08 जुलाई 2025

इसे दोस्ती नहीं कहते यारो!

फ्रेंड्स विद बेनिफिट्स, इस आधुनिक शब्दावली से आप परिचित हैं? संभवतः नहीं ही होंगे किन्तु युवा वर्ग इससे अवश्य ही परिचित होगा. दरअसल विगत वर्षों में समाज ने जिस तेजी से विकास किया है, नवीनतम तकनीकी को अपनाया है उसी तेजी से उसने आधुनिक जीवनशैली को अपनाया है, उनके परिदृश्य में अपना विकास किया है. इस विकास को अपनाने में सर्वाधिक सक्रियता युवाओं ने, विशेष रूप से विषमलिंगी युवा जोड़ों ने दिखाई है. जिसके चलते समाज की प्रचलित, बंधी-बंधाई सी परिभाषाओं, शब्दावलियों से अलग इस तरह की नवीन अवधारणाओं जन्म होता रहता है. इस तरह की नवीन जीवनशैली ने, नवीन रिश्तों ने तमाम सारे सामाजिक, पारिवारिक बंधनों को, मान्यताओं को नकारते हुए अपनी ही मान्यताएँ, अपने ही जीवन-मूल्य स्थापित किये हैं.

 

इन नवीन परिभाषाओं, मान्यताओं ने न केवल ज़िन्दगी जीने का अंदाज़ बदला है बल्कि रिश्तों का, संबंधों का स्वरूप भी परिवर्तित किया है. इस तरह की मान्यताओं को संस्कृति, सभ्यता, जीवन-मूल्य आदि के सापेक्ष देखने के स्थान पर तात्कालिक आवश्यकता, क्षणिक सामाजिक अवधारणा के रूप में देखा जाना चाहिए. फ्रेंड्स विद बेनिफिट्स में दोस्ती का सन्दर्भ दो विषमलिंगियों के आपस में मिलने से है. यह एक ऐसा रिश्ता है जिसमें दो विषमलिंगी बिना किसी प्रतिबद्धता के, शारीरिक रूप से अंतरंग होते हैं. यहाँ आपसी सम्बन्ध का नाम दोस्ती होता है मगर यह दोस्ती उस रूप में नहीं होती जो प्रतिबद्धता की बात करे. एक-दूसरे के प्रति समर्पण, विश्वास का भाव रखे. इस हाथ दे, उस हाथ ले वाली बात यहाँ लागू होती है और यहीं से आरम्भ होती है बेनिफिट्स वाली अवधारणा. यहाँ रिश्तों की बुनियाद आपसी शर्तों के आधार पर काम करती है जहाँ भावनाओं का कोई मोल नहीं. वर्तमान आर्थिक, भोगवादी मानसिकता में जहाँ अकेलापन हैकाम का असीमित बोझ हैकार्य-स्वरूप में अनियमितता है वहाँ इस तरह के सम्बन्ध बड़ी ही आसानी से बनते देखे जाते हैं. सहजता से कुछ भी कहीं भी मिल जाने की स्थिति ने इस प्रकार के रिश्तों को और भी तवज्जो दी है. किसी के सामने कोई जिम्मेदारी वाला भाव नहीं. माँग और आपूर्ति का सिद्धान्त यहाँ पूरी तरह से लागू होता है.

 



ऐसे रिश्तों की गहराई में जाकर देखना होगा कि हम जिस समाज की कल्पना कर रहे हैं वह किस प्रकार के रिश्तों से बनता हैयह सार्वभौम सत्य है कि आज के युग में परिवारों के टूटने का चलन तेजी से बढ़ा है. लड़के और लड़कियों में कार्य करने कीघर से बाहर रह कर कैरियर बनाने की मानसिकता में अन्य जरूरतों के साथ-साथ शरीर ने भी अपनी जरूरत के अनुसार रिश्तों को स्वीकारना सीखा है. फ्रेंड्स विद बेनिफिट्स को वह युवा वर्ग, जिसकी ये जरूरत है स्वीकार चुका है क्योंकि समाज का यह वर्ग आज प्रत्येक कार्य के ऊपर सेक्स को महत्व दे रहा है. इनकी स्वच्छंद सोच पर उनके अभिभावकों का नियंत्रणसमाज का नियंत्रण दकियानूसी समझा जाने लगा है. जल्द से जल्द अपने आपको सफलता के मुकाम पर ले जानेआधुनिकता के नाम पर कुछ भी करने को स्वतंत्रता मान लेने की मानसिकता ने युवाओं को एक प्रकार की अंधी दौड़ में शामिल करवा दिया है. इस दौड़ में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के पैकेजवैश्वीकरण की रंगीन मानसिकताबाँहों में विपरीतलिंगी साथी, सड़क पर बेतहाशा दौड़ते वाहनधन का अंधाधुंध दुरुपयोग आदि उत्प्रेरक की भूमिका निभा रहे हैं.

