21 फ़रवरी 2010

बेटियों-बहुओं की ह्त्या करने वाले बाघ बचाने में लगे हैं !!!

देश की जनता में एकदम से बाघों को बचाने की होड़ शुरू हो गई है। लिख-लिख कर कागज काले कर डाले (वैसे अब कागज काले करने की जरूरत नहीं ब्लाग जो है) टी-शर्ट पहन डाली और भी जो तमाशा हो सकता था किया। सवाल ये उठता है कि बाघों की ये संख्या एकाएक तो कम नहीं हो गई? 1411 तक आने में बहुत समय लगा होगा किन्तु अब तक किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया।



अब जबकि टी0वी0 पर विज्ञापन दिखाया गया और देश में कई स्थानों पर मुख्य-मुख्य लोगों की दिलचरूपी इस ओर दिखी तो हमें भी लगा कि बाघों को बचाया जाये।

सवाल फिर एक कि बाघों को बचायें कैसे? हमारा वश चले तो बाघों को पाल लें और रोज उनके द्वारा बच्चे पैदा करवाने का विकल्प वैज्ञानिकों और पशु-वैज्ञानिकों को तलाशने को कहें। रोज बच्चे पैदा होगे और बच जायेंगे बाघ।

कितना हास्यास्पद और विद्रूपता से भरा लगता है कि जिस देश में अभी भी कन्या भ्रूण हत्या हो रहीं हों, लगभग रोज ही देश के किसी न किसी कोने में कन्या बचाओ अभियान चलाया जा रहा हो वहाँ हम बाघों को बचाने में इंसान से संवेदनशीलता की आशा लगाये हैं।



एक आँकड़ा बताता है कि देश में स्त्री-पुरुष की संख्या में प्रति हजार लगभग 70 का अन्तर आ चुका है। जिसने भी मूक चीख फिल्म देखी हो (यह एक चिकित्सक द्वारा बनाई गई फिल्म है जिसमें गर्भपात करते समय का दृश्य है, इसमें भ्रूण की हृदय गति बहुत बढ़ गई है। वह अपना छोटा सा मुँह खोल रहा है, उसको दर्द का एहसास हो रहा है आदि-आदि) वह संवेदनशील है तो किसी भी स्थिति में गर्भपात की सलाह नहीं देगा।

ऐसी स्थिति में जबकि हम सभी को पता है कि भ्रूण में जान है, हम उसकी भी हत्या कर देते हैं। इसके अलावा थोड़े से शारीरिक सुख के लिए जिस्मानी सम्बन्ध तो बना लिये जाते हैं बाद में हमारे कूड़े के ढेर बच्चे की कब्रगाह बनते हैं। कभी इन नवजात बच्चों को कुत्ते खाते दिखते हैं तो कभी कौवे नोंचते दिखते हैं। इसके बाद भी शारीरिक सुख के लिए अवैध यौन सम्बन्धों के बनने-बनाने में कोई कमी नहीं आई है।

कितनी बेटियों को मौत की नींद सुला देने के बाद, कितनी बेटियों के साथ भेदभाव करने के बाद, कितनी मन्नतों के बाद एक बेटे का जन्म होता है और उसी बेटे के सुख में हम ग्रहण की तरह लग जाते हैं। उसकी शादी के बाद चन्द सिक्कों की कमी के कारण किसी दूसरे घर की बेटी को, जतन से माँगे और पाले गये अपने बेटे की पत्नी को जला देने, मार डालने तक में नहीं हिचकते हैं।

ये उदाहरण हमारी संवेदनशीलता (?????) को दर्शाते हैं। इसके बाद भी हम बिना शर्म संवेदित हैं जानवरों को बचाने के लिए। हो सकता है कि हमारी इस पोस्ट के बाद हमें पशु विरोधी समझा जाये किन्तु हमारे साथ ऐसा नहीं है। हम भी जानवरों के प्रति, पर्यावरण के प्रति उतना ही चिन्तित रहते हैं जितना आज आप सभी बाघों के प्रति हो रहे हैं।

चलिए यदि जानवरों की बात की जा रही है तो सिर्फ बाघ ही क्यों? क्या अब आपको आसमान में उड़ती चालें दिखती हैं? समाज की गंदगी साफ करने वाले गिद्ध आपने अंतिम बार कब देखे? कोयल की कू-कू आपने कब से नहीं सुनी। नीलकंठ के दर्शन के शुभ संकेत आपको कब से नसीब नहीं हुए? बागों में नाचते मोर देखे हैं पिछले एक-दो वर्ष में? (अरे! बाग ही नहीं तो मोर कहाँ नाचेंगे) बत्तख का तैरना आपके बच्चों ने कहाँ देखा है? इन्हें बचाने का जिम्मा क्या हमारा नहीं है या फिर इनके लिए भी एक टी0वी0 विज्ञापन की आवश्यकता है?

अपने दिमाग की बत्ती जलाइये। एक विज्ञापन में ब्रह्म वाक्य है ‘अपनी अकल लड़ाओ, दिखावे पर मत जाओ’ आप भी उसी का अनुसरण करो।

बाघ बचेंगे उनके जागने से जो बाघों को मारने में लगे हैं, उनको जगाओ। हम तो अभी बेटियों को, बहुओं को मारने में लगे हैं जब इनसे ही फुर्सत पायें तो बाघों को बचाने की ओर ध्यान दें!!!!!


=======================

चित्र गूगल छवियों से साभार

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें