आज
हमारे जीजा जी-जिज्जी की वैवाहिक वर्षगाँठ है. 46 वर्ष हो गए
इस शुभ अवसर को और देखिये हम भी इस संख्या से कोई आठ महीने आगे ही हैं. उम्र का
इतना बड़ा अंतर होने के कारण जीजा जी से मजाकिया रिश्ता होने के बाद भी कभी मजाक
जैसी स्थिति में नहीं आ सके. उनकी तरफ से जरूर अनेक अवसरों पर मजाक किया जाता रहा
मगर हम बस हँसकर उस मजाक का जवाब दे लेते. उनसे बात करने की हिम्मत भी उस घटना के
बाद हुई जो हमारे जीवन की सबसे बड़ी घटना है. उसके पहले तो हाँ-हूँ, जी-जी के साथ
गिने-चुने शब्दों में बातचीत हो जाया करती थी. बड़ी बहिन की उम्र कितनी भी हो वह
माँ समान स्थिति में ही रहती है. कितनी भी बड़ी हो फिर भी मित्रवत ही रहती है. कुछ
ऐसा ही रिश्ता है जिज्जी के साथ हमारा भी. उनके साथ भी बातचीत भले ही बहुत ही
मर्यादित रूप में होती हो किन्तु कहीं न कहीं वे माँ के रूप में हमारे जीवन में
नजर आती हैं. उनके साथ गुजरे कुछ पल भी हमारे लिए बहुत अनमोल हैं. उनके पास जाने
पर उनके द्वारा एक-एक पल में हमारा ध्यान रखना आज तक याद है. दुर्घटना के समय में
और उसके बाद जिज्जी और जीजा जी का लगातार साथ खड़े रहना, हमारी हिम्मत बने रहना,
हमारी सुविधा से जुड़ी सम्बंधित एक-एक स्थिति पर बारीकी से नजर रखना आज भी ज्यों का
त्यों बना हुआ है.
बहरहाल,
यदि जीजा जी और जिज्जी के हमारे प्रति व्यवहार पर लिखने बैठ गए तो कई-कई वर्ष कम
पड़ेंगे इसलिए उस बात पर आते हैं, जिसके लिए यह पोस्ट लिखनी आरम्भ की है. जैसा कि
इस पोस्ट का आरम्भ उनकी वैवाहिक वर्षगाँठ से किया था तो आपको फिर से बताते चलें कि
उनका विवाह सन 1974 में हुआ, उस समय हम मात्र आठ माह के हुए
थे. सितम्बर 1974 में हम एक साल के होते. स्पष्ट है कि आठ
महीने वाला बालक कितना बड़ा होगा. लोगों की गोद हमारा खेल का मैदान हुआ करती थी. उस
पर भी यदि ननिहाल की जमीन हो तो फिर क्या कहने. उस पर भी सोने में सुहागा ये कि
हमारी अम्मा जी कई-कई भाइयों के बीच अकेली बहिन हुआ करती थीं और ऐसे में हम ही
एकमात्र भांजे, एकमात्र नाती हुआ करते थे अपने मामाओं-मामियों के, नानाओं-नानियों
के. उन दिनों बारात का रुकना कोई आज के जैसे कुछ घंटों के लिए तो होता नहीं था.
जीजा जी भी बारात लेकर आये और बारात का रुकना तीन-चार दिन के लिए हुआ.
अब
मामा-मामियों के लाड़ में हम दूबरे हुए जा रहे थे. सुबह से शाम तक हम कितने-कितने लोगों
के लिए खिलौना बनते कहा नहीं जा सकता. जिसके हाथ में आते वह अपनी तरह से हमें
सजाने-संवारने में लग जाता. राजशाही सा जलवा बना हुआ था. कोई एक कपडा दोबारा तो
धारण करना ही नहीं होता था. ऐसे में कई बार हम लड़कों की पोशाक में नजर आते तो कई
बार फ्रॉक में. एक बार देखने वाला तो जरूर धोखा खा जाये कि अभी लड़के को देखा था या
लड़की को. ऐसे में जीजा जी का धोखा खा जाना भी स्वाभाविक है. उन्होंने तो हमें बस
अपनी वैवाहिक परम्पराओं, संस्कारों का निर्वहन करते ही देखा था. विदाई पश्चात् जब
वे गाँव पहुँचे तो उन्होंने जिज्जी से अपनी शंका का समाधान करना चाहा. उनके मन में
हम अकेले नहीं वरन जुड़वाँ के रूप में विद्यमान थे, एक लड़का और एक लड़की के रूप में.
जिज्जी ने भी उनको परेशान न करते हुए शीघ्र ही समस्या से बाहर निकाल लिया.
इस फोटो की कहानी फिर कभी |
ऐसा
ही संशय, धोखा उस शादी में काम करते हुए हलवाइयों के बीच भी उपस्थित हो गया था. हमारे
एक मामा जी उस समय होटल चलाया करते थे. उन्हीं के सारे कर्मचारी शादी में पकवान
बनाने, खाना बनाने के काम में लगे हुए थे. उन्हीं में एक हलवाई हमें मनोज के नाम
से पुकारा करते थे. वे हमें खूब खिलते भी थे. शादी के बाद भी वे हमसे मिलने घर आते
रहे. शादी के किसी दिन किसी के प्यार-स्नेह के वशीभूत हम लड़कियों के कपड़ों में नजर
आने लगे. हमारे रोने की आवाज़ सुनकर उन्हीं हलवाई ने अपने किसी कर्मी को आवाज़ देकर
कहा कि मनोज के रोने की आवाज़ आ रही है, उठा लाओ. उनके अधीन काम करने वाला व्यक्ति
जाए और खाली हाथ लौट आये. उसके लौटने का कारण इतना होता कि वहाँ मनोज नहीं कोई
लड़की रो रही है. ऐसा जब दो-तीन बार हुआ तो वे हलवाई खुद उठकर आँगन तक आये. वे समझ
गए कि उनका कर्मचारी क्यों नहीं पहचान पा रहा है हमें. उसके बाद उन्होंने सबसे कह
दिया कि जब तक वे लोग वहाँ हैं कोई हमें फ्रॉक वगैरह न पहनाए.
अम्मा
अक्सर ये यादें हम सबके बीच बाँटती रहती हैं. आज अपने भांजे की पोस्ट देखी तो ये
सबकुछ फिर से आँखों के आगे घूम गया.
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#हिन्दी_ब्लॉगिंग
दीदी जीजाजी को बधाई और प्रणाम ,सही कहा बड़ी बहन माँ स्वरूप होती है ,तस्वीर में दोनों ही बच्चे एक समान लग रहे ,बढ़िया पोस्ट
जवाब देंहटाएंदोनों एक ही हैं यानि कि हम.... इस फोटो के बनने की भी एक कहानी है, उसे आगे किसी दिन....
हटाएंरोचक संस्मरण !
जवाब देंहटाएंसंस्मरण की सुन्दर और रोचक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंतम्बाकू निषेध दिवस की शुभकामनाएँ।