09 अक्तूबर 2024

चुनाव परिणाम भाजपा के लिए संजीवनी

अबकी बार चार सौ पार जैसा जबरदस्त नारा उछलने के बाद भी लोकसभा चुनावों में आशातीत सफलता न मिल पाने के बाद गैर-भाजपाई दलों द्वारा नए तरह के दुष्प्रचार राजनैतिक गलियारों में उछालने शुरू कर दिए थे. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कार्यशैली, भाजपा की डबल इंजन सरकार की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान उठाते हुए विपक्षी दलों के उभरते गठबंधन और मुहब्बत की दुकान ने आने वाला समय अपना बताया. इस तरह की वैचारिकी को, विपक्षी दलों द्वारा फैलाये जा रहे दुष्प्रचार को उस समय और बल मिला जबकि चुनाव सर्वेक्षणों ने हरियाणा में गठबंधन को जबरदस्त सफल होते दिखाया. इसके उलट चुनाव परिणामों ने अलग कहानी लिख दी. 

 

हरियाणा विधानसभा चुनाव में मतदाताओं ने लगभग 40 प्रतिशत मतों के साथ 48 सीटों को भाजपा के पक्ष में देकर विपक्षी दलों द्वारा चलाये जा रहे अनेकानेक दावों, बयानों को गलत साबित कर दिया. पिछले विधानसभा चुनावों में मतदाताओं ने लगभग 37 प्रतिशत मतदान भाजपा के पक्ष में करते हुए 40 सीटों पर विजय दिलवाई थी. अबकी सीटों की संख्या और मतदान प्रतिशत दोनों में वृद्धि करते हुए हरियाणा के मतदाताओं ने भाजपा के विरुद्ध चलाये जा रहे तमाम दुष्प्रचार खारिज कर दिए. भाजपा की इस विजय से निश्चित ही विपक्षी दलों, विशेष रूप से कांग्रेस को जबरदस्त निराशा हुई होगी क्योंकि जिस तरह से हरियाणा में भाजपा विरोधी माहौल बनाया गया था, चुनाव सर्वेक्षणों में उसे एक पायदान नीचे दिखाया गया था उसके बाद कांग्रेस खुद को सत्तासीन समझ चुकी थी. यहाँ की जनता ने किसान विरोधी, पहलवान विरोधी, सेना विरोधी, सरकार विरोधी तमाम स्थितियों को आइना दिखा दिया. भाजपा की जीत ने अग्निवीर योजना पर मतदाताओं की मुहर लगाई, साथ ही यह भी साबित कर दिया कि महिला पहलवानों और किसानों का मुद्दा विशुद्ध राजनैतिक हथकंडा था.

 



भाजपा ने हरियाणा में आरम्भ से ही अपना ध्यान राज्य के ओबीसी मतदाताओं पर लगाया जो हरियाणा की कुल आबादी का लगभग 40 प्रतिशत हैं. यहाँ की राजनीति में मुख्य रूप से जाट समुदाय का प्रभुत्व बना हुआ है जो राज्य की कुल जनसंख्या का 25 प्रतिशत हैं. कांग्रेस सहित अन्य दलों का ध्यान जहाँ जाट मतदाताओं पर रहा वहीं भाजपा ने गैर-जाट मतदाताओं को आकर्षित कर अपनी जीत सुनिश्चित की. इसके अलावा भाजपा ने गाँवों में महिला स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से दलित परिवारों तक पहुँच बनाई, जिसमें लखपति ड्रोन दीदी अभियान ने मुख्य भूमिका निभाई.

 

हरियाणा का चुनाव वहाँ की राजनैतिक स्थितियों के कारण चर्चा में रहा तो जम्मू-कश्मीर का चुनाव इसलिए राष्ट्रव्यापी विमर्श का हिस्सा बना क्योंकि धारा 370 हटाये जाने, केन्द्रशासित राज्य बनाये जाने के बाद वहाँ यह पहला चुनाव था. इस चुनाव को लोकतान्त्रिक प्रणाली की परीक्षा भी माना जा रहा था. राज्य का इतिहास रहा है कि जहाँ पर आतंकवादियों और अलगाववादियों के भय के साए में चुनाव सपन्न हुआ करते थे, वहाँ भाजपानीत केन्द्र सरकार द्वारा लोकतंत्र की बहाली का रास्ता बनाते हुए 2019, 2020 एवं 2021 में क्रमशः ब्लॉक विकास परिषद् (बीडीसी), जिला विकास परिषद्  (डीडीसी) एवं पंचों-सरपंचों के चुनाव सहजता, शांतिपूर्वक करवा दिए. केन्द्रशासित राज्य बनाये जाने के बाद हुए परिसीमन में जम्मू संभाग में 43 और कश्मीर संभाग में 47 सीटों का आवंटन किया गया. जम्मू-कश्मीर के चुनावों में देखा जाये तो यहाँ राष्ट्रीयता के स्थान पर क्षेत्रीयता और जनजातीय अस्मिता को महत्त्व दिया गया. राज्य में नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस गठबंधन का पूरा जोर धारा 370 की वापसी, राज्य का दर्ज़ा बहाल करने, भू-स्वामित्व को सीमित करना आदि पर रहा. इसके माध्यम से गठबंधन राज्य के नागरिकों को लुभाने में सफल भी रहा. परिणामस्वरूप नेशनल कांफ्रेंस को 45 सीटों पर विजय प्राप्त हुई जबकि कांग्रेस को मात्र 06 सीटों से संतोष करना पड़ा.

