27 फ़रवरी 2010

शासन - प्रशासन - तुष्टिकरण


आज शहर में बारावफात का जुलूस निकलना था और प्रशासन ने पूरी कमर कस ली थी कि शहर के मुख्य मार्ग पर आम आदमी को नहीं चलने देंगे। शहर के बाजार से निकलने वाले जुलूस के लिए इतने इंतजामात किये गये थे कि ऐसा लग रहा था कि कोई जुलूस न हो महामहिम को निकलना हो।


एक हमें ही नहीं बहुतों को इस प्रशासनिक व्यवस्था का शिकार होना पड़ा और अपने-अपने रास्तों को बदलना पड़ा। ऐसा इंतजाम देखकर अपने हिन्दू होने पर भी शर्म आई साथ ही शर्म आई सरकारी अमले की तुष्टिकरण की नीति देखकर।
शहर में हम हिन्दू भी वर्ष में एक-दो बार जुलूस निकालते हैं वो भी जब दुर्गा जी की मूर्तियों का बिसर्जन करना होता है। उस समय प्रशासन द्वारा इस तरह का कोई भी इंतजाम नहीं होता है कि जुलूस के रास्ते से और कोई न गुजरे। इस कारण होता यह है कि दुर्गा बिसर्जन के समय निकलने वाले जुलूस से सभी को परेशानी होती है।
इसके अलावा एक और अंतर हिन्दू-मुस्लिम त्योहारों के समय प्रशासन और शासन स्तर पर देखा गया है। ईद हो अथवा कोई दूसरा मुस्लिम त्योहार, प्रशासनिक अमला, नेतागण अपने-अपने हाथ बाँधे इस इंतजार में खड़े रहते हैं कि कब नमाजी बाहर आयें और वे उसे अपने गले लगा सकें। ऐसा किसी भी हिन्दू पर्व पर देखने को नहीं मिलता है।
आज सवाल कुछ भी नहीं, जवाब भी कोई नहीं, बस सबके साथ अपने दर्द को बाँटना है। हो सकता है कि बहुतों को इस दर्द से कोई वास्ता नहीं हो किन्तु एक हिन्दू होने के नाते ऐसा दर्द होना चाहिए।
हिन्दू जैसा सहिष्णु कदाचित कोई नहीं होगा। ये वहीं हिन्दू है जो पुष्कर में अपना सिर झुकाता है तो अजमेर शरीफ में चादर भी चढ़ाता है। ये वहीं हिन्दू है जो बजरंग वली की जय बोलता है तो या अली भी कहता है। राम को पुकारता है तो रहीम की इबादत भी करता है। इसके बाद भी हिन्दू को साम्प्रदायिक कह कर उसकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ हमेशा से किया जाता रहा है।
एक बात ये सभी को जाननी आवश्यक है और होना भी चाहिए कि विश्व में पैदा होने वाला बच्चा पहले हिन्दू ही होता है बाद में वह किसी और धर्म का बनता है। इसका प्रमुख कारण ये है कि हिन्दू बनने के लिए किसी भी संस्कार की आवश्यकता नहीं होती जबकि अन्य किसी भी धर्म में संस्कार के द्वारा उसको उस धर्म की मान्यता मिलती है। स्वयं मुस्लिम अपने को देखें, खतना की प्रक्रिया के बाद ही मुसलमान बना जाता है। मुसलमानों में पैदा हुआ बच्चा भी जन्म के समय हिन्दू होता है।
बात थी तुष्टिकरण की तो कहने की आवश्यकता नहीं कि ऐसा सभी जगहों पर हो रहा है। यदि याद हो तो वर्ष 2001 में की गई जनगणना में मुस्मिल आबादी को लेकर पेश किये आँकड़ों के बाद मुस्लिम प्रदर्शनों के बाद सरकार को मुसलमानों को लेकर अपने आँकड़े तक बदलने पड़े।
हिन्दू का किसी मुस्लिम से भेदभाव का भाव नहीं है पर शासन और प्रशासन स्तर पर अपनाई जाती नीतियों से भेदभाव पनपने लगता है। इस भेदभाव को दूर करने के लिए स्वयं मुस्लिम समाज को भी आगे आना चाहिए।
ज्यादा दिन नहीं हुए जब इसी तुष्टिकरण के कारण क्रिकेट खिलाड़ियों को लेकर भी बवाल हो चुका है। समझदार को यही इशारा बहुत है।

====================

चित्र गूगल छवियों से साभार


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें