तीन-चार दिन पहले समाचारों में सुना कि संसद में आरक्षण को दस वर्ष के लिए और बढ़ा दिया गया है। हालांकि ये आरक्षण संसद के लिए है किन्तु विचार यह आया कि क्या देश अब आरक्षण के सहारे ही आगे बढ़ेगा? हम तो कहते हैं अवश्य बढ़े किन्तु क्या वाकई वास्तविक लोगों को इसका लाभ मिल भी रहा है?
देखा जाये तो इसका फायदा उसे बिलकुल भी नहीं हो पा रहा है जिसे इसका लाभ लेना चाहिए। आरक्षण की इस व्यवस्था से हो ये रहा है कि आम सामान्य वर्ग का वह व्यक्ति ज्यादा प्रभावित हो रहा है जिसके पास संसाधन नहीं हैं और दूसरी ओर आरक्षण की मार के कारण वह आगे भी नहीं बढ़ पा रहा है।
एक बहुत छोटा सा उदाहरण अभी सामने आया। यहाँ के एक स्थानीय महाविद्यालय में एम0ए0 में 60 सीटें निर्धारित हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि ज्यादातर विषयों में 60 सीटों में सामान्य वर्ग (सही रूप में कहें तो सवर्ण) के दस-बारह के आसपास ही छात्र प्रवेश ले पा रहे हैं। शेष सीटों पर आरक्षित वर्ग के छात्रों का कब्जा हो गया है। अब बताइये कहाँ रह गया पचास फीसदी आरक्षण का नियम? ऐसे में सवाल उठता है कि अब सामान्य वर्ग का छात्र पढ़ने के लिए कहाँ जाये?
इसके अलावा सामान्य वर्ग में बहुत से छात्र ऐसे हैं जो आर्थिक रूप से बहुत ही कमजोर हैं। उनके पास खाने को धन नहीं है वे पढ़ने के लिए कहाँ से संसाधन जुटायेंगे? ऐसे लोगों के लिए कोई योजना काम नहीं कर रही है।
इसी तरह अन्य उच्च शिक्षा में आरक्षण के कारण प्रवेश को लेकर समस्या बनी रहती है जिससे कई बार उच्चतम अंक लाने के बाद भी सामान्य वर्ग के व्यक्ति का प्रवेश नहीं हो पाता है और कम से कमतर अंक लाने वाला आरक्षित वर्ग का विद्यार्थी प्रवेश लेकर इंजीनियर, डाक्टर बनकर निकलता है। हताशा-निराशा के माहौल में सामान्य वर्ग के अधिकांश विद्यार्थी आत्महत्या तक कर लेते हैं।
इन दिनो यू0पी0 में सरकार की ओर से एक खेल और खेला जा रहा है। यहाँ की शिक्षा व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने की व्यवस्था के लिए महाविद्यालयों में मानदेय प्रवक्ताओं के पदों पर भर्तियाँ की गईं थीं। विगत सपा सरकार में मुलायम सिंह ने एक विधेयक के द्वारा सभी मानदेय प्रवक्ताओं को नियमित करने का प्रयास किया था। अपने प्रयास के पूर्व ही उनकी सरकार चली गई और चुनाव बाद बसपा सरकार ने यू0पी0 में अपने कदम जमाये।
कुछ दिनों तक तो आशा बँधी रही किन्तु अभी इसी सोमवार 02 तारीख को मायावती ने विधानसभा में उक्त विधेयक को समाप्त करने सम्बन्धी प्रस्ताव पेश कर दिया। इस प्रस्ताव के पारित हो जाने पर कोई भी मानदेय प्रवक्ता नियमित नहीं हो सकेगा।
इसके पीछे कारण बताया गया कि इन भर्तियों में आरक्षण का पालन नहीं किया गया है।
बेसिक शिक्षा विभाग में पदोन्नति के लिए भी आरक्षण लागू किये जाने से जूनियर शिक्षक अपने पूर्व के सीनियर शिक्षकों के सीनियर हो गये हैं। और बहुत से उदाहरण हैं जो समाज में वैमनष्यता के बीज बो रहे हैं।
