क्या हम सब स्मृति लोप का शिकार होते जा रहे हैं? यह सुनकर आपको आश्चर्य भले ही हो रहा हो पर यह सत्य है। इसको हम इस रूप में देख रहे हैं कि हम समय के साथ-साथ अपने पूर्वजों को भूलते-भुलाते जा रहे हैं। पूर्वजों के रूप में सदियों पुराने व्यक्तियों या महापुरुषों की चर्चा नहीं करेंगे, इनके रूप में हम अपने ही परिवार के बुजुर्गों को याद कर लें तो बेहतर है।
याद कीजिए अपने परिवार के किसी बुजुर्ग व्यक्ति का परिवार से हमेशा-हमेशा के लिए हमें छोड़ कर चले जाना। जी हाँ, सही है, उस व्यक्ति का स्वर्गवासी हो जाना। किस प्रकार से परिवार का प्रत्येक सदस्य उसके लिए आँसू बहाता है, किस प्रकार उसकी अंतिम यात्रा के समय भाव-व्हिवल होता है। उसके अंतिम संस्कार के बाद एक-एक दिन उसी की बातें करते बीतता है। प्रत्येक माह उस तिथि विशेष को किसी न किसी रूप में उस व्यक्ति को याद करने की परम्परा विकसित करने का प्रयास करते हैं। प्रत्येक माह किसी न किसी प्रकार से उसकी याद को ताजा करते हैं। होते-होते एक वर्ष भी व्यतीत हो जाता है और हम पुण्य तिथि के नाम पर कोई अच्छा सा कार्यक्रम करते हैं।
धीरे-धीरे यह कार्यक्रम चलता रहता है और साल दर साल इस प्रकार के कार्यक्रम का स्वरूप परिवर्तित होता रहता है। और एक दिन ऐसा भी आता है जब हम उस तिथि को ही विस्मृत करना शुरू कर देते हैं। ऐसा बहुत लम्बे समय के बाद नहीं वरन् दा-तीन सालों के अन्तर में ही होने लगता है। समझ में नहीं आता है कि ऐसा होता क्यों है?
हो सकता है कि सबके साथ ऐसा न होता हो पर ज्यादातर ऐसा ही होता है। हम अपने पारिवारिक दायित्वों और भागदौड़ भरी जिन्दगी में फंस कर अपने आधारों को ही भुला देते हैं। क्या यह स्मृति लोप नहीं है?
17 मार्च 2009
हम स्मृति-लोप का शिकार होते हैं?
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जब हम दुखी या आहत हुआ करते हैं तो हमारे मस्तिष्क में तीव्र गति से नकारात्मक तरंगों का संचार होने लगता है,जिसमे तीव्रता के हिसाब से कतिपय कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं..एक स्वाभाविक प्रक्रिया के अनुसार नवकोशिकाएं उन क्षतिग्रस्त कोशिकाओं का स्थान ले लेती हैं....एक स्वस्थ मनुष्य इसी कारण से दुखद स्मृतियाँ विस्मृत कर जाता है....
जवाब देंहटाएंईश्वर ने मनुष्य को प्राकृतिक रूप में यह सामर्थ्य दिया है कि वह सुखद अनुभूतियों को स्मृति पटल पर संग्रहित संरक्षित रख उर्जा पाया करता है.....जो मनुष्य प्रतिपल दुखद स्मृतियों में डूबा होता है उसे मनोरोगी माना जाता है.
जिसे याद रखना कष्टदायक हो ... उसे भूलना ही अच्छा होता है ... सिर्फ व्यक्ति ही नहीं ... विचारों और भावों के बारे में भी यही मान्यता होनी चाहिए ... इससे हम सही ढंग से जीवन जी पाने में समर्थ होते हैं।
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