स्वतंत्रता दिवस
के अवसर पर लाल किले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में सेमीकंडक्टर चिप
के बारे में चर्चा करते हुए कहा था कि वर्ष 2025 के अंत तक
भारत की पहली स्वदेशी सेमीकंडक्टर चिप बाजार में होगी. इसके
कुछ दिन बाद ही सेमीकॉन इंडिया 2025 आयोजन में देश की पूरी
तरह से स्वदेशी माइक्रोप्रोसेसर चिप को पेश किया गया. विक्रम नामक चिप को भारतीय
अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की सेमीकंडक्टर लैबोरेट्री (SCL)
ने बनाया है. यह 32-बिट माइक्रोप्रोसेसर है,
जिसे पूरी तरह से देश में डिजाइन किया और बनाया गया है. देश की पहली
एवं पूर्णतः स्वदेशी चिप को विशेष रूप से अंतरिक्ष मिशनों के लिए तैयार किया गया
है. अंतरिक्ष में रॉकेट प्रक्षेपण की कठिन परिस्थितियों को सहने में सक्षम यह चिप
-55 डिग्री सेल्सियस से लेकर +125 डिग्री
सेल्सियस तक के तापमान में काम कर सकती है. सेमीकॉन इंडिया 2025 इवेंट में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चिप्स को डिजिटल डायमंड के रूप
में परिभाषित किया. सेमीकंडक्टर चिप जिसे माइक्रोचिप या इंटीग्रेटेड सर्किट भी
कहते हैं. यह एक छोटा सा इलेक्ट्रॉनिक उपकरण होता है, जो सिलिकॉन का बना होता है.
यह अपने छोटे से आकार में लाखों-करोड़ों ट्रांजिस्टर समेटे इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल को
नियंत्रित करता है. स्मार्टफोन, कम्प्यूटर, टेलीविजन, कार, मेडिकल उपकरण,
सैटेलाइट, मिसाइल आदि के लिए ये चिप दिमाग की तरह काम करती है.
वर्तमान डिजिटल
युग में तमाम सारे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, जो आज हमारे जीवन का प्रमुख हिस्सा हैं, इन्हीं सेमीकंडक्टर चिप के सहारे
काम करते हैं. जीवन शैली को सहज और सरल बनाने में उपयोगी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में
प्रयोग होने वाली चिप का उत्पादन गिने-चुने देशों में ही होता है. ताइवान, दक्षिण कोरिया और अमेरिका इसके उत्पादन के केन्द्र-बिन्दु हैं. भारत को भी
इन्हीं देशों पर निर्भर रहते हुए चिप सम्बन्धी माँग को पूरा करने के लिए इनसे आयात
करना पड़ता है. आज भले ही गिने-चुने देशों के पास चिप उत्पादन की क्षमता हो मगर
सेमीकंडक्टर चिप के आविष्कार, निर्माण की यात्रा वैश्विक
स्तरीय रही है. देखा जाये तो सेमीकंडक्टर चिप का इतिहास 1947 में ट्रांजिस्टर के आविष्कार से शुरू हुआ. जब अमेरिका के बेल लैब्स के
विलियम शॉकली, वाल्टर ब्रेटेन और जॉन बार्डीन ने जर्मेनियम
पर आधारित पहला ट्रांजिस्टर बनाया. इसके बाद 1958 में टेक्सास
के जैक किल्बी ने जर्मेनियम का उपयोग करते हुए विश्व के पहले इंटीग्रेटेड सर्किट (IC)
का निर्माण किया. इसके कुछ महीनों पश्चात् 1959 में फेयरचाइल्ड
सेमीकंडक्टर के रॉबर्ट नॉयस ने सिलिकॉन का उपयोग करते हुए इंटीग्रेटेड सर्किट बनाया.
इस आविष्कार ने कालांतर में आधुनिक सेमीकंडक्टर चिप निर्माण की राह निर्मित की. जिस
आधुनिक चिप का स्वरूप आज हमारे सामने है उसका आधार 1959 में मेटल
ऑक्साइड सेमीकंडक्टर फील्ड इफेक्ट ट्रांजिस्टर (MOSFET) के
रूप में बना.
