18 दिसंबर 2024

समय की माँग है एक देश एक चुनाव

लम्बे समय से देश में एकसाथ चुनाव कराये जाने की चर्चा चलती रही है. एकसाथ चुनाव की प्रक्रिया को लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के सन्दर्भ में लिया जाता रहा है. एकसाथ चुनाव कराने को कांग्रेस सहित अनेक विपक्षी दल सहमत नहीं हैं. उनके द्वारा सरकार के इस कदम का विरोध किया जा रहा है. एकसाथ चुनाव कराये जाने की चर्चाओं, बहस के बीच लोकसभा में यह बिल 198 के मुकाबले 269 मतों से पारित हो गया. कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने मंगलवार को देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के प्रावधान वाले संविधान (129वाँ संशोधन) विधेयक 2024 और उससे जुड़े संघ राज्य क्षेत्र विधि (संशोधन) विधेयक 2024 को लोकसभा में प्रस्तुत किया था.

 

वर्तमान में भले ही देश में एकसाथ चुनाव कराये जाने की प्रक्रिया पर विरोधी स्वर उठ रहे हों मगर ये कोई नवीन अवधारणा नहीं है. संविधान को अंगीकार किए जाने के बाद लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के पहले चुनाव 1951-52 में एक साथ आयोजित किए गए थे. इसके बाद 1957, 1962 और 1967 के तीन चुनाव भी एकसाथ संपन्न हुए थे. ऐसा नहीं है कि सरकार ने एकसाथ चुनाव कराये जाने सम्बन्धी बिल अचानक से लोकसभा में प्रस्तुत कर दिया. सरकार द्वारा सितम्बर 2023 को पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एकसाथ चुनाव कराने पर उच्च स्तरीय समिति का गठन किया था. इस समिति का प्राथमिक उद्देश्य यह पता लगाना था कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एकसाथ चुनाव कराना कितना उचित होगा. इस हेतु सार्वजनिक और राजनैतिक विचारों को आमंत्रित किया गया और भविष्य में एकसाथ चुनाव प्रक्रिया संपन्न करवाए जाने से सम्बन्धित चुनौतियों का विश्लेषण किया गया. समिति की रिपोर्ट के आधार पर ही एकसाथ चुनाव कराये जाने सम्बन्धी बिल का आधार तैयार किया गया. समिति ने एकसाथ चुनाव की व्यवस्था को दो चरणों में लागू किये जाने की सिफारिश की. चूँकि देश में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के साथ-साथ पंचायती चुनावों को भी संपन्न करवाना होता है. इसी को देखते हुए समिति ने सिफारिश की कि पहले चरण में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराये जाएँ. दूसरे चरण में इन चुनावों के संपन्न होने के सौ दिन के भीतर नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनाव एक साथ कराये जाएँ.

 



यह सच है कि भारत जैसे विशाल देश में निर्बाध रूप से निष्पक्ष चुनाव कराना हमेशा से एक चुनौती रहा है. यह चुनौती उस समय और बड़ी हो जाती है जबकि प्रतिवर्ष किसी न किसी राज्य में चुनाव होते रहते हैं. लगातार होते चुनावों के कारण देश सदैव चुनावी प्रक्रिया में बना रहता है. इससे न केवल बहुतायत में प्रशासनिक मशीनरी चुनाव प्रक्रिया में लगी रहती है बल्कि देश पर भारी आर्थिक बोझ भी पड़ता है. ऐसी स्थिति में कई बार लगता है कि एकसाथ चुनाव प्रक्रिया संपन्न होने के कारण देश सहजता से विकास के रास्ते पर चल सकेगा. इस प्रक्रिया के विरोध में यह कह देना कि आज़ादी के बाद के समय में एकसाथ चुनाव संपन्न करवाना इस कारण सहज हुआ था क्योंकि तब जनसंख्या कम थी. आज अधिक जनसंख्या के कारण एकसाथ चुनाव करवाना कठिन होगा. इस विचार के साथ ये याद रखना होगा कि यदि देश की जनसंख्या बढ़ी है तो वर्तमान में तकनीक और अन्य संसाधनों का भी विकास हुआ है. न केवल संचार साधनों का बल्कि परिवहन व्यवस्था में भी क्रांतिकारी विकास हुआ है. ऐसे में आज़ादी के तत्काल वर्षों की तुलना में अब एकसाथ चुनाव करवाना ज्यादा सहज है, आसान है. 