 

भाजपा की दृष्टि से यह चुनाव कुछ लाभकारी कहा जा सकता है. पिछले चुनाव की 25 सीटों के मुकाबले इस बार उसे 29 सीटों पर विजय प्राप्त हुई. राज्य में कश्मीर मुस्लिम बहुल है जहाँ भाजपा की पैठ न के बराबर है. जम्मू में जहाँ हिन्दू जनसंख्या अपना प्रभाव रखती है वहाँ भाजपा के प्रदर्शन को संतोषजनक कहा जा सकता है. मतदाताओं के बीच भाजपा ने लोकतंत्र की स्थापना, क्षेत्रीय विकास, आतंकवाद-अलगाववाद को समाप्त करने आदि मुद्दों को पहुँचाने की कोशिश की लेकिन राज्य में उसके लिए बहुत अधिक राजनैतिक संभावनाओं के न होने के बाद भी 2014 की अपेक्षा बेहतर प्रदर्शन निश्चित ही भाजपा और उसके कार्यकर्ताओं के लिए संजीवनी का काम करेगा. राज्य के चुनाव परिणामों से स्पष्ट है कि यहाँ नेशनल कांफ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनेगी किन्तु अबकी शासन, सरकार का स्वरूप पहले वाले जम्मू-कश्मीर जैसा नहीं होगा. केन्द्रशासित राज्य होने के कारण वर्तमान में उपराज्यपाल की शक्तियाँ अपना कार्य करेंगी, इस कारण अनेक महत्त्वपूर्ण कार्यों के लिए मुख्यमंत्री को उपराज्यपाल की अनुमति, सहमति की आवश्यकता होगी.

 

बहरहाल हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के चुनाव परिणामों को उस क्षेत्र विशेष के सन्दर्भ में, वहाँ की राजनैतिक, नागरिक स्थितियों के सन्दर्भ में देखने की आवश्यकता है. केन्द्र की भाजपानीत सरकार ने जम्मू-कश्मीर में हिंसा-मुक्त, शांतिपूर्वक चुनाव करवाकर लोकतान्त्रिक मूल्यों की स्थापना का आधार निर्मित किया है वहीं हरियाणा में भाजपा द्वारा लगातार तीसरी जीत ने बहुत सारे दुष्प्रचारों को खारिज किया है. इस जीत से निश्चित ही चार राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए भाजपा, उसके सहयोगी दलों और कार्यकर्ताओं में उत्साह, ऊर्जा का संचार होगा.

02 अक्तूबर 2024

इजरायल-ईरान संघर्ष के भारतीय सन्दर्भ

हिजबुल्लाह प्रमुख हसन नसरल्लाह की मौत के बाद भी इजराइल ने लेबनान में चरमपंथी समूह के ठिकानों पर बमबारी जारी रखी. उसने साफ कहा था कि वह हमले बंद नहीं करेगा और इजराइल के हितों पर हमला करने वाले किसी भी देश को नष्ट कर देगा. इजरायल द्वारा हिजबुल्लाह पर ताबड़तोड़ हमलों के बाद आशंका व्यक्त की जा रही थी कि कहीं इसकी परिणति ईरान द्वारा इजरायल पर हमला करने के रूप में न हो. यह आशंका मंगलवार शाम को सच साबित भी हुई जबकि ईरानी सेना ने इजरायल पर बैलिस्टिक मिसाइलों की बौछार कर दी. उसकी सेना द्वारा हमले में मुख्‍य रूप से सेना और सुरक्षा एजेंसी को निशाना बनाया गया. हमले के बाद इजरायली मीडिया ने बताया कि ईरान ने इजरायल पर 180 के आसपास बैलिस्टिक मिसाइलें दागी हैं. इस हमले के तुरंत बाद इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा कि ईरान ने उस पर हमला करके बहुत बड़ी गलती की है. उसे इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी. नेतन्याहू के इस बयान के बाद दोनों देशों के मध्य सीधे युद्ध की आशंका तीव्र हो गई है. माना जा रहा है कि इजरायल किसी भी वक्त ईरान पर सीधा हमला कर सकता है.  