 

युवा वर्ग जिसे समूचा विश्व मुट्ठी में बंद दिखता हैएक क्लिक पर समूची दुनिया उन्हें अपने सामने खड़ी दिखाई पड़ती हैऐसे में वह अपने को किसी से भी कमतर नहीं समझता है. इसमें युवा कहाँ जाकर स्वयं को नियंत्रित करेगा; आर्थिक प्राथमिकता के दौर में नैतिक पतन को कौन सँभालेगा, कहा नहीं जा सकता. आज का युवा पूरी तरह से स्वतंत्रता पाने को लालायित है. अपनी स्वतंत्र अभिव्यक्ति, भले ही किसी भी तरह से हो, करने के लिए उत्साहित है. स्वतंत्रता के नाम पर, अभिव्यक्ति के नाम पर उच्छृंखलता, उन्मुक्तता को ज़िन्दगी का मूल समझ कर युवा कभी वन नाईट स्टैंड की, कभी लिव-इन रिलेशन की, कभी लिविंग टुगेदर की, कभी फ्रेंड्स विद बेनिफिट्स की मरीचिका में भटकता रहता है. यहाँ इस तरह के संबंधों को, ऐसी दोस्ती को महत्त्व देने वाले युवा जोड़ों को संबंधों की, रिश्तों की भावना को समझना होगा. ऐसे सम्बन्ध क्षणिक संतुष्टि देते भले प्रतीत हों मगर अपनत्व के अभाव में इनके पार्श्व में संतुष्टि नहीं होती है, गम्भीरता नहीं होती है.

 

ऐसे रिश्ते को प्राथमिकता देने वाले युवा जोड़ों को दोस्ती का, दोस्त का, शारीरिक सम्बन्धों का अर्थ और सन्दर्भ समझना होगा. यदि दो विषमलिंगी दोस्ती करना चाहते हैं तो उसके लिए आवश्यक है कि वे इस तरह के रिश्ते को पूरी गरिमा के साथ समझें. दोस्ती का तात्पर्य उन दोनों लोगों के लिए क्या है, इस समझ और स्वीकृति के साथ रिश्ते को आगे बढ़ाना चाहिए. दो विषमलिंगी मित्रों को यह समझना होगा दोस्तों के बीच अंतरंगता का अर्थ सिर्फ शारीरिक संबंध ही नहीं हैं. मित्र की इच्छाओं, उसकी आवश्यकताओं को जानना-पहचानना भी महत्वपूर्ण है और इसके लिए खुला संवाद, भावनात्मक समर्थन, निस्वार्थ सहयोग प्रदान करना भी एक तरह की अंतरंगता है. दोस्ती, प्यार, शारीरिक सम्बन्ध आदि के मायने समझते हुए दोस्ती को, दोस्त को फ़िल्मी फूहड़पन से बचाए जाने की आवश्यकता है. दोस्ती को लाभ के लिए न करें, दोस्त लाभ के लिए न बनाएँ अर्थात दोस्ती में स्वार्थ या व्यक्तिगत लाभ के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए. यह एक अनमोल रिश्ता है जो बिना किसी शर्त के विश्वास, प्यार और सहयोग पर आधारित होना चाहिए. ध्यान रखें, दोस्त मुश्किल समय में साथ देने वाले होते हैं. प्रोत्साहित करने वाले, बेहतर इंसान बनाने वाले होते हैं. फ्रेंड्स विद बेनिफिट्स कुछ भी हो सकते हों मगर फ्रेंड नहीं हो सकते.


05 जुलाई 2025

शौक जिंदा है आज भी दिल में

आज, 05 जुलाई को विश्व बैडमिंटन दिवस का आयोजन किया जाता है. वर्ष 1934 में आठ संस्थापक सदस्यों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय बैडमिंटन महासंघ की स्थापना की गई. इसकी स्थापना 5 जुलाई 1934 को लंदन में हुई थी. इसके संस्थापक सदस्यों में नाडा, डेनमार्क, इंग्लैंड, फ्रांस, आयरलैंड, नीदरलैंड, न्यूजीलैंड, स्कॉटलैंड और वेल्स थे. कालांतर में यही संगठन बैडमिंटन वर्ल्ड फेडरेशन (BWF) के रूप में जाना गया. सुखद स्थिति यह है कि आज यही फेडरेशन समूची दुनिया में प्रत्येक देश और महाद्वीप का प्रतिनिधित्व करते हुए वहाँ बैडमिंटन के प्रति सकारात्मक कदम उठा रहा है. वर्ष 2023 में फेडरेशन के द्वारा निर्णय लिया गया कि 5 जुलाई वह दिन होगा जब इसकी स्थापना के लिए सम्पूर्ण दुनिया में बैडमिंटन से सम्बंधित प्रतेक चीज़ के लिए जश्न मनाया जाएगा.

