22 मार्च 2025

कामुकता, नग्नता का बाज़ार न बन जाये ये समाज

अवैध संबंधों में बाधक बनती पत्नी की हत्या कर लाश को ब्रीफकेस में भरा, प्रेमी के साथ मिलकर पत्नी ने पति की हत्या कर लाश के टुकड़े-टुकड़े करके ड्रम में छिपाया, रील बनाने से मना करने पर माँ ने बेटे की हत्या कर दी, आपत्तिजनक स्थिति में देख लेने पर बेटे ने माँ-बाप को मौत के घाट उतारा जैसी अनेक खबरों से नित्य ही हम सबका सामना होता है. ये दो-चार पंक्तियाँ बानगी हैं आज के समाज की जहाँ ऐसा लग रहा है कि न तो रिश्तों का कोई महत्त्व रह गया है और न ही मर्यादा का कोई स्थान बचा है. बहुसंख्यक लोगों की आँखों से शर्म-लिहाज पूरी तरह से समाप्त हो गई है. ऐसे लोगों द्वारा सगे रक्त-सम्बन्धियों के साथ, अपने परिजनों के साथ दुराचार करने, उनके साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाये जाने का अपराध सहज रूप में किया जाने लगा है. ऐसा महसूस होने लगा है जैसे लोगों के लिए शारीरिकता का, यौन संबंधों का ही महत्त्व रह गया है. उनके लिए जीवन की पूर्णता यौन संतुष्टि प्राप्त करने में ही है. 


समाज का बौद्धिक वर्ग आये दिन ऐसी घटनाओं पर मंचों के माध्यम से, सोशल मीडिया के द्वारा चर्चा कर लेता है किन्तु इसके मूल में जाने का, उसके समाधान का प्रयास नहीं करता है. गौर करिए इक्कीसवीं सदी के आरम्भ होने के कुछ वर्ष पूर्व से ही, जबकि आधुनिकता, वैश्वीकरण, भूमंडलीकरण शब्द सामाजिक आसमान पर तैरने में लगे थे. कालांतर में विकास के नाम पर चली आई तकनीकी क्रांति ने, मोबाइल क्रांति ने समूचे सामाजिक ढाँचे को हिला कर रख दिया. स्त्री-पुरुष संबंधों, पति-पत्नी के आंतरिक संबंधों की गोपनीयता एकदम से फटकर परदे से बाहर आ गई. आधुनिकता के नाम पर, पश्चिमीकरण के नाम पर, वैश्वीकरण के नाम पर नग्नता को, अश्लीलता को, यौन-संबंध को, दैहिक आकर्षण को प्रमुखता दी जाने लगी. किसी समय पारिवारिक नियोजन के लिए अपनाए गए निरोध का परिवर्तनीय उपयोग अवैध संबंधों में अनचाहे गर्भ से बचने के लिए, एचआईवी से सुरक्षित रहने के लिए होने लगा. उस सुरक्षित समझे जाने वाले उपाय के शालीन, शर्म भरे विज्ञापन उन्मुक्त, कामपिपासु मानसिकता का प्रदर्शन करते दिखने लगे.




दैहिक उन्मुक्तता का, वैचारिक फूहड़ता का, कामुकता का चित्रण इसी एक कदम के रूप में सामने नहीं आया बल्कि बहुसंख्यक विज्ञापनों में नजर आने लगा. उत्पाद स्त्रियों का हो या फिर पुरुषों का, वृद्धजनों का हो या फिर बच्चों का, घरेलू सामान हो या फिर पूजा की सामग्री, वस्त्र हों या फिर अधोवस्त्र, शैक्षिक सामग्री हो या फिर सौन्दर्य प्रसाधन सभी के किसी न किसी रूप में स्त्रियों की कामुक, अर्धनग्न छवि को उकेरा जाने लगा. इनके अलावा लाइव शो हों, कॉमेडी शो हो, संगीत का कार्यक्रम हो, बच्चों की नृत्य प्रस्तुति हो ये सब भी द्विअर्थी संवाधों, फूहड़ भाव-भंगिमा का प्रदर्शन करने लगे. ऐसा लगने लगा कि बिना सेक्स के, बिना यौनेच्छा के व्यक्ति का जीवन व्यर्थ है. इस मानसिकता को और अधिक विकृत बनाने के लिए स्मार्टफोन, इंटरनेट का साथ मिल गया. अब हर हाथ में समूची दुनिया घूम रही थी. बच्चे उम्र के बहुत पहले ही स्त्री-पुरुष देह के अगोपन को गोपन कर रहे थे. बंद कमरे से भीतर पति-पत्नी के रूप में सामाजिक मान्यता प्राप्त संबंधों की दैहिक क्रिया को शिक्षण संस्थानों, पार्कों, खेतों आदि के सुनसान में क्रियान्वित किया जाने लगा. इस उच्छृंखल, अशालीन, अमर्यादित जीवन-शैली ने न केवल विवाह संस्था को कमजोर किया बल्कि समूची सामाजिक, पारिवारिक संरचना को ही ध्वस्त सा कर दिया.


