18 जुलाई 2020

बिना पढ़े लिखने का सुख

बहुत बार ऐसा होता है कि दिमाग में खूब सारे विचार उमड़ते-घुमड़ते रहते हैं मगर जब लिखने बैठो तो लगता है जैसे सबकुछ साफ़ हो गया है. दिमाग किसी कोरे कागज़ सा नजर आने लगता है जहाँ कुछ भी लिखा नहीं है. लिखने का मन होने के बाद भी कुछ न लिख पाना, विचारों का आधिक्य होने के बाद भी उनको शब्दों का रूप न दे पाना जैसे सामान्य सी घटना हो जाती है. ऐसा बहुत बार उस समय भी होता है जबकि किसी विशेष आयोजन पर कोई साहित्यिक रचना लिखनी हो. किसी अवसर विशेष पर पद्य रचना लिखनी हो. ऐसे समय में लिखने की मुश्किल से लगता है कि अभी और बहुत सारा पढ़ने की आवश्यकता है.


ऐसे विचार आते समय ऐसे बहुत से लोग दिमाग में कौंध जाते हैं जो आये दिन अपने लेखन से परिचय करवाते हैं. अपनी तमाम रचनाओं को सुनाते हुए अपने आपको साहित्यकार की श्रेणी में शामिल बताते हैं. ऐसे में उनकी तारीफ करते हुए यदि जानकरी ली जाये कि वे किसे पढ़ते रहे हैं, हाल-फ़िलहाल किसे पढ़ रहे हैं तो इधर-उधर झाँकने लगते हैं. उनसे जानकारी की जाये कि कौन-कौन सी साहित्यिक रचनाओं को पढ़ा है, किस-किस पुस्तक को पढ़ा है तो वे भौचक से बस मुँह खोले खड़े रह जाते हैं.


हमारी समझ से परे है कि आखिर बिना पढ़े लिखने की आदत कैसे बन जाती है? आखिर बिना कुछ पढ़े लोग लिख भी कैसे लेते हैं?



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#हिन्दी_ब्लॉगिंग

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