 

पश्चिम एशिया में तनाव बढ़ने के साथ ही इजराइल और हिजबुल्लाह के बीच संघर्ष का वर्तमान दौर के चलते सम्पूर्ण अंतरराष्ट्रीय समुदाय महत्वपूर्ण मोड़ पर है क्योंकि इस संघर्ष में अब ईरान के शामिल हो जाने से भू-राजनीतिक चुनौतियाँ बढ़ गई हैं. ईरान की यौद्धिक स्थिति पर विचार करते समय सावधानी बरतना जरूरी है. इजराइल के पास बड़ी सैन्य शक्ति है और उसे अमेरिका से समर्थन प्राप्त है. ईरान के साथ इजरायल की युद्ध स्थिति यदि बढ़ती है तो इसके परिणाम को और वर्तमान को भारतीय हितों के सन्दर्भ में समझने की आवश्यकता है. जहाँ तक भारत के हितों का सवाल है, पश्चिम एशिया, विशेष रूप में खाड़ी देशों में भारतीय नागरिकों के लिए यह संघर्ष एक तरह का जोखिम पैदा कर ही सकता है.

 



यदि भारतीय सन्दर्भों में इजरायल और ईरान को देखें तो किसी समय भारत की नीति फिलिस्तीन को समर्थन देने की रही है मगर पिछले दो दशकों से अधिक समय से भारत और इजरायल के बीच सम्बन्ध प्रगाढ़ हुए हैं. सैन्य सम्बन्धों, उपकरणों, तकनीकी, ख़ुफ़िया तंत्र आदि के विकसित स्वरूप के लिए इजरायल बराबर भारत का साथ दे रहा है. पिछले दशक में 2.9 अरब डॉलर मूल्य की मिसाइलें, रडार, निगरानी और लड़ाकू ड्रोन का निर्यात इजरायल से किया गया है. इजरायल के साथ-साथ भारत के सम्बन्ध ईरान के साथ भी महत्त्वपूर्ण समझे जाते हैं. देश का चाहबार पोर्ट उन्हीं के क्षेत्र में हैं, जिसके माध्यम से यूरोप को जोड़ने की कल्पना को साकार किया जा सका है. भारत ने 2016 में चाबहार को विकसित करने के लिए 8.5 करोड़ डॉलर का निवेश किया था और तेहरान को 15 करोड़ डॉलर की क्रेडिट लाइन भी दी थी. इसके साथ-साथ ईरानी तेल-गैस भी भारत के लिए हाइड्रोकार्बन के निकटतम स्रोत हैं. अमेरिकी प्रतिबंधों से पहले भारत ईरानी तेल का बड़ा खरीदार था. ऐसे में इजरायल और ईरान का संघर्ष बढ़ने पर भारत के सामने नई चुनौती आएगी.

 

ईरान युद्ध में शामिल होने के बाद ऐसा माना जा रहा है कि वह तेल की आपूर्ति को बाधित कर सकता है या फिर यह बाधा युद्ध के कारण स्वतः बन सकती है. दोनों ही स्थितियों में तेल की कीमतों का बढ़ना तय है. भारत कच्चे तेल के क्षेत्र में दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है और उसे अपनी ऊर्जा-आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आयात पर निर्भर रहना पड़ता है. ऐसे में तेल कीमतों की वृद्धि से भारतीय आर्थिक विकास दर के नकारात्मक स्थिति में जाने की आशंका भी बनती है. यह देश के आर्थिक विकास की दृष्टि से उचित नहीं. इसके अलावा खाड़ी देशों में काम करते भारतीयों पर भी इस युद्ध का नकारात्मक असर पड़ने की सम्भावना है. एक अनुमान के अनुसार नब्बे लाख के आसपास भारतीय नागरिक खाड़ी देशों में काम करते हैं. ईरान के हमले के बाद यदि इजरायल सीधे-सीधे युद्ध की स्थिति में उतर आया तो ऐसी स्थिति में ये भारतीय खाड़ी देशों से वापस अपने देश को आने लगेंगे. इससे भी मध्य पूर्व क्षेत्र में भारत के लगभग 195 बिलियन डॉलर के बाईलेटरल व्यापार पर भी असर पड़ेगा.

