मुम्बई की एक घटना आज समाचार पत्र में पढ़ी और उसके प्रत्युत्तर में कुछ लोगों के विचार भी सुने तो लगा कि समाज में संस्कारों, मान्यताओं, विचारों में व्यापक परिवर्तन हो चुका है। समाचार पत्र में छपी घटना शायद किसी को अचम्भित या हतप्रद न करे क्योंकि हमारे समाज में ऐसी घटनायें आम सी हो गयीं हैं। कुछ बाहर आ जा रही हैं और कुछ बाहर नहीं आ पा रहीं हैं।
इन घटनाओं पर आज किसी संस्कृति, सभ्यता, फैशन आदि के बारे में कोई भी विचार नहीं क्योंकि हमारी खुद की परम्परा, संस्कृति, संस्कार की इतनी महान विरासत रही है जब वह ही हम आत्मसात नहीं कर सके तो दुसर की संस्कृति, संस्कारों को दोष क्यों दें।
घटना ये है कि मुम्बई में एक व्यापारी पिता अपनी ही बेटी से नौ साल तक शारीरिक सम्बन्ध बनाये रहा। नौ साल बाद उस इक्कीस वर्षीया लड़की ने पुलिस के पास जाने का साहस जुटाया और अपने पिता का पकड़वा दिया।
नौ साल तक शारीरिक शोषण करवाने के बाद पुलिस में जाने के पीछे का कारण यह बताया गया कि अब वह काम पिपासु पिता अपनी दूसरी पन्द्रह वर्षीया पुत्री के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाने का प्रयास करने लगा था।
हम आपके आसपास इस तरह की एक-दो घटनायें होतीं ही रहने लगीं है (आधुनिकता है भई!) तो जाहिर है कि इस घटना से भी किसी प्रकार की संवेदनशीलता नहीं जगी होगी।
यहाँ बस ये बताना है कि इस घटना के बाद अपनी टिप्पणी देने वाले भी दो-तीन वर्गों में दिखे।
एक वर्ग ने तो पहली लड़की के साहस की प्रशंसा की और पिता को कोसा। (यह वर्ग अधिकाधिक संख्या में होगा।)
दूसरा वर्ग ऐसा था जिसने कम से कम हमें एक बारगी तो चैंका ही दिया। इस वर्ग में अधिकतर की उम्र 40 वर्ष से ऊपर की थी या फिर 25 वर्ष के नीचे की थी। इन लोगों का जो कहना था उसका सार यह है कि
- बड़ी लड़की ने पुलिस के पास इसलिए शिकायत की क्योंकि अब उसका पिता उसकी छोटी बहिन के शरीर में रुचि लेने लगा था।
- उसके पिता को अब उससे शारीरिक सुख की प्राप्ति में आनन्द नहीं आता होगा।
- वह अपनी बहिन को बचाने के लिए या अपने पिता से स्वयं दोनों को बचाने के लिए पुलिस के पास नहीं गई थी बल्कि अपने हिस्से पर अपनी बहिन को कब्जा करते देख जलन में गई थी।
(यहाँ उन शब्दों का प्रयोग नहीं किया गया है जो इन लोगों द्वारा कहे गये थे। भाषा को परिष्कृत कर दिया गया है पर सार यही है।)
इस तरह के संस्कार, संस्कृति और सोच हो गयी है हमारे और हमारे समाज की।
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