परिवार में आपस में ही अविश्वास का माहौल दिखाई देने लगा. आपसी संबंधों में भी संदेह नजर आने लगा. रिश्तों की मर्यादा को तिलांजलि सी दे दी गई. संस्कारों का कहीं अंतिम संस्कार सा कर दिया गया. बहुतेरी सामाजिक गतिविधियाँ देह के इर्द-गिर्द ही घूमने लगीं. वैवाहिक समारोह में संगीत समारोह के नाम पर नग्नता, फूहड़ता ठुमके लगाने लगी तो खेलों में चियर्स लीडर के नाम पर दैहिक प्रदर्शन को थिरकने का अवसर दिया जाने लगा. सोचने वाली बात है कि समाज में देह, यौन सम्बन्ध को केन्द्र-बिन्दु कब, कैसे और क्यों बनाया जाने लगा? क्यों प्रतिभा को शारीरिक आकर्षण के पीछे धकेल दिया गया? क्यों अवैध शारीरिक संबंधों ने मर्यादित रिश्तों को निगल लिया? क्यों देह के आकर्षण ने संस्कारों की बुनियाद को खोखला कर दिया? सेल्युलाइड परदे के विकल्प के रूप में हर हाथ में सिमटी छोटी सी स्क्रीन में चमकते ओटीटी चैनल्स, सोशल मीडिया की रील्स आदि में थिरकती, चमकती, लहराती कामुक नग्न/अर्धनग्न देह पर सामाजिक चिंतन, विमर्श के द्वारा कोई ठोस कदम उठाना होगा. ऐसा न कर पाने की स्थिति में यह समाज संवेदनहीनता, फूहड़ता, कामुकता, नग्नता, अशालीनता का बाज़ार बना नजर आयेगा. 


19 मार्च 2025

अन्तरिक्ष यात्री बने अनुकरणीय उदाहरण

अन्तरिक्ष में फँसने के बाद भारतीय मूल की अमेरिकी अन्तरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स की धरती पर सकुशल वापसी हो गई है. इनके साथ क्रू-9 के दो और अन्तरिक्ष यात्री अमेरिका के निक हेग और रूस के अलेक्सांद्र गोरबुनोव भी आये हैं. सुनीता विलियम्स और उनके सहयात्री बुच विल्मोर को अन्तरिक्ष से लाने वाला स्पेसएक्स का ड्रैगन अंतरिक्ष यान भारतीय समयानुसार 19 मार्च 2025 को प्रातः 3 बजकर 27 मिनट पर फ्लोरिडा तट पर उतरा. 5 जून 2024 को सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर ने नासा और बोइंग के आठ दिन के संयुक्त क्रू फ्लाइट टेस्ट मिशन के लिए बोइंग के अंतरिक्ष यान द्वारा अंतर्राष्ट्रीय अन्तरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) के लिए उड़ान भरी थी. इसका उद्देश्य बोइंग के स्टारलाइनर स्पेसक्राफ्ट द्वारा किसी अन्तरिक्ष यात्री को अन्तरिक्ष में ले जाने और वापस लाने की क्षमता का परीक्षण करना था. अन्तरिक्ष स्टेशन पर मात्र आठ दिन के परीक्षण और खोज के लिए गए इन दोनों अन्तरिक्ष यात्रियों को सम्बंधित यान के थ्रस्टर में आई गड़बड़ी के चलते नौ महीने से ज्यादा समय तक रुकना पड़ा.