 

यद्यपि भारत द्वारा इजरायल-हमास संघर्ष के आरंभिक दौर से ही इस संघर्ष को शांत करने के प्रयास किये जाते रहे तथापि उसे इसमें सफलता नहीं मिली. इजराइल पर हमास के आतंकवादी हमले के बाद से ही भारत ने मध्य-पूर्व क्षेत्र के सऊदी अरब, ईरान, मिस्र, फिलिस्तीन सहित अनेक यूरोपीय नेताओं से वार्ता की. लगातार चर्चाओं, वार्ताओं के बाद भी संघर्ष बढ़ता ही गया और अब वह एक युद्ध के रूप में नजर आ रहा है. भारत के ईरान के साथ लम्बे समय से रणनीतिक संबंध हैं, वहीं मोदी सरकार ने इजराइल के साथ भी गहरे सम्बन्ध विकसित किए हैं. ऐसे में भारत को आतंकी संगठनों, आतंकवादियों के समूल नाश किये जाने के प्रति दृढ़प्रतिज्ञ रहते हुए भविष्य और तमाम आशंकाओं के सन्दर्भ में दोनों देशों के साथ कूटनीतिक स्तर पर कदम बढ़ाते हुए युद्ध जैसी स्थिति को न बनने देने के प्रयास करने चाहिए.


24 सितंबर 2024

सोशल मीडिया में फैलती भ्रामकता

सामाजिक संरचना में ऐसी कोई भी स्थिति जो नियंत्रण-मुक्त है, वह अकसर अनावश्यकता को जन्म देने लगती है. वर्तमान में ऐसी स्थिति सोशल मीडिया के सन्दर्भ में नजर आ रही है. इसके विभिन्न प्लेटफ़ॉर्म एक तरह के नियंत्रण में होने के बाद भी आम नागरिक के लिए मुफ्त और अनियंत्रित रूप में उपलब्ध हैं. विचारों का प्रसार करने के साथ-साथ लोगों के मन में भावना रहती है कि उनके विचारों को स्वीकारने वाले अधिक लोग हों. स्वीकारने जैसी अवस्था कब थोपे जाने में बदल जाती है पता ही नहीं चलता है. ऐसी वैचारिकी भी अक्सर भ्रामक, तथ्यहीन नजर आती है. अब विचारों के लिए किसी तरह के स्व-अध्ययन की आवश्यकता नहीं बस इंटरनेट की कृपा से घूम-टहल कर बस इतना देखना है कि खुद के मन की बात कहाँ लिखी हुई है. उसे कॉपी करना है और शेयर करके दूसरों तक पहुँचाना है.  

 

यदि पिछले कुछ समय से सोशल मीडिया की विषय-सामग्री पर गौर किया जाये तो सहज एहसास हुआ होगा कि बिना सोचे-समझे, बिना तथ्यों की जाँच किये प्रकाशित, शेयर की गई विषय-वस्तु को अंतिम सत्य मानकर उसका प्रसारण चलता रहता है. आये दिन किसी बालक-बालिका की तमाम तरह के चिकित्सकीय उपकरणों से घिरी तस्वीर सोशल मीडिया में दिखती है. अत्यंत संवेदित तरीके से प्रस्तुत पोस्ट पर उसके लिए लाइक, शेयर के माध्यम से धनराशि जुटाने की चर्चा होती है. तस्वीर के बच्चे को देखकर बहुतायत लोग पोस्ट को लाइक, शेयर करने में जुट जाते हैं. क्या एक पल को विचार किया है कि आखिर सोशल मीडिया पर किये जाने वाले लाइक, शेयर पर किसके द्वारा धनराशि प्रदान की जाती है? क्या इस पर गौर किया कि यदि लाइक, शेयर करने पर धनराशि मिलेगी भी तो वह आखिर किसके खाते में जायेगी? ऐसी बातों पर विचार किये बिना सभी आँखें बंद करके किसी दूसरे के हाथों में खेलने लग जाते हैं. इसी तरह से आये दिन उन गुमशुदा बच्चों की पोस्ट भी पोस्ट, शेयर होती रहती है जो वर्षों पहले अपने-अपने घरों को सकुशल मिल चुके होते हैं. ये स्थितियाँ जानकारी का अभाव और स्वयं को सोशल मीडिया के चंगुल में फँसा होने की तरफ इशारा करती हैं.