 

एकसाथ चुनाव करवाए जाने की स्थिति में सबसे बड़ा लाभ यह है कि निर्वाचन आयोग द्वारा जारी आदर्श आचार संहिता बहुत लम्बे समय तक लागू नहीं रहेगी. इसके चलते विकास कार्य लम्बी अवधि तक लम्बित नहीं रहेंगे और उनको समय से पूरा किया जा सकेगा. इसके साथ-साथ इससे बार-बार होने वाले चुनावों के कारण भारी-भरकम खर्च में कमी आएगी. संभव है कि एकसाथ चुनाव कराये जाने की स्थिति में धन का अपव्यय रुके और इससे काले धन, भ्रष्टाचार पर भी किसी तरह का अंकुश लग सके. एकसाथ चुनाव करवाया जाना जहाँ देश की राजनैतिक व्यवस्था के लिए, आर्थिक स्थिति के लिए लाभप्रद समझ आ रहे हैं वहीं इसका लाभ नागरिकों को भी मिलेगा. चुनावों के समय सक्रियता से अपना कार्य करने वाले सरकारी कर्मचारियों और सुरक्षा बलों को बार-बार चुनाव ड्यूटी पर लगाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी. इससे जहाँ एक तरफ उनके समय की बचत होगी वहीं दूसरी तरफ वे चुनाव प्रक्रिया में बार-बार सक्रिय रहने के कारण होने वाली शारीरिक, मानसिक थकान से भी बच सकेंगे. ऐसा होने की स्थिति में वे अपने कर्त्तव्यों का पालन भी सही तरीके से कर पायेंगे.

 

एकसाथ चुनाव कराये जाने के विरोधी स्वरों को निश्चित रूप से समिति द्वारा सुना गया होगा, उस पर सकारात्मक रूप से विचार किया गया होगा. प्रथम दृष्टया एक देश एक चुनाव की अवधारणा में कोई बहुत बड़ी कमी नजर नहीं आती है. इसमें कोई दोराय नहीं कि विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र हमारा देश हर समय चुनावी प्रक्रिया में लगा रहता है. एकसाथ चुनाव होने से इस चक्रव्यूह से उसे मुक्ति मिलेगी. अब जबकि लोकसभा में इस सम्बन्ध में बिल पारित हो चुका है, ऐसे में सरकार से और विपक्षी दलों से अपेक्षा यही है कि वे सभी समवेत रूप में चुनावों के इस चक्रव्यूह से देश को निकालने के लिये व्यापक चुनाव सुधार अभियान चलायें. इसके द्वारा राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण पर रोक का प्रयास हो और जनसामान्य में राजनीतिक जागरूकता पैदा करना शामिल हो.


10 दिसंबर 2024

मानवाधिकारों के समक्ष चुनौतियाँ

विश्व मानवाधिकार दिवस को सभी जगहों पर पूरी औपचारिकता, उत्साह के साथ मनाया गया. इस दिन न केवल अपने देश में बल्कि सम्पूर्ण विश्व में किसी न किसी तरह के आयोजन किये गए. कदाचित मानवाधिकार दिवस पर वे देश भी समारोह करते दिखे जो किसी न किसी तरह से युद्ध में, संघर्ष में संलिप्त हैं. संभवतः यही मानवाधिकारों की सबसे बड़ी विडम्बना है कि वैश्विक स्तर पर जिन अधिकारों को लेकर सहमति बनी हुई है उनको लेकर ही वैश्विक स्तर पर सकारात्मक सक्रियता देखने को नहीं मिलती है. मानवाधिकार इसलिए हमारे पास इसलिये हैं क्योंकि हम मनुष्य हैं. राष्ट्रीयता, लिंग, राष्ट्रीय या जातीय मूल, रंग, धर्म, भाषा या किसी अन्य स्थिति के प्रभाव से रहित इन अधिकारों को मानवों के लिए आरोपित किया गया है. इसके पीछे उद्देश्य यही रहा था कि सभी को जीने का अधिकार मिले. इस दृष्टि से मानवाधिकारों में मौलिक, जीवन के अधिकार से लेकर उन अधिकारों को शामिल किया गया है जो जीवन को जीने लायक बनाते हैं. इसमें व्यक्ति को भोजन, शिक्षा, कार्य की स्वतंत्रता, स्वास्थ्य और स्वतंत्रता का अधिकार आदि प्रदान किये गए हैं.