 



सुनीता विलियम्स अंतरिक्ष में कुल 286 दिन बिता चुकी हैं. इसके साथ ही वह एक यात्रा में आईएसएस पर सबसे ज्यादा दिन बिताने वाली तीसरी महिला वैज्ञानिक बन गई. एक यात्रा में सबसे अधिक समय बिताने वाली महिला अन्तरिक्ष यात्री के रूप में पहले स्थान पर क्रिस्टीना कोच हैं, जिन्होंने 328 दिन बिताये हैं, वहीं पिग्गी वीटस्न 289 दिन व्यतीत करने के साथ दूसरे स्थान पर हैं. सुनीता विलियम्स अब तक नौ बार स्पेस वॉक कर चुकी है. इस दौरान उन्होंने 62 घंटे 6 मिनट स्पेसवॉक में बिताए हैं. इस मामले में वे पहले स्थान पर हैं. सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर के अन्तरिक्ष स्टेशन से उनको लाने के प्रयास किये गए. तकनीकी और अन्य कारणों से हर बार वापसी के कार्यक्रम को स्थगित करना पड़ा. ऐसी विषम स्थिति के बाद भी सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर ने खुद को सक्रिय बनाये रखा. उन्होंने अंतरिक्ष में नौ महीने से अधिक अवधि तक रहने के दौरान 150 से ज्यादा प्रयोग किए. उन्होंने स्पेस स्टेशन का रखरखाव करने के साथ-साथ स्पेसवॉक करते हुए अंतरिक्ष यान की मरम्मत भी की. अन्तरिक्ष स्टेशन के उपकरणों की मरम्मत करते हुए एनआईसीईआर एक्स-रे टेलीस्कोप पर लाइट फिल्टर लगाए और एक अंतरराष्ट्रीय डॉकिंग एडेप्टर पर एक रिफ्लेक्टर डिवाइस को भी बदला.

 

अब जबकि दोनों अन्तरिक्ष यात्री धरती पर वापस लौट आये हैं तब भी उनकी दिक्कतें दूर होने वाली नहीं हैं. लौटने के बाद उन दोनों को बेबी फीट समस्या का सामना करना पड़ेगा, जिस कारण चलने में परेशानी होगी. लम्बे समय तक अंतरिक्ष में रहने के कारण पैर की ऊपरी मोटी चमड़ी खत्म हो जाती है. इससे पैर छोटे बच्चों की तरह मुलायम और कमजोर हो जाते हैं. जीरो गुरुत्वाकर्षण के कारण पैर कमजोर होने लगते हैं, चलने-फिरने, संतुलन बनाने में परेशानी होती है. इसके अलावा मनोवैज्ञानिक समस्याओं, बेचैनी, अवसाद, बोलने में दिक्कत जैसी अनेक समस्याएँ सामने आती हैं. इसके चलते सामान्य जीवन स्थिति आने में काफी समय लग सकता है.

 



इस तरह की अनेकानेक समस्याओं का सामना करने में, उनसे उबरने में अब दोनों अन्तरिक्ष यात्रियों को संभवतः उतनी मानसिक परेशानी नहीं होगी, जितनी कि अन्तरिक्ष में रहते हुए हुई होगी. यहाँ तो वे दोनों अब अपने परिजनों की देखभाल में, योग्य चिकित्सकों की निगरानी में, धरती के वातावरण में रहते हुए खुद को सामान्य बनाने का प्रयास करेंगे. विचार करिए अन्तरिक्ष की उस स्थिति का जहाँ न तो पृथ्वी जैसा वातावरण है, जहाँ जीरो गुरुत्वाकर्षण वाली असामान्य स्थिति है, नितान्त अकेलेपन के बीच सिर्फ मशीनों का साथ है. इन दोनों अन्तरिक्ष यात्रियों से आज के उन युवाओं को, उन अनेकानेक लोगों को सीख लेने की आवश्यकता है जो जरा-जरा सी स्थिति में खुद को तनावग्रस्त कर लेते हैं. किसी भी छोटी सी समस्या को अपने जीवन से बड़ा मानते हुए अपने जीवन को समाप्त कर लेते हैं. किसी भी एक-दो असफलताओं के कारण हताशा-निराशा में, अवसाद में चले जाते हैं.

 