 



इन दिनों सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों के दिमाग से खेलते हुए, उनको तथ्यहीन जानकारी के आकर्षण में फँसाते हुए एक तरह से व्यवस्था के विरुद्ध खड़ा करने का काम किया जा रहा है. आपने अक्सर ऐसी पोस्ट देखी होंगी जिसमें ड्राइविंग लाइसेंस को केन्द्रित करते हुए एक निश्चित समयसीमा पश्चात् नवीनीकरण पर प्रश्न उठाया जाता है. इसी तरह एक अन्य पोस्ट के माध्यम से ड्राइविंग लाइसेंस बनाये जाने की प्रक्रिया पर सवाल उठाया जाता है. क्या ऐसी पोस्ट को शेयर, लाइक करने के पहले या इस पर अपनी सहमति देने के पहले विचार किया गया कि आखिर उम्र के एक पड़ाव के बाद व्यक्ति के देखने की, सुनने की क्षमता कम हो जाती है. बहुत से लोगों के हाथ-पैर में कम्पन होने लगता है. अनेक व्यक्ति स्मृति-लोप का शिकार होने लगते हैं. इन्हीं स्थितियों, स्वास्थ्य की जाँच के लिए एक निश्चित समय बाद किसी भी वाहन चालक के लाइसेंस का नवीनीकरण किया जाता है. अन्य पोस्ट के सन्दर्भ में क्या विचार किया गया कि किसी वाहन का लाइसेंस बनाये जाने के पहले लर्निंग लाइसेंस बनाये जाने की व्यवस्था है. उसके बाद ही वाहन चालन पश्चात् लाइसेंस अंतिम रूप से चालक को प्रदान किया जाता है. इसके बाद भी तथ्यात्मक रूप से अनजान बनकर ऐसी पोस्ट के द्वारा लोगों के दिमाग से खेलने का काम चलता रहता है.

 

ऐसी ही तथ्यहीन जानकारियों के चलते सोशल मीडिया पर एकतरफा कुतर्क चलते रहते हैं. उम्रअनुभवज्ञान को दरकिनार करते हुए लोग यहाँ सहजता से मिल जाते हैं. ऐसा व्यक्ति जिसने किसी विषय को पढ़ना तो दूर कभी देखा भी न होउस पर भी किसी बड़े विशेषज्ञ से ज्यादा गंभीरता से अपनी राय देता है. ऐसा किये जाने से इंटरनेट पर ऐसी सामग्री का जमावड़ा होता जा रहा है जो विशुद्ध रूप से संशयभ्रम फ़ैलाने का काम कर रही है. इसी अनावश्यक स्वतंत्रता के चलते सभी को अपनी बात रखने काअपने विचार पोस्ट करने का अधिकार मिला हुआ है. बिना किसी सेंसर केबिना किसी संपादन के ऐसी सामग्री इंटरनेट पर दिखाई दे रही है जो न केवल भ्रामक है वरन अराजक भी है. इस तरह की अराजक और भ्रामक स्थिति में आने वाली उस पीढ़ी का भी नुकसान होने वाला है जो इंटरनेट की सामग्री को ही प्रमाणित मानती है. उसके लिए पुस्तकों काबुजुर्गों के ज्ञान का कोई अर्थ ही नहीं है. ऐसी स्थिति में अधकचरे ज्ञान सेअशिक्षित लोगों के विचारों से सोशल मीडिया हरा-भरा बना हुआ है. आने वाले समय में यही भ्रामक और तथ्यहीन सामग्री ही सामाजिक क्षति करवाएगी.

 

आज भले ही इसके मायने समझ न आ रहे हों मगर आने वाले समय में इसी तरह की सामग्री के सहारे लोगों के दिमाग कोउनके ज्ञान को गुलाम बनाया जा सकेगा. आवश्यक नहीं कि प्रत्येक कालखंड में सेनाहथियार से ही गुलामी लायी जाए. वर्तमान समय तकनीक का है और आने वाला इससे भी ज्यादा तकनीक काविज्ञान काजानकारियों कातथ्यों का होगा. ऐसे में एक गलत अथवा भ्रामक सामग्री भी किसी हथियार से कम साबित नहीं होगी. आज के लिए न सही मगर आने वाले कल के लिएआने वाली पीढ़ी के लिए आज तथ्यों की गलतियों कोभ्रम कोअराजकता को सँभालना होगा. सोशल मीडिया पर होती अनावश्यक उछल-कूद को नियंत्रित करना होगा.


17 सितंबर 2024

रियल लाइफ के लिए जानलेवा बनती रील लाइफ

मोबाइल को किसी भी सदी का सबसे बड़ा अविष्कार माना जा सकता है. इसने ही एक साधेसब सधे की अवधारणा को पूरा किया है. बातचीत के लिए बनाये गए इस यंत्र ने अपने तंत्र में इतना कुछ समेट लिया है कि कई बार तो समझ ही नहीं आता है कि इसका उपयोग किसके लिए प्रमुखता से किया जाता हैखुद मोबाइल कम्पनियाँ भी अब बातचीत को प्राथमिकता में रखने के बजाय कैमरे को प्राथमिकता में रख रही हैं. पहले ऐसा नहीं था क्योंकि तब मोबाइल का नशा न था. मोबाइल से रील बनाने का फैशन न था. जरा-जरा सी बात पर सेल्फी लेने का चलन न था. किसी समय आपस में बातचीत करने का माध्यम बना मोबाइल अब बातचीत करने से ज्यादा सेल्फी लेने के लिए, रील्स बनाने के लिए प्रयोग होने लगा है. बाजारवाद से घिरे समाज में अब ऐसा लगता है जैसे सबकुछ विज्ञापनमय होता जा रहा है. व्यावसायिक दुनिया तो पहले से ही विज्ञापन के सहारे चल रही थी, अब व्यक्ति की निजी ज़िन्दगी भी विज्ञापन जैसी होती जा रही है. ऐसा होने के पीछे हरसमय सेल्फी लेने की मानसिकता, बिना आगा-पीछा सोचे रील बनाने की सनक का सवार होना है. 

