 ।। माँ काली।।

पूरब में जितना ही हमने गौर से समझ पाया, उतना ही हमें दिखाई पड़ा, कुछ बातें दिखाई पड़ी। एक, जन्म मिलता है स्त्री से तो निश्चित ही मृत्यु भी स्त्री से ही आती होगी क्योंकि जहां से जन्म आता है वहीं से मृत्यु भी आती होगी। स्त्री से जब जन्म मिलता है तो मृत्यु भी वहीं से आती होगी। जहां से जन्म आया है, वहीं से जन्म खींचा भी जायेगा।


तुमने देखा, काली की प्रतिमा देखी! काली को मां कहते हैं। वह मातृत्व का प्रतीक है। और देखा गले में मनुष्य के सिरों का हार पहने हुए है! हाथ में अभी-अभी काटा हुआ आदमी का सिर लिए हुए है, जिससे खून टपक रहा है। ’काली खप्पर वाली!' भयानक, विकराल रूप है! सुंदर चेहरा है, जीभ बाहर निकाली हुई है! भयावनी! और देखा तुमने, नीचे अपने पति की छाती पर नाच रही है! इसका अर्थ समझे? इसका अर्थ हुआ कि मां भी है और मृत्यु भी। यह कहने का एक ढंग हुआ—बड़ा काव्यात्मक ढंग है। मां भी है, मृत्यु भी! तो काली को मां भी कहते हैं, और सारा मृत्यु का प्रतीक इकट्ठा किया हुआ है। भयावनी भी है, सुंदर भी है!




स्त्री प्रतीक है। स्त्री से तुम 'स्त्री' मत समझ लेना, अन्यथा सूत्र का अर्थ चूक जाओगे। स्त्री से तुम यह महत्वपूर्ण बात समझना कि स्त्री जन्मदात्री है। तो जहां से वर्तुल शुरू हुआ है वहीं समाप्त होगा।


ऐसा समझो, वर्षा होती है बादल से। पहाड़ों पर वर्षा हुई, हिमालय पर वर्षा हुई, गंगोत्री से जल बहा, गंगा बनी, बही, समुद्र में गिरी। फिर पानी भाप बन कर उठता है, बादल बन जाते हैं। वर्तुल वहीं पूरा होता है जहां से शुरू हुआ था। बादल बन कर ही वर्तुल पूरा होता है।


पूरब में हमने हर चीज को वर्तुलाकार देखा है। सब चीजें वहीं आ जाती हैं। बूढा फिर बच्चे जैसा असहाय हो जाता है। जैसे बच्चा बिना दांत के पैदा होता है, ऐसा बूढा फिर बिना दांत के हो जाता है। जैसा बच्चा असहाय था और मां-बाप को चिंता करनी पड़ती थीं—उठाओ, बिठाओ, खाना खिलाओ—ऐसी ही दशा बूढे की हो जाती है। वर्तुल पूरा हो गया।



जीवन की सारी गति वर्तुलाकार है, मंडलाकार है। स्त्री से जन्म मिलता है तो कहीं गहरे में स्त्री से ही मृत्यु भी मिलती होगी। अब अगर स्त्री शब्द को हटा दो तो चीजें और साफ हो जायेंगी। क्योंकि हमारी पकड़ यह होती है : स्त्री यानी स्त्री।


हम प्रतीक नहीं समझ पाते; हम काव्य के संकेत नहीं समझ पाते। स्त्रियों को लगेगा, यह तो उनके विरोध में वचन है। और पुरुष सोचेंगे, हमें तो पहले ही से पता था, स्त्रियां बड़ी खतरनाक हैं! यहां स्त्री से कुछ लेना-देना नहीं है, तुम्हारी पत्नी से कोई संबंध नहीं है। यह तो प्रतीक है, यह तो काव्य का प्रतीक है, यह तो सूचक है—कुछ कहना चाहते हैं इस प्रतीक के द्वारा।


