31 मई 2020

हम जुड़वाँ बन गए थे धोखे से

न हम जुड़वाँ हैं और न ही ये हमारा कोई हमशक्ल है. ये हम ही हैं और एकमात्र हम ही हैं जो इस फोटो में किसी कारण से दो हो गए हैं. एक दिन पुरानी पोस्ट में शामिल इस फोटो पर कई मित्रों ने शंका रखी. ये न जुड़वाँ हैं और न कोई ट्रिक है, न ही हमने फोटोशॉप की है. ये फोटो उस फोटो का रूप है जिसमें हम अपने छोटे भाई के साथ हैं. छोटा भाई तब बहुत ही छोटा था और हम तो छोटे से दिख ही रहे हैं. 


ये बात होगी सन 1976 की. उस समय हमारे एक पारिवारिक परिचित ने फोटोग्राफी का काम शुरू किया था. उन्होंने ही उस समय हम दोनों भाइयों की कुछ फोटो खींची थीं. अब चूँकि आज जैसी स्थिति तो थी नहीं कि दे दनादन कितनी भी फोटो खींच मारो फिर उनमें से कोई चार-छह को अंतिम रूप से चयनित करके बाकी सबको गायब कर दो. उस समय काली-सफ़ेद वाली रील मिलती थी, बहुत गिनी-चुनी फोटो के लिए. ऐसे में दो-चार फोटो खींच ली गईं.

हम खड़े हुए, छोटा भाई कुर्सी पर विराजमान 


फोटो बनकर जब आईं तो ये फोटो सभी को बहुत अच्छी लगी. उसी में सबका विचार बना कि हम दोनों भाइयों की फोटो अलग-अलग बनवा ली जाये. फिर से तैयार करना, स्टूडियो ले जाना, फिर तमाम तरह के पोज बनवाने की कोशिश करना, कैमरे में से चिड़िया निकलने का झूठ बोलना आदि-आदि तामझाम करने से बेहतर नरेन्द्र चाचा (जिनका स्टूडियो था) को ये लगा कि फोटो में से दोनों की फोटो अलग-अलग बना दी जाएँ. बस फिर क्या था, उन्होंने अपनी ट्रिक आजमाई और उसका परिणाम ये हुए कि हम दोनों उस फोटो से अलग-अलग होकर एक-एक फोटो में बन गए और एक फोटो में हम जाने कैसे जुड़वाँ बन गए. वो फोटो आज भी उन तमाम फोटो के साथ एल्बम में लगी हुई है.


जहाँ तक जुड़वाँ की बात है या फिर हमशक्ल होने की बात है तो हमें और हमसे ठीक छोटे भाई, जो इस फोटो में है, को देखकर बहुत लोग धोखा भी खा जाते हैं. यदि हम दोनों एकसाथ हो तो कोई बात नहीं और यदि अलग-अलग हों तो लोगों की समझ से परे होता है पहचानना. हमारे हमशक्ल होने की बात कई लोग कहते हैं मगर कई और लोगों के सन्दर्भ में. कई-कई लोग अपनी-अपनी रुचि के, पसंद के लोगों से हमारे चेहरे से मिलना बताते हैं. क्या, कितना सही है वह उनके ऊपर निर्भर है. बहरहाल, ये तो उस फोटो की छोटी सी कहानी है जिसमें हम ही दो हैं, अपने ही जुड़वाँ बने हुए हैं.

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#हिन्दी_ब्लॉगिंग

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