निश्चित ही इन दोनों अन्तरिक्ष यात्रियों का मानसिक स्तर, उनकी मानसिक शक्ति अत्यंत प्रबल रही होगी क्योंकि अन्तरिक्ष स्टेशन के लिए उड़ान भरते समय दोनों के मन-मष्तिष्क में स्पष्ट रूप से सिर्फ आठ दिन रुकने का भाव रहा होगा जबकि उनको नौ महीने से अधिक समय तक रुकना पड़ गया. इस तरह की स्थिति निश्चित रूप से अवसाद पैदा करने वाली हो सकती थी मगर दोनों अन्तरिक्ष यात्रियों ने खुद को अपने काम में लगा दिया. अन्तरिक्ष के अकेले वातावरण में खुद को किसी भी तरह की नकारात्मकता से दूर रखने के लिए उनका मिशन सम्बन्धी कामों में लगे रहना, अन्तरिक्ष सम्बन्धी भावी स्थितियों के लिए नए विकल्पों की तलाश करना उनकी जिजीविषा को दर्शाता है. शारीरिक और मानसिक रूप से खुद को स्वस्थ रखने के लिए उनके द्वारा खान-पान के साथ-साथ योग, व्यायाम पर भी ध्यान दिया गया. आज अवसरों की अनुपलब्धता, सकारात्मक वातावरण की कमी का होना, कार्य स्थितियों का अनुकूल न होना आदि समस्याओं की चर्चा करना आम बात है. ऐसे में इन दोनों अन्तरिक्ष यात्रियों को अनुकरणीय उदाहरण के रूप में स्वीकार्य होना चाहिए. ये आवश्यक नहीं कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए समाज में अनुकूल वातावरण, सकारात्मक परिस्थितियाँ, सहयोगात्मक भूमिका आदि की उपस्थिति रहे. ऐसे में व्यक्ति को अपनी मानसिक स्थिति को, आत्मविश्वास को सकारात्मक रूप से सशक्त बनाये रखने की दिशा में काम करना चाहिए. परिस्थितियों का रोना रोने से बेहतर है कि उनको सुधारने  का प्रयास करना चाहिए. निस्संदेह दोनों अन्तरिक्ष यात्रियों की सकुशल वापसी के वैज्ञानिक क्षेत्र में नासा का सफल अभियान है, इसी तरह सामाजिक क्षेत्र के लिए दोनों अन्तरिक्ष यात्रियों की मानसिक शक्ति, जिजीविषा, आत्मविश्वास अनुकरणीय उदाहरण है.  


11 मार्च 2025

स्वतंत्र होने की राह पर बलूचिस्तान?

पाकिस्तान में ट्रेन अगवा करने की खबर से बलूचिस्तान चर्चा में है. यहाँ के अलगाववादी संगठन बलूचिस्तान लिब्रेशन आर्मी (बीएलए) के लड़ाकों ने 500 यात्रियों को क्वेटा से पेशावर ले जा रही जफर एक्सप्रेस को अगवा कर लिया. उन्होंने ट्रेन में सवार महिलाओं, बुज़ुर्गों, बच्चों और बलूच लोगों को सुरक्षित रिहा कर दिया किन्तु 20 सुरक्षाकर्मियों को मार दिया तथा सैकड़ों यात्रियों को बंधक बना लिया है. बीएलए ने ट्रेन के बंधकों को छोड़ने के बदले बलूच राजनीतिक कैदियों और गायब किए गए व्यक्तियों की बिना शर्त रिहाई की माँग की है. इस घटना के बाद भारत, पाकिस्तान सहित अन्य देशों में बलूच लड़ाकों, बलूचिस्तान का नाम फिर चर्चा में है. भारत में इससे पहले अगस्त 2016 में बलूचिस्तान का मुद्दा जबरदस्त तरीके से चर्चा में आया था जबकि भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लाल किले से अपने भाषण में बलूच नागरिकों पर पाकिस्तान के अत्याचारों का जिक्र किया था. बलूच एक जातीय समूह है जो बलूचिस्तान के मूल निवासी हैं. यह क्षेत्र पाकिस्तान, ईरान और अफगानिस्तान तक फैला हुआ है. इनका आरोप है कि पाकिस्तान उनके प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रहा है और बदले में उनके मौलिक अधिकारों का हनन कर रहा है. इस कारण बलूचिस्तान में लगातार विरोध प्रदर्शन होते रहे हैं. ट्रेन को अगवा करने वाली घटना को इसी सन्दर्भ में देखा जा सकता है.

 



पाकिस्तान के विरोध में बलूचिस्तान के अनेक संगठन शांतिपूर्ण आंदोलन करते रहे हैं तो कई संगठनों ने हथियारबंद आंदोलन किये हैं. ऐसे हथियारबंद संगठन आए दिन पाकिस्तान के सैन्य और नागरिक ठिकानों पर हमला करते रहते हैं. विगत लम्बे समय से एक हथियारबंद संगठन बीएलए सबसे ज्यादा चर्चा में रहा है, जिसने पाकिस्तान को लगातार नुक़सान भी पहुँचाया है, उसे परेशान भी किया है. बीएलए को बलूचिस्तान के मरी, बुगती, मेंगल और अन्य बलोच कबीलों का समर्थन मिला हुआ है. इसके छह हजार से अधिक लड़ाके बलूचिस्तान और अफगानिस्तान से लगे क्षेत्रों में सक्रिय हैं. यद्यपि पाकिस्तान ने 2006 में बीएलए पर पाबंदी लगा दी थी तथापि विगत कुछ वर्षों में बीएलए ने बलूचिस्तान के ग्रामीण क्षेत्रों में अपना अच्छा नेटवर्क बना लिया है.

