08 सितंबर 2025

कुछ कर या न कर मगर सोशल मीडिया में डाल

अभी कुछ दिन पहले हमारे एक मित्र का मिलना हुआ. तमाम सारी बातों के बाद चलते समय वे एक बिन्दु हमारी तरफ उछाल गए और चलते-चलते बोले कि इस पर कुछ लिखिए. उनका कहना था कि आजकल त्रयोदशी संस्कार में ये देखना आम बात हो गई है कि लोग आते हैं, बैठते हैं और फिर खुद को एक तरह के वीआईपी स्टेटस में रखते हुए 'बस जरा प्रसाद ले लेंगे' बोलकर कुछ न कुछ खाद्य-सामग्री मँगवा कर उसका स्वाद ले लेते हैं.

 

मित्र का कहना एकदम सही है. आजकल यही हो भी रहा है. किसी समय में ऐसी व्यवस्था उनके लिए बनाई गई होगी जो किसी तरह से अक्षमता का अनुभव करते होंगे मगर आज ये स्टेटस सिम्बल बन गया है. संस्कार से सम्बंधित स्थान पर पड़ी कुर्सियों पर बैठना और फिर वहीं पर खीर, बूँदी, रसगुल्ला आदि-आदि मँगवा कर ग्रहण करना और चलते बनना.

 

इस पर विस्तार से लिखा जायेगा. इस तरह की स्थिति के साथ-साथ अब एक और स्थिति देखने को मिल रही है और वो है त्रयोदशी संस्कार में पहुँच कर वहाँ फोटो सेशन करवाने की. दिवंगत व्यक्ति के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित करने पर, वहाँ किसी परिचित के मिल जाने पर, किसी माननीय के प्रकट हो जाने पर, किसी जनप्रतिनिधि, प्रशासनिक अधिकारी आदि के आ जाने पर फोटो सेशन करवाने का अर्थ समझ नहीं आता.

 

बहरहाल, अब जमाना करने से ज्यादा दिखाने का है. गोपनीय रखने से ज्यादा अगोपन का है. खुद तक सीमित रखने से ज्यादा सोशल मीडिया में डालने का है. वाकई ज़माना अब 'नेकी कर कुँए में डाल' से ज्यादा 'कुछ कर या न कर मगर सोशल मीडिया में डाल' का है.


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