19 जुलाई 2020

यादों का हटाया जाना सहज होता तो....

यादें समय-असमय चली आती हैं, कभी परेशान करने तो कभी प्रसन्न करने. इनको आने के लिए न तो किसी से अनुमति की आवश्यकता होती है और न ही इनके आने का कोई समय निर्धारित होता है. क्या घटना है, क्या स्थिति है, कैसी परिस्थिति है इससे भी कोई लेना-देना नहीं, बस इन यादों का मन हुआ और आकर सामने खड़ी हो जाती हैं. अब जबकि ये समय अनलॉक की स्थिति के बाद भी नितांत अपने आपमें ही व्यतीत हो रहा है तब इन यादों ने जैसे दिल-दिमाग पर अपना ही कब्ज़ा कर रखा है. इस समय जीवनशैली नियमित होने के बाद भी, अनुशासित होने के बाद भी कहीं न कहीं थोड़ी सी अनियमित है, थोड़ी सी अनुशासनहीन है. ऐसे में कोई काम पूर्ण मनोयोग से संपन्न नहीं हो पा रहा है. किसी भी काम को करते समय उससे सम्बंधित किसी न किसी तरह की यादें अपना स्वरूप निर्मित कर लेती हैं.



आज की आईएस तकनीकी भरी दुनिया में बहुत सारे इंस्ट्रूमेंट बाजार में उपलब्ध हैं. इनमें से बहुतों के साथ मेमोरी का चक्कर जुड़ा होता है. कई बार उनको कार्यशील बनाये रखने के लिए पुरानी संग्रहित फाइल्स को हटाना होता है, उसमें जमा पुरानी, अनुपयोगी सामग्री को भी हटाना होता है. कई बार मन में आता है कि ऐसा कुछ दिमाग के साथ, दिल के साथ क्यों नहीं है? क्यों इनके साथ ऐसी कोई प्रक्रिया जुड़ी नहीं है जो दिल-दिमाग को भी फोर्मेट कर दे, उसके भीतर जमा अनुपयोगी, बेकार सामग्री को, यादों को हमेशा के लिए डिलीट कर दे.

ऐसा विचार इसलिए आता है क्योंकि हर एक याद ख़ुशी देती हो ऐसा नहीं है. ऐसा भी नहीं है कि हर एक याद का अपना कोई महत्त्व हो. बहुत बार लगता है कि दिमाग, दिल बहुत सी ऐसी यादों को अपने में समेटे है जिनका होना सिर्फ दुःख ही देता है. ऐसी बहुत सी यादें हैं जिनका होना सिर्फ दुःख का कारण होता है. लगता है कि यदि उनका हटाया जाना सहज होता तो शायद बहुत से लोगों का जीवन सुखमय हो सकता था.

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