 

बलूचिस्तान के गठन के बाद से ही वहाँ के लोग लगातार पाकिस्तान के विरुद्ध संघर्ष करते रहे हैं. दरअसल पाकिस्तान बनने पर उसमें कई रियासतों का विलय हुआ, कई का विलय दबाव से करवाया गया और कुछ पर कब्जा भी किया गया. पाकिस्तान ने अपने गठन के बाद मार्च 1948 को कलात रियासत का जबरन विलय कर लिया. इसके बाद तीन अन्य रियासतों को मिलाकर बलूचिस्तान प्रांत बना दिया. इससे नाराज होकर बलूच लोगों ने विद्रोह शुरू कर दिए, जिन्हें पाकिस्तान अपनी सैन्य शक्ति से दबाता रहा. एमनेस्टी इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट के अनुसार 2011 से अब तक दस हजार से ज्यादा बलूच लापता हो चुके हैं. बलूच लोगों का मानना है कि वो या तो पाकिस्तान की कैद में हैं या उन्हें मार दिया गया है. बलूच राष्ट्रवादियों का कहना है कि वे लोग अपनी मर्जी से पाकिस्तान में नहीं मिले. उनका आरोप है कि पाकिस्तान ने कब्जा करने के बाद बलूचिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों का भारी दोहन किया है, बदले में बलूच लोगों को कुछ नहीं मिल रहा. यहाँ क्रोमाइट, फ्लोराइट, संगमरमर, सोना, गैस, लोहा और पेट्रोलियम सहित प्राकृतिक संसाधन प्रचुर मात्रा में हैं. इसके साथ ही 1100 किमी सीमा समुद्र से लगती है जो समुद्री संसाधनों और व्यापार की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है. बलूचिस्तान के साथ पाकिस्तान के भेदभाव को इससे ही समझा जा सकता है कि पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत होने के बाद भी बलूचिस्तान सबसे कम जनसंख्या वाले और सबसे गरीब प्रांतों में से एक है. पाकिस्तान के कुल क्षेत्रफल का 44 प्रतिशत हिस्सा होने के बाद भी कुल जनसंख्या का मात्र 6 प्रतिशत ही बलूचिस्तान में है.

 

पाकिस्तान ने बलूचिस्तान का गठन अवश्य किया मगर उसे सदैव हाशिये पर रखा गया. यहाँ के निवासियों को सेना सहित राजनीति में अपेक्षित प्रतिनिधित्व न मिलने के कारण असंतोष बना रहा. पाकिस्तान सरकार द्वारा बलूचिस्तान की प्रांतीय परिषद को ज्यादातर बर्खास्त किये जाने के कारण यहाँ स्वायत्तता, स्वतंत्रता, जातीय संघर्ष को बल मिला. इसका परिणाम यह हुआ कि बलूचिस्तान में स्थानीय लोगों द्वारा बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए), बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट (बीएलएफ), बलूच रिपब्लिकन आर्मी (बीआरए) जैसे संगठन बना लिए गए. ये संगठन स्वयं को स्वतंत्रता सेनानी मानते हैं जबकि पाकिस्तान द्वारा इनको आतंकवादी संगठन बताया जाता है. इन स्थानीय संगठनों के अलावा अलकायदा, क्वेटा शूरा-ए-तालिबान, तहरीक तालिबान आदि जैसे कई कट्टरपंथी संगठन भी यहाँ सक्रिय हो गए हैं. इन समूहों की गतिविधियों ने संघर्ष की स्थिति को जटिल बना दिया है. यहाँ की अस्थिर रणनीतिक स्थिति और बिगड़ी अर्थव्यवस्था ने इन संगठनों को मजहबी कट्टरता के साथ संगठित अपराधों की तरफ बढ़ाया है.

