लम्बे समय से देश
में एकसाथ चुनाव कराये जाने की चर्चा चलती रही है. एकसाथ चुनाव की प्रक्रिया को लोकसभा
और राज्यों की विधानसभाओं के सन्दर्भ में लिया जाता रहा है. एकसाथ चुनाव कराने को
कांग्रेस सहित अनेक विपक्षी दल सहमत नहीं हैं. उनके द्वारा सरकार के इस कदम का
विरोध किया जा रहा है. एकसाथ चुनाव कराये जाने की चर्चाओं, बहस के बीच लोकसभा में यह बिल 198
के मुकाबले 269 मतों से पारित हो गया. कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने मंगलवार को
देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के प्रावधान वाले संविधान (129वाँ संशोधन) विधेयक 2024 और उससे जुड़े संघ राज्य क्षेत्र विधि (संशोधन)
विधेयक 2024 को लोकसभा में प्रस्तुत
किया था.
वर्तमान में भले
ही देश में एकसाथ चुनाव कराये जाने की प्रक्रिया पर विरोधी स्वर उठ रहे हों मगर ये
कोई नवीन अवधारणा नहीं है. संविधान को अंगीकार किए जाने के बाद लोकसभा और राज्य
विधानसभाओं के पहले चुनाव 1951-52 में एक साथ आयोजित किए गए थे. इसके बाद 1957, 1962 और 1967 के तीन चुनाव भी एकसाथ संपन्न हुए
थे. ऐसा नहीं है कि सरकार ने एकसाथ चुनाव कराये जाने सम्बन्धी बिल अचानक से लोकसभा
में प्रस्तुत कर दिया. सरकार द्वारा सितम्बर 2023 को
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एकसाथ चुनाव कराने पर उच्च
स्तरीय समिति का गठन किया था. इस समिति का प्राथमिक उद्देश्य यह पता लगाना था कि
लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एकसाथ चुनाव कराना कितना उचित होगा. इस हेतु
सार्वजनिक और राजनैतिक विचारों को आमंत्रित किया गया और भविष्य में एकसाथ चुनाव
प्रक्रिया संपन्न करवाए जाने से सम्बन्धित चुनौतियों का विश्लेषण किया गया. समिति
की रिपोर्ट के आधार पर ही एकसाथ चुनाव कराये जाने सम्बन्धी बिल का आधार तैयार किया
गया. समिति ने एकसाथ चुनाव की व्यवस्था को दो चरणों में लागू किये जाने की सिफारिश
की. चूँकि देश में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के साथ-साथ पंचायती चुनावों को भी
संपन्न करवाना होता है. इसी को देखते हुए समिति ने सिफारिश की कि पहले चरण में लोकसभा
और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराये जाएँ. दूसरे चरण में इन चुनावों के
संपन्न होने के सौ दिन के भीतर नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनाव एक साथ कराये
जाएँ.
यह सच है कि भारत
जैसे विशाल देश में निर्बाध रूप से निष्पक्ष चुनाव कराना हमेशा से एक चुनौती रहा
है. यह चुनौती उस समय और बड़ी हो जाती है जबकि प्रतिवर्ष किसी न किसी राज्य में
चुनाव होते रहते हैं. लगातार होते चुनावों के कारण देश सदैव चुनावी प्रक्रिया में
बना रहता है. इससे न केवल बहुतायत में प्रशासनिक मशीनरी चुनाव प्रक्रिया में लगी
रहती है बल्कि देश पर भारी आर्थिक बोझ भी पड़ता है. ऐसी स्थिति में कई बार लगता है
कि एकसाथ चुनाव प्रक्रिया संपन्न होने के कारण देश सहजता से विकास के रास्ते पर चल
सकेगा. इस प्रक्रिया के विरोध में यह कह देना कि आज़ादी के बाद के समय में एकसाथ
चुनाव संपन्न करवाना इस कारण सहज हुआ था क्योंकि तब जनसंख्या कम थी. आज अधिक
जनसंख्या के कारण एकसाथ चुनाव करवाना कठिन होगा. इस विचार के साथ ये याद रखना होगा
कि यदि देश की जनसंख्या बढ़ी है तो वर्तमान में तकनीक और अन्य संसाधनों का भी
विकास हुआ है. न केवल संचार साधनों का बल्कि परिवहन व्यवस्था में भी क्रांतिकारी
विकास हुआ है. ऐसे में आज़ादी के तत्काल वर्षों की तुलना में अब एकसाथ चुनाव करवाना
ज्यादा सहज है, आसान
है.
एकसाथ चुनाव करवाए
जाने की स्थिति में सबसे बड़ा लाभ यह है कि निर्वाचन आयोग द्वारा जारी आदर्श आचार
संहिता बहुत लम्बे समय तक लागू नहीं रहेगी. इसके चलते विकास कार्य लम्बी अवधि तक
लम्बित नहीं रहेंगे और उनको समय से पूरा किया जा सकेगा. इसके साथ-साथ इससे बार-बार होने वाले
चुनावों के कारण भारी-भरकम खर्च में कमी आएगी. संभव है कि एकसाथ चुनाव कराये जाने
की स्थिति में धन का अपव्यय रुके और इससे काले धन, भ्रष्टाचार पर भी किसी तरह का अंकुश लग सके. एकसाथ चुनाव
करवाया जाना जहाँ देश की राजनैतिक व्यवस्था के लिए, आर्थिक
स्थिति के लिए लाभप्रद समझ आ रहे हैं वहीं इसका लाभ नागरिकों को भी मिलेगा.
चुनावों के समय सक्रियता से अपना कार्य करने वाले सरकारी कर्मचारियों और सुरक्षा
बलों को बार-बार चुनाव ड्यूटी पर लगाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी. इससे जहाँ एक तरफ
उनके समय की बचत होगी वहीं दूसरी तरफ वे चुनाव प्रक्रिया में बार-बार सक्रिय रहने
के कारण होने वाली शारीरिक, मानसिक थकान से भी बच सकेंगे.
ऐसा होने की स्थिति में वे अपने कर्त्तव्यों का पालन भी सही तरीके से कर पायेंगे.
एकसाथ चुनाव कराये
जाने के विरोधी स्वरों को निश्चित रूप से समिति द्वारा सुना गया होगा, उस पर सकारात्मक रूप से विचार किया
गया होगा. प्रथम दृष्टया एक देश एक चुनाव की अवधारणा में कोई बहुत बड़ी कमी नजर नहीं
आती है. इसमें कोई दोराय नहीं कि विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र हमारा देश हर समय चुनावी
प्रक्रिया में लगा रहता है. एकसाथ चुनाव होने से इस चक्रव्यूह से उसे मुक्ति
मिलेगी. अब जबकि लोकसभा में इस सम्बन्ध में बिल पारित हो चुका है, ऐसे में सरकार से और विपक्षी दलों
से अपेक्षा यही है कि वे सभी समवेत रूप में चुनावों के इस चक्रव्यूह से देश को
निकालने के लिये व्यापक चुनाव सुधार अभियान चलायें. इसके द्वारा राजनीति में बढ़ते
अपराधीकरण पर रोक का प्रयास हो और जनसामान्य में राजनीतिक जागरूकता पैदा करना शामिल हो.