कहना यह चाहते हैं कि काम से जन्म होता है और काम के कारण ही मृत्यु होती है। होगी ही। जिस वासना के कारण देह बनती है, उसी वासना के विदा हो जाने पर देह विसर्जित हो जाती है। वासना ही जैसे जीवन है। और जब वासना की ऊर्जा क्षीण हो गयी तो आदमी मरने लगता है। बूढे का क्या अर्थ है? इतना ही अर्थ है कि अब वासना की ऊर्जा क्षीण हो गयी; अब नदी सूखने लगी, अब जल्दी ही नदी तिरोहित हो जायेगी। बचपन का क्या अर्थ है? —गंगोत्री। नदी पैदा हो रही है। जवानी का अर्थ है : नदी बाढ़ पर है। बुढ़ापे का अर्थ है : नदी विदा होने के करीब आ गयी; समुद्र में मिलन का क्षण आ गया; नदी अब विलीन हो जायेगी।


कामवासना से जन्म है। इस जगत में जो भी, जहां भी जन्म घट रहा है—फूल खिल रहा है, पक्षी गुनगुना रहे हैं, बच्चे पैदा हो रहे हैं, अंडे रखे जा रहे हैं —सारे जगत में जो सृजन चल रहा है, वह काम-ऊर्जा है, वह सेक्स-एनर्जी है। तो जैसे ही तुम्हारे भीतर से काम-ऊर्जा विदा हो जायेगी, वैसे ही तुम्हारा जीवन समाप्त होने लगा; मौत आ गयी।


मौत क्या है? काम-ऊर्जा का तिरोहित हो जाना मौत है। इसलिए तो मरते दम तक आदमी कामवासना से ग्रसित रहता है, क्योंकि आदमी मरना नहीं चाहता।


इसलिए कामवासना के साथ हम अंत तक घिरे और पीड़ित रहते है। उसी किनारे को पकड़ कर तो हमारा सहारा है। न स्त्रियां उपलब्‍ध हों तो लोग नंगे चित्र ही देखते रहेंगे; फिल्‍म में ही देख आयेंगे जा कर; राह के किनारे खड़े हो जायेंगे; बाजार में धक्‍का-मुक्‍की कर आयेंगे। कुछ जीवन को गति मिलती मालूम होती है। वरना तो लगता है अब ठहरे तब ठहरे।


वासना, काम जीवन है। जीवन का पर्याय है काम। और काम का खो जाना है मृत्‍यु। इसलिए इन दोनों को एक साथ रखा है। काली के प्रतीक के रूप में।


ओशो

3 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी है व्याख्या।काली शक्ति ,परिवर्तन और युद्ध की देवी है।उनका भयानक रूप जीवन की भयावहता का प्रतीक है।जीवन हमेशा सुंदर,सज्जित और सरल
    नही होता ।शिव आनंद का प्रतीक है।यानी जीवन की कठनाइयों से युद्ध करने के लिए अपनी खुशी और आनंद को स्वयं रौंदना पड़ता है।तब जीवन मे परिवर्तन औऱ शक्ति आती है।सौंदर्य व कोमलता दोनों ही आनंदित जीवन से जुड़े है,लास्य एवं काम की उत्पत्ति भी सौंदर्य से उत्पन्न होती है जो जीवन का स्रोत है।इस जीवन चक्र को अबाधित चलाते रहने के लिए भयंकरता ,अन्याय, अधर्म पर नियंत्रण आवश्यक है तथा ये अपनी समस्त ऊर्जा को केंद्रित कर ही संभव हो सकता है।इसलिये काली, काली है उस असीमित ऊर्जा का प्रतीक जिसमे सर्वस्व है।जहाँ कुछ नहीं वो श्वेत होता जहाँ सब रंग समस्त ऊर्जा,वो काला होता है।

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  2. गधा है वाहन काली जी का ...श्रम और धैर्य का प्रतीक

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  3. आपने माँ काली पर ओशो के विचारों को बहुत ही सूक्ष्मता से वर्णित किया है. साधुवाद!

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