 

पाकिस्तान द्वारा बलूचिस्तान की लगातार अनदेखी करने के कारण बढ़ते असंतोष, संघर्ष और पाकिस्तान की वर्तमान स्थिति देखकर लगता है कि जल्द ही बलूचिस्तान अपने स्वतंत्र होने की घोषणा कर सकता है. इस तरह का अंदेशा फरवरी 2025 में पाकिस्तानी सांसद मौलाना फजलुर्रहमान ने व्यक्त करते हुए कहा था कि उनका देश एक बार फिर से टूट सकता है. बलूचिस्तान प्रांत के एक हिस्से में पाकिस्तान से लोग खुश नहीं हैं. ये अलग होने का फैसला लेकर एक बार फिर 1971 जैसी स्थिति पैदा कर सकते हैं, जब पाकिस्तान टूट गया था और बांग्लादेश बना था. यद्यपि भारत द्वारा पाकिस्तान अथवा किसी दूसरे देश की आंतरिक स्थिति में दखल न देने की कूटनीति अपनाई जाती रही है तथापि वर्तमान सन्दर्भ में उसे निश्चित रूप रूप से ऐसे हालात पर सजग रहने की आवश्यकता है.  


07 मार्च 2025

काग दही पर जान गँवायो

काग दही पर जान गँवायो वाक्य को लगभग सभी ने पढ़-सुन रखा होगा और इससे जुड़ी कहानी से भी लगभग सभी लोग परिचित होंगे. ऐसा जानने-समझने के बाद भी इस वाक्य से जुड़ी कहानी एक बार फिर आप सबके बीच रख दी जाए ताकि जिस-जिस को विस्मृत हो गई हो या फिर सही से याद न हो तो उसे पुनः स्मरण हो जाये.

 

इससे जुड़ी कहानी कुछ इस तरह से है कि एक बार एक कवि महोदय हलवाई की दुकान पहुँचे. वहाँ उन्होंने अपने खाने के लिए जलेबी और दही खरीदी और वहीं पड़ी मेज-कुर्सी पर बैठ कर खाने लगे. इस दौरान उन कवि महोदय ने गौर किया कि एक कौआ बहुत देर से दुकान से कुछ न कुछ खाने की जुगाड़ में थे. कई-कई बार की मेहनत के बाद भी उसे कुछ खाने को नहीं मिल पा रहा था क्योंकि हलवाई पूरी तत्परता से उसे भगा देता था. इसी बीच वो कौआ कहीं से जगह बनाने में सफल हो गया और वह दही की परात में चोंच मारकर उड़ गया. ये देखकर हलवाई को बहुत गुस्सा आया, उसने बगल में वजन तौलने वाला बाँट उठा कर उस कौए को दे मारा. कौए की किस्मत ख़राब थी सो वह बाँट सीधे उसे लगा और वो मर गया.

 

इस घटना को देख कवि हृदय द्रवित हो उठा. दही-जलेबी खाने के बाद कवि महोदय जब पानी पीने पहुँचे तो उन्होंने अपने हृदय की पीड़ा को वहीं बनी एक दीवार पर एक कोयले के टुकड़े से एक पंक्ति में लिख दिया-

‘काग दही पर जान गँवायो’

 



कवि महोदय तो अपना काम करके चले गए. उनके जाने के बाद वहाँ एक लिपिकीय कार्यों से सम्बंधित व्यक्ति आता है. वे महाशय अपनी नौकरी के दौरान कागजों में हेराफेरी करने के कारण निलम्बित हो गये थे. उस पानी की टंकी के पास पानी पीने के लिए आने पर उनको कवि महोदय की लिखी पंक्ति दिखाई दी. नजर पड़ते ही उनके मुँह से निकला कि बात तो सही है, बस शब्द लिखने में कुछ त्रुटि हो गई है. ऐसा मन में आते ही उन्होंने अपने मन के अनुसार कवि की लिखी पंक्ति में सुधार कर दिया. उन्होंने उस पंक्ति को कुछ इस तरह पढ़ते हुए सही कर दिया-

‘कागद ही पर जान गँवायो’

 

कवि और उस लिपिक टाइप वाले के जाने के बाद एक लड़का वहाँ आया. शक्ल-सूरत से वह आशिक टाइप, मजनू सरीखा समझ आ रहा था. चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रहीं थीं. ऐसा लग रहा था जैसे अपने प्रेम में हताश-निराश होकर कहीं से चला आ रहा है. पानी पीने के दौरान उसकी नजर भी उस पंक्ति पर पड़ी. पंक्ति पढ़ते ही उसे भी लगा कि कितनी सच्ची बात लिखी है, यदि उसे ये बात पहले पता चल जाती तो वो परेशान न होता. उसने उस पंक्ति को कुछ इस तरह से पढ़ा-

‘का गदही पर जान गँवायो

 

सीधा सा अर्थ है कि हम सभी लोग अपनी स्थिति, अपनी मनोदशा के अनुसार ही सामने वाली स्थिति, परिस्थिति का आकलन करते हैं. हमारी मानसिकता के चलते, कई बार पूर्वाग्रह के चलते वास्तविकता से दूर होकर किसी भी स्थिति को हम सभी अपने अनुसार देखते-समझते हैं. जबकि होना नहीं चाहिए ऐसा. हम सभी को किसी भी स्थिति, परिस्थिति, घटना आदि की वास्तविकता की जानकारी कर लेने के बाद अपना मंतव्य बनाना चाहिए, उस पर कोई फैसला लेना चाहिए.