 

यदि उक्त कतिपय अधिकारों पर दृष्टिपात किया जाये तो प्रत्येक व्यक्ति तक इन्हीं अधिकारों की सुगमता नहीं है. सामान्य रूप से भोजन पाने की विवशता, शिक्षा पाने से बहुत बड़े वर्ग का आज भी वंचित रह जाना, जगह-जगह पर बाल-श्रम, बाल शोषण की स्थिति आज भी बनी हुई है, महिलाओं के विरुद्ध घरेलू हिंसा सम्बन्धी वातावरण का निर्मूलन नहीं हो सका है, महिलाओं के, बालिकाओं के शारीरिक शोषण सम्बन्धी घटनाओं में कमी नहीं आई है, दहेज़ हत्या, बलात्कार, ऑनर किलिंग, कन्या भ्रूण हत्या जैसी घटनाओं का समाज में अस्तित्व बना हुआ है, मजदूरों-नौकरों के प्रति अमानवीयता की घटनाएँ होती रहती हैं. न केवल अपने देश में बल्कि वैश्विक स्तर पर सामाजिक विकास की स्थिति में गिरावट आती जा रही है. आज लगभग सभी देश अपने यहाँ गरीबी, बेरोजगारी, जातीय-नस्लभेदी संघर्ष, क्षेत्रीय गुटबाजी, साम्प्रदायिक हिंसा, मानव तस्करी, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, जातिगत भेदभाव आदि समस्याओं से जूझ रहे हैं. इसके अलावा कुपोषण, नशा, सुनियोजित अपराध, भ्रष्टाचार, विदेशी अतिक्रमण, तस्करी, आतंकवाद, असहिष्णुता, धार्मिक कट्टरता आदि बुराइयों का योजनाबद्ध तरीके से सञ्चालन भी मानवाधिकारों के उचित व्यवस्थापन में अवरोधक है.

 



ये सारी स्थितियाँ वे हैं जो एक देश की अंदरूनी स्थिति, परिस्थिति के कारण उत्पन्न होती हैं किन्तु विगत कुछ वर्षों से जिस तरह की स्थितियाँ वैश्विक परिदृश्य में उपजी हैं वे केवल एक देश की आंतरिक नहीं हैं. लम्बे समय से समूचा वैश्विक परिदृश्य किसी न किसी युद्ध के साये में घिरा रहा है. इन युद्धों के कारण अनेक परिवारों ने अपने सदस्यों को खो देने का दर्द सहा है. बहुतायत परिवारों, नागरिकों को पलायन का दंश सहना पड़ा है. बहुत बड़ी संख्या में युद्ध-बंदी अकारण ही यातनाओं को सह रहे हैं. देखा जाये तो इन युद्धों से केवल नागरिक ही नहीं बल्कि सैन्य परिवार भी नकारात्मक रूप से प्रभावित होते हैं. उनके भी मानवाधिकारों का हनन होता है, उनका भी उल्लंघन होता है. असल में युद्ध महज दो देशों के बीच चल रहा संघर्ष मात्र नहीं होता है बल्कि इसका नकारात्मक प्रभाव उसके आसपास तो पड़ता ही है, वैश्विक रूप में भी पड़ता है. युद्ध में संलिप्त दोनों देशों के नागरिकों के हितों, अधिकारों का हनन तो होता ही है इसके साथ-साथ आर्थिक, व्यापारिक, राजनैतिक व्यवस्थाओं में नकारात्मकता आती है. स्पष्ट है कि लम्बे समय से जहाँ एक तरफ मानवाधिकारों की स्थापना की बात की जा रही है वहीं लगातार मानवाधिकारों का उल्लंघन भी हो रहा है. बहुधा देखने में आता है कि मानवाधिकारों का उल्लंघन राज्य द्वारा भी किया जाता है. कई बार ऐसा प्रत्यक्ष रूप में दिखता है तो कई बार अप्रत्यक्ष रूप में. मानवाधिकारों का उल्लंघन एक तरह से राज्य की विफलता कही जाती है. किसी राज्य की सहायक शक्तियों के द्वारा बहुतायत में मानवाधिकार उल्लंघन की घटनाएँ अक्सर होती रहती है.

