कुछ सीखें, बातें ज़िन्दगी भर काम आती हैं. ऐसा कुछ है हमारे साथ बाबा जी की बातों को लेकर. उनका अपने साथ सुबह की सैर पर हम तीनों भाइयों को ले जाना और पूरे रास्ते किसी न किसी कहानी, किसी न किसी दृष्टान्त के माध्यम से जीवन की सच्चाई को समझाना, जीवन में आने वाली समस्याओं से निपटने की सलाह देना.
अपने बाबा जी के साथ अक्सर अपने लेखन सम्बन्धी चर्चा कर लिया करते थे. बचपने का अपरिपक्व लेखन बाबा जी की अनुभवी आँखों के सामने से गुजरता रहता, इसी कारण वे लेखन की गम्भीरता को देख भी रहे थे. सुबह की अपनी यात्रा के दौरान एक दिन बाबा जी ने हमारे लिखे किसी लेख की चर्चा करते हुए उस लेख के एकदम विपरीत बिन्दुओं पर विमर्श शुरू किया. बाबा जी के कुछ प्रश्नों का उत्तर तो हम दे सके, कुछ में अटक गए. ऐसे में बाबा जी ने हमारे लेख की प्रशंसा करते हुए कहा कि तुम लिखने लगे हो, ऐसे में किसी भी मुद्दे को, विषय को दोनों पक्षों की तरफ से देखो. जरूरी नहीं कि दोनों पक्षों को शामिल करते हुए लिखा जाये मगर दिमाग में दोनों पक्ष रहने चाहिए.
इसके अलावा और भी बहुत सी बातें बाबा जी द्वारा लेखन के सम्बन्ध में बताई गईं, जो आज भी हमारे लिए मार्गदर्शन का काम करती हैं. बचपने से पड़ी लेखन की आदत आज भी बनी हुई है, बाबा जी द्वारा दोनों पक्षों को विचार करने की बात आज भी कंठस्थ है और इसी का परिणाम है कि किसी भी मुद्दे पर, किसी भी विषय पर बाल की खाल निकालने की हद तक चले जाते हैं.
आज हमारे बाबा जी की पुण्यतिथि है. उनको सादर चरण स्पर्श... सादर श्रद्धांजलि.
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