 

बहरहाल, ये तो हुई थोड़ी सी इतिहास की बात अब थोड़ी सी अपनी बात, वो भी बैडमिंटन की. बैडमिंटन का शौक बचपन से ही रहा. जैसा कि इस देश में आम चलन में है कि क्रिकेट को सभी खेलों पर वरीयता दी जाती रही है, हमारे समय में भी ऐसा ही था. इस चाल-चलन के कारण क्रिकेट भी हमारे शौक में था और नियमित खेलने वाले खेलों में भी. इस शौक और नियमितता के बाद भी बैडमिंटन को अनियमित नहीं होने दिया गया. जहाँ कहीं भी, जब कभी भी, जैसे भी मौका मिला, समय मिला, जगह मिली बैडमिंटन की उठापटक शुरू हो जाती रही. उस समय (वर्ष 1990) की बात कहें तो आज के बच्चों की तरह न तो कैरियर की टेंशन थी और न ही सर्वाधिक अंक लाने की दिमागी परेशानी. बोर्ड की परीक्षा देने के पहले तय कर लिया जाता कि शाम को कहाँ मिलना है बैडमिंटन खेलने के लिए.

 



यहाँ एक बात विशेष ये है कि उस समय शहर के प्रतिष्ठित महाविद्यालय के कोर्ट में बैडमिंटन खेलने के साथ-साथ सड़क किनारे तक बैडमिंटन खेली गई. महाविद्यालय कोर्ट में समय के साथ खिलाड़ियों की, प्राध्यापकों की भीड़ बढ़ जाने के कारण हम मित्रों को बैडमिंटन खेलने के लिए नई जगह तलाशना अनिवार्य हो गया. दिमाग दौड़ाया गया. हमारे ही मित्र मंडली के सर्वाधिक सक्रिय और अत्यधिक मिलनसार राहुल ने इस समस्या का समाधान भी कर निकाला. राहुल का निवास जिस जगह पर था वहीं बाद में विधायक-मंत्री रहे एक माननीय की खाली पड़ी जगह का सदुपयोग किया गया. राहुल सहित अभिनव, रवि, ऋषि, संदीप और हम पूरी तन्मयता से पसीना बहाते हुए अपने शौक को पूरा करते.

 

समय बीता, हम सब मित्र अपनी-अपनी पढ़ाई के लिए इधर-उधर हो गए. कॉलेज के समय में भी बैडमिंटन पर हाथ आजमाते रहे मगर किसी टूर्नामेंट में खेलने की हिम्मत न जुटा सके. इसका भी कारण हॉस्टल के अपने एक सशक्त मित्र प्रवीण का इस क्षेत्र में जबरदस्त हस्तक्षेप था. बाद में पढ़ाई के बाद के रोजगार सम्बन्धी संघर्ष के दिनों में क्रिकेट कतिपय कारणों से दूर होते-होते बहुत दूर चला गया किन्तु बैडमिंटन से मोह बना रहा, उसका शौक पूरा होता रहा. शहर के प्रतिष्ठित चिकित्सक और हमारे पारिवारिक सदस्य अखिलेन्द्र जी के आवास पर बने कोर्ट पर अपने बड़े भाई संजय भैया और मित्र अनुज के साथ धमाचौकड़ी मचाई जाती रही.

 



समय आगे बढ़ता रहा, हम भी आगे बढ़ते रहे और फिर एक दिन उसी आगे बढ़ने की जद्दोजहद में वहीं के वहीं रुके रह गए. रुकना भी ऐसा हुआ कि समय हमारे लिए न रुका मगर बाकी सारी गतिविधियाँ रुक गईं. न बैडमिंटन साथ रुका, न क्रिकेट साथ रुका, न समय साथ रुका बस साथ रुके रहे तो मित्र, साथ में बना रहा तो शौक. साथ में मित्र, परिजन तो कुछ रहमदिल बन भी जाते मगर शौक अन्दर ही अन्दर कचोटता, खरी-खोटी सुनाता, दुनिया जहान के उदाहरण देता और आगे बढ़ने को उकसाता रहता. कई बार लगता कि समय के साथ शौक की बात मान ली जाये मगर जिम्मेदारियाँ ने हर बार रोक लिया. कई बार लगा कि जिम्मेदारियों के साथ ही आगे चला जाये तो समय ने साथ न दिया. अपनी शारीरिक स्थिति के बाद भी उरई के एकमात्र स्टेडियम में जाकर वहाँ एक समय की माँग की गई मगर अभ्यास कराने के लिए किसी खिलाड़ी का सहयोग न मिल सका तो बात वहीं की वहीं रह गई. लगा कि सही भी है आखिर हमारे साथ आधे कोर्ट में कोई वो खिलाड़ी क्यों अभ्यास करेगा जिसे पूरे कोर्ट में अपनी प्रतिद्वन्द्वी का सामना करने उतरना है.

