ध्यान रखना, ये नेरेटिव भाजपा के खिलाफ नहीं बल्कि मोदी-योगी के विरोध में तैयार किया जा रहा है.
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योगी जी की उरई में हुई जनसभा के बाद दो-चार फोटो को केन्द्र में रखते हुए अनेक पोस्ट लिखी जा रही हैं. कुछेक को छोड़कर बाकी पोस्ट में पूर्व पदाधिकारियों की उपेक्षा की बात कही जा रही है.
यहाँ एक बात सबसे पहले भाजपा के ही पूर्व एवं वर्तमान पदाधिकारियों को, साथ ही भाजपा के आनुसंगिक संगठनों के पूर्व एवं वर्तमान पदाधिकारियों को याद रखनी चाहिए चाहिए कि इस जनसभा की स्वीकृति आने वाले दिन से ही इसे जिला प्रशासन का कार्यक्रम बताया जा रहा था. ऐसे में यह भी याद रखना होगा कि प्रशासन और सरकार एक तरह से एक सिक्के के दो पहलू होते हैं. ऐसे में मंच पर सरकार को ही वरीयता मिलनी थी.
एक बात और, जिले में भाजपा के अनेक पूर्व जिलाध्यक्ष है, क्या सबको ही मंच पर स्थान मिला था? यहाँ एक बात उन सभी को ध्यान रखनी चाहिए जो अपने आपको भाजपा का कर्तव्यनिष्ठ कार्यकर्त्ता बताते हैं, निष्ठावान बताते हैं कि किसी भी जिले के किसी भी संगठन में पद गिनी-चुनी संख्या में होते हैं मगर कार्यकर्त्ता लाखों में होते हैं. ऐसे में सभी को पदाधिकारी भी नहीं बनाया जा सकता और हजारों पूर्व पदाधिकारियों को मंच पर स्थान उपलब्ध नहीं कराया जा सकता.
जहाँ तक बात आयातित लोगों की है तो यहाँ भी दोष हम कार्यकर्ताओं का है. किसी भी दल से भाजपा में आने वाले बाहुबली, धनबली का स्वागत ऐसे करते हैं जैसे वह जन्म से ही भाजपा का कार्यकर्त्ता रहा हो. ठीक है कि शीर्ष नेतृत्व ने सत्ता-सुख के लिए, सीटों के लालच में, धन के कारण दूसरे दल से आये व्यक्ति को न केवल भाजपा में शामिल किया बल्कि उसे पद भी दिया, मगर इस स्थिति का भाजपा के सक्रिय, निष्ठावान कार्यकर्ताओं में से कितनों ने विरोध किया? विरोध तो दूर की बात, उस आयातित व्यक्ति का कालपी में यमुना पुल पर जिंदाबाद-जिंदाबाद करते हुए न केवल स्वागत किया बल्कि चौबीस घंटे उसी के इर्द-गिर्द टहलना शुरू कर दिया.
कुछ मिलने की आस में जिस तरह से कार्यकर्ताओं ने भी पलटी मारी है, उसे संगठन के कतिपय स्वार्थी लोगों ने समझा है, परखा है. यही कारण है कि बहुत से सच्चे कार्यकर्त्ता या तो संगठन से दूर हो गए हैं या फिर खुद को निष्क्रिय कर बैठे हैं. जनसभा में उपेक्षा या सादगी वाली बात से ज्यादा इसी तत्त्व ने अपनी भूमिका का निर्वहन किया है.
ध्यान रखिये कि कोई भी दल हो वह उसके कार्यकर्ताओं से है और इसके लिए कार्यकर्ताओं को भी सशक्त होना पड़ेगा, स्वार्थ-लिप्सा से दूर होना पड़ेगा, शीर्ष पदाधिकारियों के, विधायक-सांसद-मंत्री की चरण-वंदना करने से, परिक्रमा करने से, चाटुकारिता करने से बचना होगा. यदि ऐसा नहीं हो पा रहा है तो फिर शीर्ष क्रम के, आयातित लोगों के हाथों की कठपुतली बने रहिये, ऐसे ही उपेक्षित होने का रोना रोते रहिये.
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