12 सितंबर 2025

जल के साथ न खेलें खेल

हम सभी को संभवतः याद हो कि कुछ समय पूर्व खबर आई थी कि चेन्नई देश का पहला ऐसा शहर हो गया है जहाँ भूमिगत जल पूरी तरह से समाप्त हो गया है. यह खबर चौंकाने से ज्यादा डराने वाली होनी चाहिए थी मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ. इस खबर ने हम लोगों को न ही चौंकाया और न ही डराया. इसे एक समाचार की तरह, एक जानकारी की तरह देखने-सुनने के बाद जल के साथ खेल करना जारी रखा. यह असंवेदनशीलता तब है जबकि हम सभी को जानकारी है कि धरती के सत्तर प्रतिशत भाग में जल होने के बाद भी मात्र एक प्रतिशत ही मानवीय आवश्यकताओं के लिये उपयोगी है. ऐसा अनुमान है कि धरती के हर नौवें इंसान को ताजा तथा स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं है. इस अनुपलब्धता के कारण संक्रमण और अन्य बीमारियों से प्रतिवर्ष पैंतीस लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है.

 

जल-संकट की स्थिति को यदि अपने देश के सन्दर्भ में देखे तो वर्तमान में लगभग बीस करोड़ भारतीयों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध नहीं हो पाता है. नगरों में भूगर्भीय जल का अत्यधिक दोहन होने के कारण शहरी क्षेत्र जल-संकट से परेशान हैं. पेयजल की कमी होने से एक तरफ पेयजल संकट बढ़ा है वहीं दूसरी तरफ पानी की लवणीयता भी बढ़ी है. देश में औद्योगीकरण ने, जनसंख्या की तीव्रतम वृद्धि ने जल-संकट उत्पन्न किया है. प्रतिदिन बढ़ती जनसंख्या के आँकड़ों के अनुसार स्वतंत्रता के बाद प्रतिव्यक्ति पानी की उपलब्धता में साठ प्रतिशत की कमी आयी है. सरकार के नीति आयोग ने जल संकट के प्रति आगाह करने वाली कंपोज़िट वाटर मैनेजमेंट इंडेक्सए नेशनल टूल फॉर वाटर मेज़रमेंटमैनेजमेंट ऐंड इम्प्रूवमेंट नामक एक रिपोर्ट  में माना था कि भारत अपने इतिहास के सबसे भयंकर जल संकट से जूझ रहा है. देश के क़रीब साठ करोड़ लोगों अर्थात पैंतालीस प्रतिशत जनसंख्या को पानी की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है. इसी रिपोर्ट में बताया गया था कि वर्ष 2020 तक देश के इक्कीस प्रमुख शहरों में भूगर्भ जल समाप्त हो जाएगा. वर्ष 2030 तक देश की चालीस प्रतिशत आबादी को पीने का पानी उपलब्ध नहीं होगा.

 



चेन्नई के साथ-साथ दिल्ली, हैदराबाद, बेंगलुरु आदि को भूगर्भ जल संकट के रूप में चिन्हित किया जाना नीति आयोग के आँकड़ों की भयावहता को दर्शाता है. इस भयावहता की तरफ आज भी लोग संवेदित नहीं हो सके हैं. जिस देश में जहाँ सदानीरा नदियाँ बहा करती थीं, कुँए, तालाब, झीलें जल के परंपरागत स्त्रोत हुआ करते थे, वहाँ जल-संकट उत्पन्न होना वहाँ के नागरिकों द्वारा उठाये जाने वाले असंवेदित कदम ही हैं. नगरीकरण ने परंपरागत जल-स्त्रोतों- कुँओं, तालाबों और झीलों को निगल लिया है. देश में वर्तमान में प्रतिव्यक्ति जल की उपलब्धता 2000 घनमीटर है. यदि हालात न सुधरे तो आगामी वर्षों में जल की उपलब्धता घटकर 1500 घनमीटर रह जायेगी. वैज्ञानिक आधार पर जल की उपलब्धता का 1680 घनमीटर से कम हो जाने का अर्थ पेयजल से लेकर अन्य दैनिक उपयोग के लिए पानी की कमी का होना है.

 

पानी की दिन पर दिन विकराल होती जा रही समस्या के समाधान के लिए गंभीरतापूर्वक विचार करने की आवश्यकता है. ऐसा इसलिए क्योंकि जल की उपलब्धता लगातार कम हो रही और उसके उलट इसकी माँग लगातार बढ़ती जा रही है. देखा जाये तो जल का चौतरफा उपयोग किया जाता है. कृषि में, घरेलू कार्यों में, उद्योगों में तो मुख्य रूप से जल का उपयोग होता ही है, इसके अलावा रासायनिक क्रियाओं में, पर्यावरणीय उपयोग में भी जल का बहुतायत उपयोग किया जाता है. अतः सरकारों और समुदायों को उचित जल प्रबंधन की ओर तत्काल ध्यान देने की ज़रूरत है. देश में प्रतिवर्ष बारिश के द्वारा लगभग चार हजार अरब घनमीटर जल की उपलब्ध होता है किन्तु मात्र आठ प्रतिशत जल ही संरक्षित हो पाता है. वर्षा जल को तकनीक के माध्यम से एकत्र किया जा सकता है. इसके लिए बरसात के पानी को खुले में रेन वाटर कैच पिट बनाकर उसे धरती में समाहित कर सकते हैं. इससे एक तो वर्षा जल की बहुत बड़ी मात्रा बर्बाद होने से बचेगी साथ ही जल संचयन के द्वारा भूगर्भ जल स्तर भी बढ़ाया जा सकता है. शहरों में प्रत्येक आवास के लिए रिचार्ज कूपों का निर्माण किया जाना चाहिएजिससे वर्षा का पानी नालों में न बहकर जमीन में संचयित हो जाये. इसके अलावा प्रत्येक मकान में आवश्यक रुप से वाटर टैंक बनाये जाने चाहिए, जिनमें वर्षा जल को संरक्षित किया जा सके. जल-संकट के दौरान या फिर घरेलू उपयोग की अन्य अवस्था में इस पानी का उपयोग किया जा सकता है.

 

वास्तव में आज आवश्यकता इस बात की है कि हम जल के किसी भी रूप का पूरी तरह से संरक्षण करें. यह जल भले ही भूगर्भ के रूप में हो, वर्षा जल हो, घरेलू, औद्योगिक रूप से उपयोग का जल हो. इन सभी का पूर्ण रूप से संचय करना होगा. आवश्यकता इसके प्रति लोगों की मानसिकता विकसित करने की, लोगों को प्रोत्साहित करने की. अब हालात ऐसे हो गए हैं कि महज कमियाँ निकाल करअव्यवस्थाओं का रोना रोकर इनका समाधान नहीं किया जा सकता है. अब जल को बचाए जाने की आवश्यकता है. सरकार के साथ-साथ यहाँ के जनसामान्य को जागरूक होने की आवश्यकता है. वर्षा जल संग्रहण की व्यवस्था भी करनी होगी. अपने-अपने क्षेत्रों के तालाबोंजलाशयोंकुँओं आदि को गन्दगी सेकूड़ा-करकट से बचाने के साथ-साथ नए तालाबोंकुँओं आदि का निर्माण भी करना होगा. भविष्य की भयावहता को वर्तमान हालातों से देखा-समझा जा सकता है. एक-एक दिन की निष्क्रियता अगली कई-कई पीढ़ियों के दुखद पलों का कारक बनेगी. अब समय है कि जल से होने वाले खेल को रोका जाये.

 


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