03 मार्च 2025

अमर्यादित, अशालीन कूटनीतिक व्यवहार

वर्तमान में दो राष्ट्रों रूस और यूक्रेन के बीच का युद्ध जितनी चर्चा में है, उससे कहीं अधिक चर्चा दो राष्ट्रों अमेरिका और यूक्रेन के राष्ट्रपतियों की मुलाकात की है. व्हाइट हाउस के ओवल हाउस में मीडिया के सामने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प और यूक्रेनी राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की की मुलाकात में शालीनता, मर्यादा, कूटनीति के सभी मानदण्डों का विखंडन देखने को मिला. अत्यंत कठोर और अमर्यादित लहजे में हुई बातचीत को समूचे विश्व ने देखा-सुना. अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प, उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने सख्त अंदाज़ में यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की को खरी-खोटी सुनाई वह अप्रत्याशित ही नहीं अशोभनीय भी है. सामान्य शिष्टाचार के रूप में ऐसा आचरण स्वीकार्य नहीं है, इसके साथ-साथ वैश्विक कूटनीति के स्तर पर भी इसे मर्यादित नहीं कह सकते. ट्रम्प के व्यवहार को देखकर लगा जैसे वे अपनी ताकत के बल पर, अपने सहयोग के एहसान के बदले यूक्रेन को युद्ध विराम के लिए एक तरह का दबाव बनाने का प्रयास कर रहे हैं. यूक्रेन को युद्ध के समय अमेरिकी मदद का जिक्र करना, मदद बिना यूक्रेन का युद्ध लड़ने में सक्षम न होने का दंभ दिखाना, यूक्रेन पर तीसरे विश्व युद्ध जैसे हालात उत्पन्न करने जैसा आरोप लगाना ट्रम्प का अहंकारी रवैया ही कहा जायेगा. अमेरिका संग खनन समझौते के लिए वाशिंगटन पहुँचे ज़ेलेंस्की पर अशालीन ढंग से ट्रम्प द्वारा अपना फैसला थोपने जैसा कदम उठाया गया.

 



जहाँ तक रूस-यूक्रेन युद्ध की बात है तो पिछले तीन सालों से चले आ रहे इस युद्ध का कोई अंतिम निष्कर्ष न तो निकला है और न ही निकलता दिखाई दे रहा है. इस बातचीत के बाद तो इस दिशा में अवरोध खड़े होने के आसार अधिक नजर आ रहे हैं. चूँकि ट्रम्प अपने चुनाव प्रचार के समय से ही रूस-यूक्रेन युद्ध विराम की बात करते रहे हैं, ऐसे में उनकी हडबडाहट को समझा जा सकता है. इस जल्दबाजी के कारण ही ट्रम्प पूरी मुलाकात में यूक्रेन के प्रति गम्भीर भाव नहीं दिखा सके. तीन वर्ष पूर्व आरम्भ हुए युद्ध के लिए वास्तविक जिम्मेदार कौन है, यह चर्चा का विषय अवश्य हो सकता है. रूस कभी भी इससे प्रसन्न नहीं रहा कि सोवियत संघ के कई देशों ने नाटो की सदस्यता ले ली. 1999 में अन्य यूरोपियन देशों के साथ हुई एक संधि पर रूस ने इस बात के लिए हस्ताक्षर किये थे कि प्रत्येक देश अपनी सुरक्षा के लिये किसी भी संगठन से जुड़ने को स्वतंत्र है. ऐसी संधि स्वीकारने के बाद भी रूस को सुखद प्रतीत नहीं हो रहा था कि यूक्रेन नाटो से जुड़े. ये और बात है कि 2008 में यूक्रेन द्वारा नाटो की सदस्यता माँगे जाने पर नाटो ने सदस्यता तो नहीं दी किन्तु भविष्य के लिए सदस्यता सम्बन्धी विकल्प को खुला रखा.