 

मंच पर बैठकर, माइक के सामने खड़े होकर अधिकारों की बात तो की जाती है मगर न तो उनकी रक्षा के लिए कारगर कदम उठाये जाते हैं और न ही कर्तव्यों की बात की जाती है. सोचने वाली बात ये है कि यदि सभी अधिकार ही माँगते रहेंगे, अधिकारों का मानवों के लिए होना बताते रहेंगे मगर उनके सफल, सकारात्मक क्रियान्वयन के लिए काम नहीं किया जायेगा तो फिर ऐसे मानवाधिकारों के होने का लाभ क्या है? मानवाधिकारों की बात करते समय कभी कोई बात नहीं करता कि वह दूसरे के अधिकारों की रक्षा किस तरह से करेगा. अधिकारों की बात करने के बाद भी एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के प्रति हिंसात्मक सोच, विकृत मानसिकता, शोषण का भाव अपनाने लगता है. अपने लाभ को दरकिनार करते हुए किसी दूसरे के अधिकारों के लिए खड़े होना जीवट का काम है. वर्तमान दौर में जबकि सब एक-दूसरे को मारने-काटने की बात कर रहे हों, सभी स्वार्थ में लिप्त होकर केवल स्व की सोच में संलिप्त हों, कर्तव्यों के स्थान पर अधिकारों को प्राथमिकता दी जा रही हो तब मानवाधिकारों का संकट में घिरा होना नजर आता है, उसके सामने चुनौतियों का उभरना दिखाई देता है.


07 दिसंबर 2024

विकलांगता के साथ व्यावसायिक दृष्टि उचित नहीं

 


ये तस्वीर अक्सर सामने आती रहती है. किसकी है, किसने खींची, कहाँ की है ये जानकारी नहीं.


इस फोटो को देखकर हर बार एक ही ख्याल मन में उभरता है, (सही या गलत होना अलग बात) कि इस चित्र को विशुद्ध व्यावसायिक उद्देश्य से खींचा गया है. उसके बाद इसका उपयोग विशुद्ध भावनात्मक रूप से किया जा रहा है. इसके पीछे का क्या मकसद है, ऐसा क्यों किया जा रहा है पता नहीं.


ऐसा इसलिए कह रहे क्योंकि हमारी जानकारी में कोई भी संस्थान जो कृत्रिम पैर बनाता है, जरूरतमंद को उपलब्ध कराता है वो इस पैर को बिना कवर किये नहीं देता है. इस चित्र में इस व्यक्ति के दोनों कृत्रिम पैर बिना कवर के हैं.


व्यावसायिक लाभ लेने के लिए, भावनात्मक फायदा उठाने की दृष्टि से यदि इस व्यक्ति को कथित रूप में शामिल किया गया है तो हम व्यक्तिगत रूप से इसकी निंदा करते हैं. अभी इसी माह के आरम्भ में विकलांग दिवस पर बड़े-बड़े आदर्श बघारे गए. उनको भी ध्यान देने की आवश्यकता है.

 


04 दिसंबर 2024

प्लास्टिक प्रदूषण रोकने की आवश्यकता

प्लास्टिक प्रदूषण एक वैश्विक समस्या है जिसके लिए वैश्विक प्रतिक्रिया की आवश्यकता है. प्लास्टिक संकट को दूर करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाने के प्रयास विगत कई वर्षों से लगातार संचालित हैं. प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने के लिए वैश्विक स्तर पर एक संधि की दिशा में बातचीत की प्रक्रिया चल रही है. कई वर्षों से संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा (यूएनईए) में प्लास्टिक प्रदूषण एक प्रमुख मुद्दा रहा है. 2017 में यूएनईए ने समुद्री कूड़े और माइक्रोप्लास्टिक पर एक विशेषज्ञ समूह की स्थापना की. सितम्बर 2021 में जिनेवा में आयोजित समुद्री कूड़े और प्लास्टिक प्रदूषण पर पहले मंत्रिस्तरीय सम्मेलन के बाद पेरू और रवांडा ने एक मसौदा प्रस्ताव पेश किया. इस मसौदे को साठ से अधिक सदस्य देशों का समर्थन मिला. इसके बाद दिसम्बर 2021 में जापान ने भी एक वैकल्पिक मसौदा प्रस्ताव पेश किया. यूएनईए की अगली वार्ता के आरम्भ होने के पहले दोनों मसौदों को मिला दिया गया.  मार्च 2022 को यूएनईए में भाग लेने वाले 175 देशों ने एक साथ मिलकर प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय कानून कोअनिवार्य और बाध्यकारी रूप में अपनाए जाने का संकल्प लिया. इसके पश्चात् अंतर्राष्ट्रीय वार्ता समिति (आईएनसी) का गठन किया गया ताकि प्लास्टिक प्रदूषण पर एक कानूनी और बाध्यकारी नीति विकसित की जा सके. प्लास्टिक प्रदूषण पर रोक लगाने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय संधि पर सहमति बनाने के लिए दक्षिण कोरिया के बुसान में अंतर्राष्ट्रीय वार्ता समिति की वैश्विक बैठक बिना किसी समझौते के समाप्त हो गई. इस बैठक में शामिल 175 देशों के प्रतिनिधि प्लास्टिक उत्पादन और वित्त पर रोक लगाने जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर एक सहमति बनाने में विफल रहे. 2022 से कार्य कर रही आईएनसी की यह पाँचवीं बैठक थी.

