चलो, अब देश के हिन्दू देवी-देवताओं को राहत मिलने की उम्मीद होगी? भले ही राहत पूरी तौर पर न हो किन्तु इस बात पर तो राहत है कि अब भारतीय नागरिकता लिए हुए कोई भारतीय उनके अश्लील चित्र नहीं बनायेगा। अब यदि वह इस तरह के चित्र बनाएगा तो हम उसे विदेशी कहेंगे।
खबर आई कि एम0एफ0हुसैन कतर की नागरिकता ले रहे हैं, अगले ही दिन खबर मिली कि उन्हें कतर की नागरिकता मिली। सच्चाई कितनी है ये तो सरकारी तन्त्र ही जाने किन्तु यदि सही है तो चलो एक ऐसे व्यक्ति से, जो कलाकार होने का दम भरता है किन्तु विकृत मानसिकता से ग्रस्त है, देश को छुटकारा मिल गया।
हमारे एक-दो मित्र ऐसे हैं जो हमारे इस तरह के विचारों को इस कारण पसंद नहीं करते कि हम लेखकों की श्रेणी में आते हैं, हम महाविद्यालय में पढ़ाने जाते हैं, हम कुछ हद तक मीडिया से सम्बन्ध रखते हैं। (कुल मिलाकर तथाकथित बुद्धिजीवी..........हमारी नजर में बुद्धिभोगी) उन मित्रों से हमारी इसी बात पर बहस होती है कि अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता में व्यक्ति को दूसरे का धर्म, दूसरे का परिवार, दूसरे की इज्जत ही क्यों दिखाई देती है? अपनी इज्जत के नाम पर वह कभी अपनी इस स्वतन्त्रता का प्रयोग क्यों नहीं करता?
फिदा हुसैन को भारत का पिकासो कहा जाता है, होंगे किन्तु क्या बस इसी एक दो शब्दों के आधार पर उनके किसी भी अमर्यादित कृत्य को माफ किया जा सकता है?
यहाँ सवाल कदापि हिन्दू-मुस्लिम का नहीं है सवाल है मानसिकता का। हुसैन नाम है जो मुसलमानों के लिए पाक शब्द है, और कलाकार हुसैन की मानसिकता को देखो, उतनी ही नापाक। देवी-देवताओं की अश्लील तस्वीर बनाने वाल हुसैन ने कभी अपने परिवार की महिलाओं की वैसी अश्लील तस्वीर बनाई? क्या ये सभी अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता में शामिल नहीं हैं?
इस समाचार के सत्यता की पुष्टि होने के बाद तो देश के तमाम सारे कलाकार और लाल झंडे में लिपटे संगठन अपना विरोध करेंगे। हो सकता है सबसे पहले शबाना आजमी और जावेद अख्तर जैसों का विरोध प्रदर्शन करना शुरू हो जाये जो छोटे से छोटे मुद्दों को भी अन्तरराष्ट्रीय विवाद का विषय बनाने में महारत हासिल कर चुके हैं।
बहरहाल, राहत है, देश से बाहर तसलीमा भी हैं अब हुसैन भी होंगे। हमें प्रसन्नता इस कारण नहीं कि ये दोनों देश के बाहर है, प्रसन्नता इस कारण से है कि भारत को शरणस्थली समझने की, डस्टबिन समझने की, आरामगाह समझने की भूल इस तरह के लोगों को छोड़नी होगी जो कहीं भी विवाद पैदा करने के बाद भारत की सरकार और जनता पर बोझ बन जाते रहे हैं।
देर आयद, दुरुस्त आयद की तर्ज पर हुसैन का कतर की नागरिकता लेने का निर्णय स्वागत योग्य है। हम सभी को इस तरह के लोगों का स्वागत और अभिनन्दन करना चाहिए।
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क्षमा करिएगा, ऐसे लोगों का चित्र हम अपने ब्लाग पर नहीं लगा सकते। इस बारे में लिख ही दे रहे हैं, इनके लिए यही बहुत बड़ी बात है। इनका यही सम्मान है कि हमने इनके लिए कुछ लिखा.......भले ही कुछ भी लिखा हो।