 

बहरहाल, रूस द्वारा यूक्रेन पर हमला करने का एक कारण यूक्रेन द्वारा नाटो की सदस्यता की मंशा रखना था. रूस द्वारा हमला किये जाने के पश्चात् यूक्रेन ने अपने दुश्मन के विरुद्ध हथियार नहीं डाले. ये भले ही अमरीकी मदद के बिना सम्भव नहीं हुआ मगर इसका अर्थ यह तो कतई नहीं कि एक राष्ट्रपति द्वारा दूसरे राष्ट्रपति को अपमानित किया जाये. ट्रम्प इस तथ्य से भली-भांति परिचित हैं कि अमेरिका की सैन्य सहायता के बिना यूक्रेन द्वारा रूस का प्रतिरोध कर पाना सहज नहीं होगा. ऐसे में युद्ध विराम के लिए ट्रम्प किसी अगुआ की भांति, किसी महाशक्ति की तरह, किसी सर्वमान्य नेता की तरह कूटनीति अपनाते हुए ज़ेलेंस्की को युद्ध विराम के लिए तैयार कर लेते तो उनके प्रयासों का महत्त्व समझ आता. जैसा कि ट्रम्प अपने बड़बोलेपन और अलग तरह की कार्य-शैली के लिए जाने जाते हैं किन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि वे स्वयं को अहंकारी, अक्खड़ तरीके से प्रस्तुत करते हुए किसी दूसरे राष्ट्राध्यक्ष पर दबाव बनायें. यहाँ ट्रम्प को समझना चाहिए था कि ज़ेलेंस्की ने ट्रम्प से एक तरह का भरोसा चाहा था. अमेरिका के साथ अपने खनिज संसाधनों को बाँटने की स्थिति में यूक्रेन को भी आश्वासन चाहिए था कि रूस पीछे हट जाएगा, यूक्रेन के कब्ज़ाए हुए क्षेत्र वापस कर देगा और भविष्य में यूक्रेन पर आक्रमण नहीं करेगा. देखा जाये तो एक राष्ट्राध्यक्ष के नाते युद्ध विराम के बदले में ऐसी माँग अनुचित तो नहीं थी. ज़ेलेंस्की भी अच्छी तरह से जानते होंगे कि रूस के विरुद्ध युद्ध करते हुए यूक्रेन लगातार अपना ही नुकसान कर रहा है. भले ही यूक्रेन पूरी तरह से परास्त न हो पर वो रूस को अकेले नहीं हरा सकता है. ऐसे में सम्भव है कि ज़ेलेंस्की और यूक्रेन के नागरिक युद्ध-विराम जैसी स्थिति चाहते हों, भले ही इसके लिए अमेरिका अथवा किसी अन्य भरोसेमंद राष्ट्र की पहल का इंतजार कर रहे हों.

 

यहाँ ट्रम्प को यह नहीं भूलना चाहिए था कि वे राजनयिक अधिकारों एवं शिष्टाचार सम्बन्धी वियना समझौते के हस्ताक्षरकर्ता राष्ट्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. अहंकार में आकर वे यूक्रेन की सार्वभौमिकता, सम्प्रभुता का अपमान नहीं कर सकते. जेलेंस्की उनके मातहत किसी अधिकारी नहीं बल्कि एक संप्रभु, स्वतंत्र राष्ट्र के प्रतिनिधि के रूप में वहाँ उपस्थित थे. यह अपमान और प्रदर्शन व्हाइट हाउस की असभ्यता है, संयुक्त राष्ट्र संघ के सिद्धांतों का मखौल उड़ाना है. राजनैतिक असहमति के प्रदर्शन का यह तरीका निहायत ही निम्नस्तरीय है. ज़ेलेंस्की का खनिज समझौते पर हस्ताक्षर किये बिना वापस लौट आना, ट्रम्प का एकतरफा ऐलान सा करना कि ज़ेलेंस्की अभी शांति के मूड में नहीं हैं और जब शांति की बात करना चाहें तो हमारे दरवाजे उनके लिए खुले हैं, निश्चित रूप से युद्ध विराम सम्बन्धी स्थिति का बनने के पहले ही बिगड़ना है. ट्रम्प के इस तरह के बर्ताव के बाद यूरोपीय देशों में भी हलचल बढ़ने लगी है; रूस को भी हिम्मत मिली होगी, अब वह और अधिक हमलावर स्थिति में आने की कोशिश करेगा. यह बदलता परिदृश्य अनिश्चितताएँ बढ़ाने का कार्य करेगा.