अमेरिका के
राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप ने जीत हासिल की. उन्होंने अपनी
प्रतिद्वन्द्वी कमला हैरिस को पराजित किया. राष्ट्रपति पद की जीत के लिए आवश्यक 270 इलेक्टोरल वोट के आँकड़े को पार करते
हुए इस जीत को हासिल किया. इस जीत से उन्होंने अमेरिका में 132 वर्ष पूर्व हुए
राष्ट्रपति चुनाव परिणाम की बराबरी कर ली है. दरअसल ट्रंप 2016 में अमेरिका के
राष्ट्रपति थे जो 2020 में हुए अगले राष्ट्रपति चुनाव में
हार गए थे. इस हार के बाद वे अब 2024 में पुनः विजयी हुए हैं.
अमेरिका में ऐसा 132 साल बाद हुआ है जब कोई व्यक्ति दूसरी
बार राष्ट्रपति बना हो मगर उसने चुनाव लगातार न जीता हो. डोनाल्ड ट्रंप के पहले
ग्रोवर क्लीवलैंड 1884 में और फिर 1892 में राष्ट्रपति बने थे.
डोनाल्ड ट्रंप की
जीत को लेकर भारत में अलग-अलग कयास लगाए जा रहे थे. उनकी जीत से भारतीय शेयर बाजार
पर भी प्रभाव पड़ता दिखा है. इसका एक कारण है कि अमेरिकी चुनाव भारतीय अर्थव्यवस्था
के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं. भारत का व्यापार अमेरिका के साथ
वैश्विक स्तर पर अपना महत्त्व रखता है. भारत-अमेरिका व्यापारिक संबंधों की दृष्टि
से देखा जाये तो दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 2021-2022 में 119.42 बिलियन अमेरिकी डॉलर का हुआ था, जबकि इसके पूर्व 2020-21
में यह 80.51 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था. इस
व्यापारिक संबंधों का प्रभाव निश्चित रूप से सकारात्मक ही होगा. ट्रंप के आने का सबसे ज्यादा फायदा उन उद्योगों को होने वाला है जो निर्यात
से जुड़े हैं. इसमें चाहे मैन्युफैक्चरिंग कम्पनियाँ हों या इन कम्पनियों के
उत्पादों को बाहर भेजने वाली कोई तीसरी कम्पनी. आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार ऑटोमोबाइल,
मशीनरी, टेक्सटाइल और कैमिकल आदि कुछ ऐसे क्षेत्र
हैं जिसमें निर्यातकों को बड़ा लाभ मिलने की उम्मीद है. ऐसा हमेशा से माना जाता
रहा है कि ट्रंप की नीतियाँ अमेरिकी कम्पनियों को भारत में निवेश के लिए भी
प्रोत्साहित करती हैं. इस कारण से भी भारत-अमेरिका के बीच पारस्परिक सह-संबंधों
में जबरदस्त सुधार देखने को मिल सकते हैं.
भारतीय निर्यात को
महत्वपूर्ण लाभ मिलने की उम्मीद के साथ-साथ ट्रंप द्वारा पूर्व में चीनी उत्पादों
पर हाई टैरिफ लगाए जाने का सकारात्मक असर भारतीय व्यापारिक नीति में दिखाई पड़ सकता
है. ट्रंप ने चीन से आने वाले सोलर पैनल, वॉशिंग मशीन, स्टील और
एल्युमीनियम समेत अनेक उत्पादों पर टैरिफ्स लगाए थे. इससे अमेरिका में उनका निर्यात
बहुत मुश्किल हो गया था. वहाँ की कम्पनियाँ इन उत्पादों की माँग की आपूर्ति के लिए
दूसरे विकल्पों की ओर देखने लगी थीं. इन विकल्पों में एक नाम भारत का भी शामिल था.
ऐसा माना जा रहा है कि वर्तमान जीत के बाद भी ट्रंप का रवैया या नजरिया चीन के
प्रति कोई खास बदलने वाला नहीं है. यदि ऐसा रहा तो निश्चित ही माल की आपूर्ति के
लिए वहाँ की कम्पनियों को दूसरे देशों को विकल्प के रूप में स्वीकारना होगा. ऐसी
स्थिति में भारत की मैन्युफैक्चरिंग क्षमता और अमेरिका के साथ इसके संबंध देश को
चीन का विकल्प बनने के लिए प्रबल दावेदार बनाते हैं. इससे अमेरिकी बाजार में ऑटो पार्ट, सौर उपकरण और
रासायनिक उत्पाद आदि भारतीय निर्माताओं को स्थान मिल सकता है.
निर्यातक क्षेत्र
में महत्त्वपूर्ण सफलता मिलने की एक उम्मीद के साथ-साथ मैन्युफैक्चरिंग और रक्षा
क्षेत्र में ट्रंप की नीतियों का लाभ भारतीय विनिर्माण क्षेत्र में तेजी ला सकता
है. अमेरिकी इन क्षेत्रों को मजबूत बनाने के लिए भारतीय रक्षा कम्पनियों के साथ बेहतर
सम्बन्ध स्थापित कर सकते हैं. भारत-अमेरिका के बीच रक्षा और सैन्य सहयोग पिछले कुछ
वर्षों में मजबूत हुआ है. क्वाड समूह के द्वारा इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के
प्रभाव को कम करने सम्बन्धी कदम उठाया था. ट्रंप के पिछले कार्यकाल में हिन्द
महासागर और प्रशांत महासागर क्षेत्र में अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच क्वाड
समूह के द्वारा सुरक्षा साझेदारी को मजबूत किया गया था. ऐसी स्थिति में वर्तमान में ट्रंप प्रशासन के
नेतृत्व में भारत और अमेरिका के बीच रक्षा सहयोग को बेहतर तथा मजबूत बनाये जाने की
प्रबल सम्भावना है.
इन व्यापारिक, रक्षा सम्बन्धी मामलों के साथ-साथ
ऐसा माना जा रहा है कि ट्रंप की जीत से रूस-यूक्रेन युद्ध में शांति आने की
सम्भावना है. अपने चुनाव प्रचार के दौरान ट्रंप लगातार यह कहते नजर आये हैं उनके
जीतने का सुखद परिणाम रूस-यूक्रेन युद्ध रुकने के रूप में सामने आएगा. यद्यपि
अमेरिका और भारत की नीति एवं वैचारिक रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर अलग-अलग रही है
किन्तु जिस तरह से प्रधानमंत्री मोदी कई मंचों पर कहते नजर आये हैं कि ये युद्ध का
समय नहीं है, ऐसे में संभव है कि ट्रंप की पहल से यह युद्ध रुक जाये. युद्ध का
रुकना भारतीय सन्दर्भों में भी लाभकारी है. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रूस-यूक्रेन
युद्ध के साथ-साथ ट्रंप बांग्लादेश मामले में भी वहाँ हिन्दुओं पर हो रही हिंसा का
विरोध करते रहे हैं. ऐसे में जबकि माना जा रहा है कि बांग्लादेश की वर्तमान अंतरिम
सरकार में अमेरिका का हस्तक्षेप बना हुआ है. ऐसे में ट्रंप के आने से एक उम्मीद यह
भी है कि बांग्लादेश के हालात और वहाँ हिन्दुओं की हालत में सुधार होगा. यदि ऐसा
होता है तो यह भी निश्चित रूप से भारत के लिए लाभकारी होगा.