 



सेल्फी ने, रील्स ने मोबाइलयुक्त व्यक्तियों का चाल-चलन एकदम ही बदल दिया. लोगों का सेल्फी-प्रेम किसी से भी छिपा नहीं है. हालत ये है कि कहीं भी, कुछ भी किया जा रहा हो तो पहले सेल्फी बना लो, रील बना लो. किसी पर्यटन स्थल पर घूमने गए हो तो रील डाल दो. बस मेंट्रेन मेंहवाई जहाज मेंसाइकिल मेंपैदल कहीं भी किसी रूप में हो प्राथमिकता में रील बनाकर उसे अपलोड करना है, उसके बाद ही आगे बढ़ना है. सेल्फी लेना अथवा रील बनाकर उसे सोशल मीडिया पर अपलोड करना गलत नहीं है मगर जैसा कि कहा जाता है कि अति हर चीज की बुरी होती है, बस उसी अति ने आज सेल्फी लेने के चलन को, रील बनाने, अपलोड करने के कदम को जानलेवा स्थिति तक पहुँचा दिया है. इस शौक के नशे ने बहुतों के दिमाग को विक्षिप्त सा कर दिया. मोबाइल हाथ में हो तो कई बार ऐसे दिमागी असंतुलन वाले लोग भूल जाते हैं कि कहाँ सेल्फी लेनी है कहाँ नहीं. कहाँ वीडियो बनाना सुरक्षित है, कहाँ नहीं. उनको ध्यान भी नहीं रहता है कि अपने इस नशे के चक्कर में वे अपनी और अपने साथ के लोगों की जान तो खतरे में नहीं डाल रहे. ये शौक अब जानलेवा साबित हो रहा है. रोमांचकहैरानी में डालने वाली एवं विस्मयकारी सेल्फी लेने के चक्कर में अपनी जान की भी परवाह नहीं कर रहा है. कभी ऊँची पहाड़ी की चोटी परकभी बीच नदी की धार मेंकभी बाइक पर स्टंट करते हुएकभी ट्रेन से होड़ करते हुए, कभी खतरनाक जीव-जंतुओं के साथ ऐसे लोग रील बनाते नजर आते हैं. सोशल मीडिया, स्मार्टफोन, सेल्फी, रील के इस नशे में लोग आये दिन अपनी जान गँवा रहे हैं. आजकल तो लगभग रोज ही ऐसी ख़बरों से दो-चार हुआ जा रहा है.

 

दरअसल बाजार के बढ़ते प्रभाव ने ज़िन्दगी को विज्ञापन की तरह से चकाचौंध से भरा हुआ साबित करने का प्रयास किया है. एक तरह की होड़ को ही, भीड़ से अलग दिखने की मानसिकता ने, किसी भी क्षेत्र में सबसे ऊपर रहने की दौड़ ने, सोशल मीडिया के आभासी लाइक-शेयर के नंबर-गेम ने व्यक्तियों को एक तरह की मशीन बना दिया है. पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से सफलता की परिभाषा बदली गई है, जिस तरह से व्यक्तित्व निर्माण की प्रक्रिया बदली गई है, प्रसिद्ध होने के रास्ते बदले गए हैं उसके बाद प्रत्येक कदम, प्रत्येक कार्य को सही ही ठहराया गया है. सोशल मीडिया की आभासी दुनिया ने इस मनोदशा को मीठे जहर के रूप में व्यक्तियों में प्रवेश कराया है. देखा जाये तो यह भी एक तरह से मानसिक विकार है, एक रोग है. दो-चार रील के द्वारा, कुछ हजार-लाख लाइक, शेयर की चाह में एक झटके में प्रसिद्धि पाने की तृष्णा आखिर किसलिए? आखिर खतरनाक रील्स के द्वारा लोग खुद को किसलिएकिसके लिए सबसे अलग दिखाने की कोशिश करते हैंक्यों खतरनाक जगहों पर जाकर स्टंट करते हुए रील बनाने की कोशिश की जाती हैक्यों तेज रफ़्तार बाइक परतेज गति से भागती ट्रेन पर सेल्फी लेकर क्या सिद्ध किया जाता हैइस मनोविकार के चलते रियल लाइफ पर रील लाइफ हावी होकर लोगों की जान लेती जा रही है.

