अपने मित्रों के साथ बैठे हुए इधर-उधर की बातें हो रहीं थी। कुछ चुनावों को लेकर, कुछ समाज में चल रही गतिविधियों को लेकर। इन्हीं के बीच चर्चा छिड़ गयी विश्वविद्यालय की परीक्षाओं को लेकर। इस बार कुछ अधिक सख्ती होने से छात्र-छात्राओं को नकल करने के सुअवसर प्राप्त नहीं हो पा रहे हैं। लगभग रोज ही कई एक छात्र-छात्राओं को पकड़ कर नोट लगा दिया जाता है। इस चक्कर में एक-दो विद्यार्थियों ने तो अपनी जान तक गँवा दी। समझ नहीं आता कि क्या आदमी की जान इतनी सस्ती है कि जो चाहे ले ले, चाहे वह खुद अपनी जान हो या फिर दूसरे की।
कुछ इसी तरह के विषयों के बीच हल्के-फुल्के विषयों पर भी चर्चा हो गयी। बातों-बातों में बात निकली अनजान बनने की, जानबूझ कर मजा लेने की और अपने आपको सयाना समझने की। ये बातें चुनावों से सम्बन्धित थीं या फिर कुछ आपसी लोगों के व्यक्तिगत विचारों और उनके स्वभाव को लेकर।
इन्हीं बातों के सन्दर्भ में हमारे एक मित्र ने एक चुटकुला सुनाकर हँसाया और लोगों के सयानेपन की, लोगों के जानबूझ कर मजा लेने की आदत को भी आसानी से समझा दिया।
(पढ़ने के लिए यहाँ आयें)
कुछ इसी तरह के विषयों के बीच हल्के-फुल्के विषयों पर भी चर्चा हो गयी। बातों-बातों में बात निकली अनजान बनने की, जानबूझ कर मजा लेने की और अपने आपको सयाना समझने की। ये बातें चुनावों से सम्बन्धित थीं या फिर कुछ आपसी लोगों के व्यक्तिगत विचारों और उनके स्वभाव को लेकर।
इन्हीं बातों के सन्दर्भ में हमारे एक मित्र ने एक चुटकुला सुनाकर हँसाया और लोगों के सयानेपन की, लोगों के जानबूझ कर मजा लेने की आदत को भी आसानी से समझा दिया।
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सुनकर लगा वाकई क्या समाज है? अपनी स्थिति का लाभ लेना चाहता है, उसके सहारे कुछ मजे उड़ाना चाहता है और यदि सयाना बनता है तो खुद ही मात खाता है।
सटीक अभिव्यक्ति . धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंहर तरह के लोग है.आप तो मस्त रहें और ये होली के रंग आपके ब्लॉग पर अभी भी टपके जा रहे हैं-पंचमी निकल चुकी है भाई!! :)
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