भारतीय सन्दर्भ
में यदि सेमीकंडक्टर के इतिहास पर नजर डालें तो अस्सी के दशक के आरम्भ में सेमीकंडक्टर
चिप निर्माण हेतु चंडीगढ़ में सेमीकंडक्टर कॉम्प्लेक्स लिमिटेड (SCL) की स्थापना की गई थी. तकनीकी एवं आर्थिक
कारणों से सेमीकंडक्टर चिप निर्माण में अवरोध उत्पन्न होने के कारण लम्बे समय तक
देश को इसके लिए दूसरे देशों पर निर्भर रहना पड़ा. दूसरे देशों पर निर्भरता की एक
लम्बी यात्रा पूरी करने के बाद अपनी पहली पूर्ण स्वदेशी सेमीकंडक्टर चिप विक्रम के
निर्माण पश्चात् भारत ने अब अगली जनरेशन की सेमीकंडक्टर तकनीक में कदम रख दिया है.
केन्द्रीय सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने 16 सितम्बर को बेंगलुरु में एआरएम (ARM) के नए कार्यालय का उद्घाटन किया. यहाँ पर विश्व की सबसे उन्नत किस्म की चिप्स
तकनीक पर काम शुरू किया जायेगा. जिनमें एआई सर्वर, ड्रोन और मोबाइल उपकरणों के लिए 2 नैनोमीटर प्रोसेसर
शामिल हैं. एआरएम के नए डिजाइन ऑफिस में 2 नैनोमीटर चिप तकनीक पर काम शुरू
होना भारत को दुनिया के उन चुनिंदा देशों की सूची में शामिल करता है जो हाईटेक चिप
बना सकते हैं. यह तकनीक निश्चित रूप से देश को वैश्विक स्तर पर सेमीकंडक्टर हब
बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम समझी जा सकती है. इससे पहले मई 2025 में नोएडा और बेंगलुरु में 3 नैनोमीटर चिप डिजाइन
सेंटर खोले जा चुके हैं.
सरकार की पहल पर
भारत में सेमीकंडक्टर इंडिया कार्यक्रम का आरम्भ 2021 में हुआ. इसके अंतर्गत 2023
में पहले प्लांट को मंजूरी मिलने के बाद कई अन्य परियोजनाओं को भी मंजूरी मिली.
इससे अब तक छह राज्यों में दस परियोजनाएँ प्रगति पथ पर हैं, जिसमें लगभग 1.6 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया गया है. इस मिशन के अंतर्गत 76000 करोड़ रुपये का सरकारी बजट भी निर्धारित कर दिया गया है. देश में ही
सेमीकंडक्टर का उत्पादन आरम्भ होने के बाद से भारत में जहाँ बड़े निवेश आकर्षित हुए
हैं वहीं स्वदेशी चिप डिज़ाइन कम्पनियों ने भी अपनी रुचि दिखाई है. ये कम्पनियाँ और
बहुतेरे स्टार्टअप रक्षा, इलेक्ट्रॉनिक वाहनों, अन्तरिक्ष क्षेत्र के लिए विशेष रूप से चिप्स का उत्पादन कर रही हैं. अर्थव्यवस्था
की दृष्टि से भी सेमीकंडक्टर चिप निर्माण में वैश्विक संभावनाएँ हैं. इस समय
वैश्विक बाजार लगभग 600 अरब डॉलर तक पहुँच चुका है. ऐसे में भारत के लिए व्यापक
अवसर यहाँ उपलब्ध हैं. ऐसी सम्भावना जताई जा रही है कि 2026 तक भारत में इस
क्षेत्र में लगभग दस लाख नए रोजगार सृजित किये जाने की उम्मीद है.
वर्तमान में
ताइवान, अमेरिका, दक्षिण कोरिया, चीन, मलेशिया देश चिप निर्माण करते
हैं. अब जबकि भारत ने इस क्षमता को विकसित कर लिया है तो निकट भविष्य में भारतीय
इलेक्ट्रोनिक्स उद्योग को आत्मनिर्भर बनने, वैश्विक
प्रतिस्पर्द्धा करने से कोई नहीं रोक सकता है. देश का स्वदेशी सेमीकंडक्टर सिस्टम
भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करेगा साथ ही इलेक्ट्रॉनिक्स, अन्तरिक्ष, स्वास्थ्य, ऊर्जा, रक्षा आदि
क्षेत्रों में भारत को विश्व में अग्रिम पंक्ति में खड़ा करेगा.
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