देखा जाये तो इसका फायदा उसे बिलकुल भी नहीं हो पा रहा है जिसे इसका लाभ लेना चाहिए। आरक्षण की इस व्यवस्था से हो ये रहा है कि आम सामान्य वर्ग का वह व्यक्ति ज्यादा प्रभावित हो रहा है जिसके पास संसाधन नहीं हैं और दूसरी ओर आरक्षण की मार के कारण वह आगे भी नहीं बढ़ पा रहा है।
एक बहुत छोटा सा उदाहरण अभी सामने आया। यहाँ के एक स्थानीय महाविद्यालय में एम0ए0 में 60 सीटें निर्धारित हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि ज्यादातर विषयों में 60 सीटों में सामान्य वर्ग (सही रूप में कहें तो सवर्ण) के दस-बारह के आसपास ही छात्र प्रवेश ले पा रहे हैं। शेष सीटों पर आरक्षित वर्ग के छात्रों का कब्जा हो गया है। अब बताइये कहाँ रह गया पचास फीसदी आरक्षण का नियम? ऐसे में सवाल उठता है कि अब सामान्य वर्ग का छात्र पढ़ने के लिए कहाँ जाये?
इसके अलावा सामान्य वर्ग में बहुत से छात्र ऐसे हैं जो आर्थिक रूप से बहुत ही कमजोर हैं। उनके पास खाने को धन नहीं है वे पढ़ने के लिए कहाँ से संसाधन जुटायेंगे? ऐसे लोगों के लिए कोई योजना काम नहीं कर रही है।
इसी तरह अन्य उच्च शिक्षा में आरक्षण के कारण प्रवेश को लेकर समस्या बनी रहती है जिससे कई बार उच्चतम अंक लाने के बाद भी सामान्य वर्ग के व्यक्ति का प्रवेश नहीं हो पाता है और कम से कमतर अंक लाने वाला आरक्षित वर्ग का विद्यार्थी प्रवेश लेकर इंजीनियर, डाक्टर बनकर निकलता है। हताशा-निराशा के माहौल में सामान्य वर्ग के अधिकांश विद्यार्थी आत्महत्या तक कर लेते हैं।
इन दिनो यू0पी0 में सरकार की ओर से एक खेल और खेला जा रहा है। यहाँ की शिक्षा व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने की व्यवस्था के लिए महाविद्यालयों में मानदेय प्रवक्ताओं के पदों पर भर्तियाँ की गईं थीं। विगत सपा सरकार में मुलायम सिंह ने एक विधेयक के द्वारा सभी मानदेय प्रवक्ताओं को नियमित करने का प्रयास किया था। अपने प्रयास के पूर्व ही उनकी सरकार चली गई और चुनाव बाद बसपा सरकार ने यू0पी0 में अपने कदम जमाये।
कुछ दिनों तक तो आशा बँधी रही किन्तु अभी इसी सोमवार 02 तारीख को मायावती ने विधानसभा में उक्त विधेयक को समाप्त करने सम्बन्धी प्रस्ताव पेश कर दिया। इस प्रस्ताव के पारित हो जाने पर कोई भी मानदेय प्रवक्ता नियमित नहीं हो सकेगा।
इसके पीछे कारण बताया गया कि इन भर्तियों में आरक्षण का पालन नहीं किया गया है।
बेसिक शिक्षा विभाग में पदोन्नति के लिए भी आरक्षण लागू किये जाने से जूनियर शिक्षक अपने पूर्व के सीनियर शिक्षकों के सीनियर हो गये हैं। और बहुत से उदाहरण हैं जो समाज में वैमनष्यता के बीज बो रहे हैं।
अब सवाल उठता है कि क्या यह सब सही है? जो लोग इस पक्ष के हैं उनको इसमें कोई बुराई नहीं नजर आती। उनका कहना है कि पहले सवर्णों ने पिछड़ों पर अत्याचार किये हैं यह उसी का फल है।