खबर आई कि एम0एफ0हुसैन कतर की नागरिकता ले रहे हैं, अगले ही दिन खबर मिली कि उन्हें कतर की नागरिकता मिली। सच्चाई कितनी है ये तो सरकारी तन्त्र ही जाने किन्तु यदि सही है तो चलो एक ऐसे व्यक्ति से, जो कलाकार होने का दम भरता है किन्तु विकृत मानसिकता से ग्रस्त है, देश को छुटकारा मिल गया।
हमारे एक-दो मित्र ऐसे हैं जो हमारे इस तरह के विचारों को इस कारण पसंद नहीं करते कि हम लेखकों की श्रेणी में आते हैं, हम महाविद्यालय में पढ़ाने जाते हैं, हम कुछ हद तक मीडिया से सम्बन्ध रखते हैं। (कुल मिलाकर तथाकथित बुद्धिजीवी..........हमारी नजर में बुद्धिभोगी) उन मित्रों से हमारी इसी बात पर बहस होती है कि अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता में व्यक्ति को दूसरे का धर्म, दूसरे का परिवार, दूसरे की इज्जत ही क्यों दिखाई देती है? अपनी इज्जत के नाम पर वह कभी अपनी इस स्वतन्त्रता का प्रयोग क्यों नहीं करता?
फिदा हुसैन को भारत का पिकासो कहा जाता है, होंगे किन्तु क्या बस इसी एक दो शब्दों के आधार पर उनके किसी भी अमर्यादित कृत्य को माफ किया जा सकता है?
यहाँ सवाल कदापि हिन्दू-मुस्लिम का नहीं है सवाल है मानसिकता का। हुसैन नाम है जो मुसलमानों के लिए पाक शब्द है, और कलाकार हुसैन की मानसिकता को देखो, उतनी ही नापाक। देवी-देवताओं की अश्लील तस्वीर बनाने वाल हुसैन ने कभी अपने परिवार की महिलाओं की वैसी अश्लील तस्वीर बनाई? क्या ये सभी अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता में शामिल नहीं हैं?
इस समाचार के सत्यता की पुष्टि होने के बाद तो देश के तमाम सारे कलाकार और लाल झंडे में लिपटे संगठन अपना विरोध करेंगे। हो सकता है सबसे पहले शबाना आजमी और जावेद अख्तर जैसों का विरोध प्रदर्शन करना शुरू हो जाये जो छोटे से छोटे मुद्दों को भी अन्तरराष्ट्रीय विवाद का विषय बनाने में महारत हासिल कर चुके हैं।
बहरहाल, राहत है, देश से बाहर तसलीमा भी हैं अब हुसैन भी होंगे। हमें प्रसन्नता इस कारण नहीं कि ये दोनों देश के बाहर है, प्रसन्नता इस कारण से है कि भारत को शरणस्थली समझने की, डस्टबिन समझने की, आरामगाह समझने की भूल इस तरह के लोगों को छोड़नी होगी जो कहीं भी विवाद पैदा करने के बाद भारत की सरकार और जनता पर बोझ बन जाते रहे हैं।
देर आयद, दुरुस्त आयद की तर्ज पर हुसैन का कतर की नागरिकता लेने का निर्णय स्वागत योग्य है। हम सभी को इस तरह के लोगों का स्वागत और अभिनन्दन करना चाहिए।
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क्षमा करिएगा, ऐसे लोगों का चित्र हम अपने ब्लाग पर नहीं लगा सकते। इस बारे में लिख ही दे रहे हैं, इनके लिए यही बहुत बड़ी बात है। इनका यही सम्मान है कि हमने इनके लिए कुछ लिखा.......भले ही कुछ भी लिखा हो।
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