 

इस तरह की जानलेवा हरकतों को सिवाय पागलपन के कुछ नहीं कहा जा सकता है. इस पागलपन को नियंत्रित किये जाने की आवश्यकता है. मोबाइल जिस काम के लिए बना है उसके लिए ही अधिकाधिक उपयोग किये जाने की आवश्यकता है. अन्यथा की स्थिति में यह पागलपन लगातार घरों के चिरागों को बुझाता रहेगा. मोबाइल के आने ने क्रांति की नई परिभाषा लिखीयह तो समझ आया मगर उसके साथ आये कैमरे और उस कैमरे से पैदा सेल्फी नामक नशा संवेदनहीनताबेशरमाईअशालीनता भी लिख देगासोचा नहीं था. 

14 सितंबर 2024

प्राध्यापकों का अनूठा विरोध प्रदर्शन

सत्ताएँ, कुर्सियाँ, प्राधिकारी जब अपने-अपने दायित्वों से च्युत होने लगते हैं, हो जाते हैं तो उनको अपनी आवाज़ सुनाने के लिए प्रताड़ित पक्ष को कुछ न कुछ कदम उठाने ही पड़ते हैं. अक्सर प्रताड़ित पक्ष अपनी अवहेलना के कारण, अपने कार्य में प्रगति होता न देख क्षुब्ध होकर क्रोधवश ऐसे कदम उठा लेता है जिसे सहज रूप में स्वीकार नहीं किया जाता है. ये जानते हुए भी कि विरोधात्मक कदम उठाने वाला पक्ष अपनी ओर से कतई गलत नहीं है मगर समाज आदर्शात्मक रूप में ऐसे किसी भी कदम का समर्थन नहीं करता है जो कि किसी भी तरह के आदर्श का ध्वंस करते हों, किसी भी तरह से सामाजिक व्यवस्था में अवरोध पैदा करते हों. यह बिन्दु उस समय और भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है जबकि विरोध का मुद्दा शिक्षित वर्ग से जुड़ा हो, शिक्षकों से सम्बंधित हो. इस को ध्यान में रखते हुए गांधी महाविद्यालय, उरई के प्राध्यापकों ने व्यवस्था के विरुद्ध आवाज़ भी उठाई और विरोध करने का, अपनी नाराजगी को प्रदर्शित करने का एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया.

 




विरोध का, नाराजगी का मामला चूँकि महाविद्यालय के प्राध्यापकों से जुड़ा हुआ था, ऐसे में उनके द्वारा ऐसे किसी भी कदम को गलत ठहराया जा सकता था, जिससे किसी व्यवस्था में अव्यवस्था उत्पन्न होने लगे. गुरुतर दायित्व-बोध का भान होने के कारण प्राध्यापकों द्वारा किये गए विरोध प्रदर्शन से महाविद्यालय के किसी भी कार्य में किसी भी तरह की रुकावट नहीं आई. महाविद्यालय में जिन कक्षाओं में अध्यापन कार्य चल रहा था, उन कक्षाओं का सञ्चालन भी सुचारू रूप से होता रहा. स्नातक और परास्नातक कक्षाओं में नवीन सत्र हेतु प्रवेश प्रक्रिया भी संचालित है, प्राध्यापकों ने इसका भी ध्यान रखा और उनके विरोधात्मक कदम के बाद भी विद्यार्थियों के प्रवेश सम्बंधित कक्षाओं में होते रहे. कार्यालयीन कार्य भी यथोचित रूप से संपन्न होते रहे.

 

आपको बताते चलें कि महाविद्यालयों में कैरियर एडवांसमेंट स्कीम के अन्तर्गत प्राध्यापकों की प्रोन्नति प्रक्रिया को अपनाया जाता है. इस प्रक्रिया के अंतर्गत प्रोन्नति के नियमों और सेवा-शर्तों को पूरा करने वाले प्राध्यापकों को निश्चित प्रारूप में अपना आवेदन समस्त अभिलेखों के साथ प्राचार्य कार्यालय में जमा करना पड़ता है. गांधी महाविद्यालय, उरई के दस प्राध्यापकों द्वारा यथोचित सेवा-शर्तों को पूरा करने के बाद अपनी प्रोन्नति सम्बन्धी आवेदन की फाइल को समस्त दस्तावेजों के साथ गत वर्ष, 2023 में 15 सितम्बर को प्राचार्य कार्यालय में जमा किया गया था. उसके बाद से अद्यतन सम्बंधित प्राधिकारी द्वारा, प्राचार्य द्वारा कोई आधिकारिक जानकारी किसी भी प्राध्यापक को नहीं दी गई और न ही इस सम्बन्ध में बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झाँसी द्वारा गठित साक्षात्कार पैनल को आधिकारीक ढंग से सूचित किया गया. सम्बंधित उच्चाधिकारी, प्राधिकारी की इस तरह की कार्य-संस्कृति के चलते पूरा एक वर्ष हो जाने के बाद भी वे दस प्राध्यापक अपनी प्रोन्नति की राह ताकने में लगे हैं.