यदि वाकई ऐसा है तो यह गलत है। हमारे सवर्ण पूर्वजों ने जो किया उसकी सजा पूरे वर्तमान सवर्ण समाज को क्यों? उन सवर्ण नौजवानों का क्या कसूर जिनके पुरखों ने भी कोई जुल्म नहीं किये थे, जो तब भी गरीब थे और आज भी गरीब हैं? फिर भी यदि सब इसी कारण है तो जैसे 1984 के सिख दंगों के लिए वरिष्ठ राजनेता माफी माँग कर बच गये, आपरेशन ब्लू स्टार के लिए माफी माँग लेने से उसके अगुआ को निर्दोष साबित समझा जा रहा है, जलियां वाला बाग हत्याकांड के लिए हम महारानी से माफी की मांग कर रहे थे, ठीक उसी तर्ज पर अपने वर्तमान के तमाम सवर्ण नौजवानों की स्थिति को देख कर हम भी माफी माँगने को तैयार हैं।
(जब देश के बड़े-बड़े दिग्गज माफी मांग कर अपने पूर्व के अत्याचारों से बरी हो सकते हैं तो हम भी हो जायेंगे)
चलो अब कल का सूरज देखते हैं जो हम सवर्णों के लिए नई आजादी लेकर आयेगा। नया सवेरा लेकर आयेगा। शिक्षा, नौकरी, पदोन्नति, रोजगार लेकर आयेगा।
यदि वाकई ऐसा है तो यह गलत है। हमारे सवर्ण पूर्वजों ने जो किया उसकी सजा पूरे वर्तमान सवर्ण समाज को क्यों? उन सवर्ण नौजवानों का क्या कसूर जिनके पुरखों ने भी कोई जुल्म नहीं किये थे, जो तब भी गरीब थे और आज भी गरीब हैं? फिर भी यदि सब इसी कारण है तो जैसे 1984 के सिख दंगों के लिए वरिष्ठ राजनेता माफी माँग कर बच गये, आपरेशन ब्लू स्टार के लिए माफी माँग लेने से उसके अगुआ को निर्दोष साबित समझा जा रहा है, जलियां वाला बाग हत्याकांड के लिए हम महारानी से माफी की मांग कर रहे थे, ठीक उसी तर्ज पर अपने वर्तमान के तमाम सवर्ण नौजवानों की स्थिति को देख कर हम भी माफी माँगने को तैयार हैं।
‘‘मैं कुमारेन्द्र सिंह सेंगर पूर्व में किये अपने सवर्ण बुजुर्गों द्वारा दलितों, पिछड़ों पर किये गये अत्याचार के लिए आज दिनांक 9 अगस्त 2009 को माफी मांगता हूँ। आरक्षण के कोड़े मारना बन्द करके उन गरीब सवर्णों की ओर भी ध्यान दो जो सिर्फ अपने सवर्ण होने की सजा काट रहे हैं। दलितों के मसीहाओ, पुरोधाओ, रहनुमाओ तुम हमारे सवर्ण बुजुर्गों की गलती को क्षमा करना। आज तुम सर्वोपरि हो, आज तुम महान हो, आज तुम सशक्त हो..........मैं तुम्हें झुक कर नमन करता हूँ, माफी मांगता हूँ।’’ |
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(जब देश के बड़े-बड़े दिग्गज माफी मांग कर अपने पूर्व के अत्याचारों से बरी हो सकते हैं तो हम भी हो जायेंगे)
चलो अब कल का सूरज देखते हैं जो हम सवर्णों के लिए नई आजादी लेकर आयेगा। नया सवेरा लेकर आयेगा। शिक्षा, नौकरी, पदोन्नति, रोजगार लेकर आयेगा।
ham sawarno ko hamara alag desh de do. aarkshan yadi takat ki baat hai to haasil karo.sengar saab ham sawarno men hi gaddar hain.
जवाब देंहटाएंआरक्षण समाज में एक नासूर बन गया है। माफ़ी पर सटीक व्यंग्य किया है।
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