 



सम्पूर्ण विश्व अनेकानेक संकटों से गुजरने के साथ-साथ पर्यावरण संकट के दौर से भी गुजर रहा है. सत्यता यह है कि यह संकट मनुष्य द्वारा ही उत्पन्न किया गया है. पर्यावरण संकट आज मानव समाज के सामने एक चुनौती के रूप में खड़ा हुआ है. इसके मूल में तमाम कारण होते हुए भी सबसे प्रमुख है इन्सान का विकास की अंधी दौड़ में लगे रहना. मनुष्य के उठते लगभग प्रत्येक कदम से आज पर्यावरण को नुकसान पहुँच रहा है. इसमें भी सबसे ज्यादा नुकसान उसके द्वारा प्रत्येक छोटे-बड़े कामों के लिए उपयोग में लाई जा रही पॉलीथीन से हो रहा है. पॉलीथीन से पर्यावरण को सर्वाधिक नुकसान होता समझ भी आ रहा हैदिख भी रहा है. इसमें पाली एथीलीन के होने के कारण उससे बनने वाली एथिलीन गैस पर्यावरण क्षति का बहुत बड़ा स्त्रोत है. पॉलीथीन में पालीयूरोथेन नामक रसायन के अतिरिक्त पालीविनायल क्लोराइड (पीवीसी) भी पाया जाता है. इन रसायनों की उपस्थिति के कारण पॉलीथीन हो या कोई भी प्लास्टिक उसको नष्ट करना संभव नहीं होता है. जमीन में गाड़नेजलानेपानी में बहाने अथवा किसी अन्य तरीके से नष्ट करने से भी इसको न तो समाप्त किया जा सकता है और न ही इसमें शामिल रसायन के दुष्प्रभाव को मिटाया जा सकता है. यदि इसे जलाया जाये तो इसमें शामिल रसायन के तत्व वायुमंडल में धुँए के रूप में मिलकर उसे प्रदूषित करते हैं. पॉलीथीन को जलाने से क्लोरोफ्लोरो कार्बन गैस धुँए के रूप में वायुमंडल से मिलकर ओजोन परत को नष्ट करती है. इसके साथ-साथ पॉलीथीन को जमीन में दबा देना भी कारगर अथवा उचित उपाय नहीं है क्योंकि यह प्राकृतिक ढंग से अपघटित नहीं होता है इससे मृदा तो प्रदूषित होती ही है साथ ही ये भूमिगत जल को भी प्रदूषित करती है. इसके साथ-साथ जानवरों द्वारा पॉलीथीन को खा लेने के कारण ये उनकी मृत्यु का कारक बनती है. 

 

सबकुछ जानते-समझते हुए भी आज बहुतायत में पॉलीथीन का उपयोग किया जा रहा है. यद्यपि केन्द्रीय सरकार ने रिसाइक्लडप्लास्टिक मैन्यूफैक्चर एण्ड यूसेज रूल्स के अन्तर्गत 1999 में 20 माइक्रोन से कम मोटाई के रंगयुक्त प्लास्टिक बैग के प्रयोग तथा उनके विनिर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया था किन्तु ऐसे प्रतिबन्ध वर्तमान में सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह गए हैं. इसका मूल कारण पॉलीथीन बैग की मोटाई की जांच करने की तकनीक की अपर्याप्तता है. ऐसे में पॉलीथीन के दुष्प्रभाव को रोकने का सर्वाधिक सुगम उपाय उसके पूर्ण प्रतिबन्ध का ही बचता है. पॉलीथीन के द्वारा उत्पन्न वर्तमान समस्या और भावी संकट को देखते हुए नागरिकों को स्वयं में जागरूक होना पड़ेगा. कोई भी सरकार नियम बना सकती हैअभियान का सञ्चालन कर सकती है किन्तु उसे सफलता के द्वार तक ले जाने का काम आम नागरिक का ही होता है.

