03 मार्च 2015

मीडिया, अपराधी और हम


वे बार-बार कुछ न कुछ कहकर ज़ख्मों को कुरेद जाते हैं और हमारी मीडिया इसका प्रचार-प्रसार करते हुए उनको महिमामंडित करने में लग जाती है. एक विदेशी मीडिया द्वारा उस हत्यारे का साक्षात्कार लेना, जिसने न केवल एक लड़की के साथ बलात्कार किया बल्कि उसके साथ वहशियाना हरकतें करते हुए उसे मौत के मुंह में जाने को मजबूर किया, उस मीडिया संस्थान की, साक्षात्कार लेने वाली महिला पत्रकार की अपनी दायित्व-बोध जैसी मजबूरी रही होगी किन्तु भारतीय मीडिया किस मजबूरी में फँसा है कि ऐसी खबर को लगातार प्रसारित-प्रचारित करने में लगा हुआ है? शायद आप समझे हों, बात हो रही है दिल्ली रेप कांड के सजायाफ्ता मुजरिम के साक्षात्कार की. इस साक्षात्कार में वो बिना शर्म-लिहाज के सबक सिखा रहा है कि यदि लड़की कुछ बातों को मान लेती, विरोध न करती तो मारी न जाती, रेप करने के बाद वे लड़की को जिंदा छोड़ देते और लड़के की जरूर पिटाई लगाते. आगे महाशय ये भी समझा रहे हैं कि रात को टहलने वाली लड़कियां बुरी होती हैं. अब समझ ये नहीं आ रहा है कि दोष किसे दिया जाये मीडिया को, जिसने एक हत्यारे को सेलिब्रेटी बनाकर उसका साक्षात्कार लिया अथवा उस हत्यारे की सोच को जिसके लिए किसी भी लड़की की इज्जत का कोई अर्थ नहीं या फिर उस प्रशासनिक व्यवस्था को जिसने एक सजा पाए मुजरिम का साक्षात्कार लेने की अनुमति किसी भी मीडियाकर्मी को दी?
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यदि समूचे घटनाक्रम को देखा जाये तो पहली दृष्टि में प्रशासनिक अमला दोषी नजर आता है, जिसने ऐसे संगीन अपराधी के साक्षात्कार हेतु किसी भी मीडियाकर्मी को अनुमति प्रदान की. समझ से परे है कि वो अपराधी किसी भी रूप में ऐसा व्यक्ति तो नहीं ही है जिसके साक्षात्कार से समाज में कोई सन्देश जाने वाला है या फिर उसके साक्षात्कार से उसका कोई सबल पक्ष सामने आएगा. उस दिल्ली काण्ड के ठीक पहले दिन से ही स्पष्ट हो गया था कि अपराधी मानसिक विकृति वाले इन्सान हैं, जिनके लिए किसी भी देह से हवस मिटाना प्राथमिकता हो सकती है और उनकी गिरफ़्तारी के बाद ऐसा सामने आया भी. अब ऐसे में उस व्यक्ति के साक्षात्कार के द्वारा मीडिया (भले ही विदेशी चैनल हो) क्या दर्शाना चाहती है? क्या इस साक्षात्कार के बहाने उसने मानवाधिकार संगठनों के लिए कोई सन्देश छोड़ने का काम किया है? या फिर वो ये देखना चाहती थी कि भारतीय जेलों में बलात्कार के आरोपी व्यक्तियों के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है? स्पष्ट है कि जब किसी अपराधी की अपनी कोई नीति न हो, अपनी कोई विचारधारा न हो, अपनी कोई राय न हो ऐसे में उसके किसी भी सन्देश का सकारात्मक परिणाम सामने आने वाला नहीं है. ये जानते-समझते हुए भी एक दुर्दांत अपराधी के साक्षात्कार के सामने आने के बाद उसके अलग-अलग प्रभाव सामने आयेंगे, यदि प्रशासन ने साक्षात्कार लेने की अनुमति मीडिया को दी तो ये घनघोर कमी है प्रशासनिक व्यवस्था की.
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अब जबकि विदेशी मीडिया द्वारा लिया गया ये साक्षात्कार भारतीय मीडिया और सोशल मीडिया के कारण से बुरी तरह से फ़ैल चुका है, हम सभी लोगों की जिम्मेवारी है कि इस घटनाक्रम से सबक लेते हुए भविष्य के लिए सचेत रहें. आज जागें और सरकारों को इस बारे में समझाएं कि ऐसे किसी भी काण्ड के आरोपी को नितांत अकेलेपन की सजा मिलनी चाहिए न कि उसके द्वारा अपने कलुषित विचारों को सामने लाने का अवसर दिया जाना चाहिए. जहाँ एक तरफ वैश्विक रूप से भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था की उपेक्षा होती है वहीं सामाजिक रूप से ऐसी घटनाएँ अपना नकारात्मक प्रभाव छोड़ती हैं. ऐसे घटनाक्रमों से उन सभी लोगों की मानसिकता का अंदाज़ा लगाया जाना कदापि कठिन नहीं होगा जो किसी भी रूप में महिलाओं की सुरक्षा के लिए, बच्चियों की सुरक्षा के लिए काम कर रहे हैं. मीडिया जागरूक भले न सही मगर हम सभी को सोशल मीडिया पर ऐसे कृत्यों के विरुद्ध आवाज़ बुलंद करनी ही होगी. भविष्य में अपनी बेटियों के मनोबल को तोड़ने वाली सभी चीजों का विनाश हमें आज ही करना होगा.

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1 टिप्पणी:

  1. भारतीय मीडिया भी टीआरपी पर अधिक ध्यान देने लगा है, इसीलिए इस तरह की ख़बरें दिखाने से पहले वो ज़रा सा भी हिचकिचाता है. सादर..

    नई कड़ियाँ :- आम बजट के कुछ दिलचस्प ज्ञान तथ्य

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