 


इस तरह की कार्य-संस्कृति, कार्य-प्रणाली से क्षुब्ध होकर उन दस प्राध्यापकों के साथ-साथ अन्य जागरूक प्राध्यापकों ने विरोध का, अपनी नाराजगी प्रदर्शित करने का एक नया तरीका अपनाया. इस विरोध प्रदर्शन में सम्बंधित प्राध्यापकों ने एक वर्ष से फाइलों की स्थिति में प्रगति ने देखते हुए प्राचार्य कार्यालय में फाइल जमा करने की पहली वर्षगाँठ मनाई. अवसर भले ही विरोध करने का रहा, भले ही नाराजगी दिखाने का था, प्राचार्य की उदासीन कार्य-प्रणाली के विरुद्ध था मगर किसी भी तरह का तो शोर-शराबा किया गया, न किसी तरह की नारेबाजी की गई, न किसी तरह से कक्षाओं में अध्यापन कार्य को बाधित किया गया. नारेबाजी, शोरगुल, हंगामा आदि से उलट इस अवसर पर प्राध्यापकों द्वारा केक काट कर अपना विरोध जताया गया. केक के साथ-साथ महाविद्यालय के समस्त प्राध्यापकों, कर्मचारियों को जलपान भी करवाया गया. इसमें भी प्राध्यापकों ने गंभीरतापूर्वक व्यवहार अपनाते हुए इस बात का ध्यान रखा कि महाविद्यालय का अध्यापन अथवा कार्यालयीन कार्य बाधित न हो, इसलिए सभी विभागों में जलपान पहुँचाये जाने की व्यवस्था की गई.

 





महाविद्यालय के प्राध्यापकों ने इस अवसर पर कहा कि वे लोग शिक्षित वर्ग से आते हैं, शिक्षा देने का कार्य करते हैं. और तो और शिक्षक को राष्ट्र निर्माता कहा जाता है, ऐसे में उनके द्वारा विरोध के तरीके से एक तरह का सन्देश भी देना उनका उद्देश्य था, साथ ही विद्यार्थियों में भी चेतनात्मक विकास करवाना था. आज विरोध, अनशन के नाम पर देश की, समाज की संपत्ति को नुकसान पहुँचाया जाता है, समाज में अराजकता फैलाई जाती है, यह सब नकारात्मक प्रवृत्ति का परिचायक है. उन्होंने अपने इस तरह के शालीन, सभ्य, शांत विरोधात्मक कदम के द्वारा प्रयास किया है कि अपने दायित्वों, कार्यों के प्रति उदासीन प्राचार्य, प्राधिकारी संभवतः जाग सकें. प्राध्यापकों ने कहा कि प्रोन्नति के इस मुद्दे के साथ-साथ एनपीएस का मुद्दा भी उनके महाविद्यालय में उलझा हुआ है. इसके लिए भी प्राध्यापकों और कर्मियों द्वारा इसी तरह से शालीन, सभ्य विरोध प्रदर्शन करके उदाहरण निर्मित किया जायेगा.

 




विरोध प्रदर्शन के इस अवसर पर शिक्षक संघ अध्यक्ष रोहित कुमार पाठक, महामंत्री डॉ. धर्मेन्द्र कुमार, पूर्व नैक प्रभारी डॉ. ऋचा सिंह राठौर, पूर्व आईक्यूएसी संयोजक डॉ. कुमारेन्द्र सिंह सेंगर, डॉ. सुनीता गुप्ता, डॉ. ऋचा पटैरिया, प्रीति परमार, डॉ. मोनू मिश्रा, डॉ. के.के. गुप्ता, डॉ. के.के. त्रिपाठी, डॉ. मसऊद अंसारी, डॉ. कंचन दीक्षित, डॉ. इन्द्रमणि दूबे, डॉ. संदीप श्रीवास्तव, डॉ. शिवसंपत्त द्विवेदी, डॉ. वंदना सिंह, डॉ. विश्वप्रभा त्रिपाठी, कश्यप पालीवाल, महेन्द्र सिंह आदि उपस्थित रहे.