 

इसके लिए उनके द्वारा दैनिक उपयोग में प्रयोग के लिए कागजकपड़े और जूट के थैलों का उपयोग किया जाना चाहिए. नागरिकों को स्वयं भी जागरूक होकर दूसरों को भी पॉलीथीन के उपयोग करने से रोकना होगा. हालाँकि अभी भी कुछ सामानोंदूध की थैलीपैकिंग वाले सामानों आदि के लिए सरकार ने पॉलीथीन के प्रयोग की छूट दे रखी हैइसके लिए नागरिकों को सजग रहने की आवश्यकता है. उन्हें ऐसे उत्पादों के उपयोग के बाद पॉलीथीन को अन्यत्रखुला फेंकने के स्थान पर किसी रिसाइकिल स्टोर पर अथवा निश्चित स्थान पर जमा करवाना चाहिए. ये बात हम सबको स्मरण रखनी होगी कि सरकारी स्तर पर पॉलीथीन पर लगाया गया प्रतिबन्ध कोई राजनैतिक कदम नहीं वरन हम नागरिकों केहमारी भावी पीढ़ी के सुखद भविष्य के लिए उठाया गया कदम है. इसको कारगर उसी स्थिति में किया जा सकेगाजबकि हम खुद जागरूकसजगसकारात्मक रूप से इस पहल में अपने प्रयासों को जोड़ देंगे.

 

 


30 नवंबर 2024

चाटुकारिता दिवस

 


आज से एक नए दिवस का आरम्भ. चाटुकारिता दिवस का आयोजन अचानक से नहीं बना बल्कि एक सोची-समझी रणनीति के साथ ही इसका आयोजन निर्धारित किया गया. ऐसा करने वाले भली-भांति जानते हैं कि चाटुकारिता में किस तरह का आनंद है, किस तरह का स्वाद है. इस स्वाद में, आनंद में वे पूरी तरह से लहालोट होने का मन बना चुके थे. इसमें किसी तरह की कोई कोर-कसर बाकी रखने का, छोड़ने का भी विचार नहीं था.

 

ऐसे में जबकि चाटुकारिता दिवस मनाये जाने का पूरी तरह से मन बना लिया गया हो तो उसके सन्दर्भों पर भी विचार करना स्वाभाविक है. जब इसके पहलुओं पर विचार किया गया तो जानकारी हुई कि ये चाटुकारिता दिवस एकांगी नहीं है, एकपक्षीय भी नहीं है. इसके एक उच्च पदस्थ के प्रति चाटुकार भाव तो था ही साथ ही दूसरे पदस्थ के प्रति भी चाटुकारी को प्रदर्शित करने का भाव छिपा हुआ था. द्विपक्षीय चाटुकारिता निभाने का आयोजन किया गया था किन्तु उच्चस्तरीय प्रक्रिया में अवरोध आने के कारण एक पक्ष की चाटुकारिता असफल हो गई.

 

जिस हेतु सारा चक्र रचा गया, जिस सन्दर्भ में सारे तामझाम बिठाये गए हों, जिसके लिए चाटुकारिता की सभी हदों को पार कर लिया गया हो वही अदृश्य बना हुआ था. जिस आनंद में, जिस स्वाद में लहालोट होने की मंशा थी, वह कहीं किसी भय के वशीभूत दब गई. चाटुकारी का एक पक्ष निराशा के आगोश में जा चुका था किन्तु दूसरा पक्ष अपने आका को खुस करने में, उसकी चाटुकारी में पूरी तन्मयता से संलिप्त था.

 

कहा जा सकता है कि दूसरे पक्ष ने अपने सतत प्रयासों से अपनी चमचई के बल पर अपनी चाटुकारिता की मंज़िल को प्राप्त कर लिया. चमचत्व सफलता-असफलता के बीच झूल रहा है. इसलिए निश्चित रूप से जल्द ही एक और आयोजन होगा.