 

कोर्ट में भले अपने शौक को पूरा न कर सके किन्तु जब भी मौका मिला अपनी बिटिया रानी अक्षयांशी के साथ छत पर दो-दो हाथ करके मन को तसल्ली दे ली, दिल को दिलासा दे ली. बस, इसी बात के साथ स्टेडियम आज भी जाते हैं, यहाँ के बैडमिंटन क्लब का हिस्सा बने हैं. खिलाड़ियों के जीतने पर उनको प्रोत्साहित करते हैं. कभी-कभी किसी परिचित के महँगे रैकेट से दो-चार हाथ चला लेते हैं. दीर्घकालिक समस्या के साथ अपने शौक को अल्पकालिक रूप में पूरा करके संतुष्टि का एहसास कर लेते हैं. बहरहाल, विश्व बैडमिंटन दिवस की सभी खिलाडियों को शुभकामनायें.

 

27 जून 2025

विलय नहीं समस्या का समाधान हो

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पचास से कम नामांकन वाले प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों का नजदीकी विद्यालयों में विलय करने का निर्णय लिया है. ऐसे विद्यालयों की संख्या हजारों में है जहाँ पर नामांकन पचास से कम है. यदि नामांकन कम है तो उसे बढ़ाया जाये न कि विद्यालय का विलय कर दिया जाये, उसे बंद कर दिया जाये. वैसे भी सरकारों की प्राथमिकता बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना होता है. न केवल सरकारों द्वारा बल्कि विश्व बैंक द्वारा भी अनेक योजनाओं को क्रियान्वित किया गया जिनसे बच्चों को विद्यालय लाया जा सके. संविधान में 86वाँ संशोधन कर शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाया गया. निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम अथवा शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के अन्तर्गत छह से चौदह वर्ष की आयु वर्ग के बालक-बालिकाओं को निःशुल्क प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है. सर्व शिक्षा अभियान के अन्तर्गत प्राथमिक शिक्षा से वंचित बस्तियों में विद्यालय खोले गए. इन सकारात्मक कार्यों, योजनाओं के बीच सरकार द्वारा शारदा (स्कूल हर दिन आयें) योजना क्रियान्वित है. इसमें छह से चौदह वर्ष की आयु वर्ग के ऐसे बालक-बालिकाओं का नामांकन होगा, जो किसी विद्यालय में नामांकित नहीं हैं अथवा नामांकन के बाद भी अपनी प्रारम्भिक शिक्षा पूर्ण नहीं कर सके. ऐसे बच्चों को चिन्हित कर उनका नामांकन नजदीकी विद्यालयों में आयु-संगत कक्षा में कराया जायेगा और शिक्षा से लेकर प्रत्येक सामग्री निःशुल्क उपलब्ध करायी जाएगी.  

 



बच्चों तक शिक्षा की सुलभता सम्बन्धी योजनाओं के बाद भी यदि सरकार को विद्यालयों का विलय करना पड़े तो स्थिति न केवल गम्भीर है बल्कि चिन्तनीय भी है. सरकार को नामांकन कम होने के कारणों-कारकों को खोजा जाना चाहिए. उन बिन्दुओं पर विचार करना चाहिए जो प्राथमिक विद्यालयों, उच्च प्राथमिक विद्यालयों के नामांकन को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहे हैं. विद्यालयों का विलय सिर्फ एक विद्यालय बंद होना नहीं होगा बल्कि यह अनेक दुष्परिणामों को साथ लेकर आएगा. सबसे बड़ा दुष्प्रभाव बच्चों की शिक्षा पर ही दिख रहा है. उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा विभाग के हाउसहोल्ड सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार 2020-21 में 4.81 लाख, 2021-22 में 4 लाख से अधिक और 2022-23 में 3.30 लाख बच्चों ने बीच में स्कूल छोड़ दिया. एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में स्कूल छोड़ने की दर अन्य प्रदेशों की तुलना में अधिक है. इसमें भी लड़कियों का प्रतिशत लड़कों की अपेक्षा अधिक है.

 

विद्यार्थियों का बड़ी संख्या में विद्यालय छोड़ना, नामांकन न करवाना चिन्ता का विषय है. सामाजिक-आर्थिक कारक, गरीबी, लैंगिक विभेद, शिक्षकों की कमी, बुनियादी ढाँचे की समस्या, शिक्षा में अरुचि, बाल श्रम का प्रचलन, अन्य सामजिक समस्याएँ आदि ड्रॉपआउट का कारण बनती हैं. ऐसे में विचार किया जाये कि जब बच्चे अपने ही गाँव में अथवा न्यूनतम दूरी पर बने विद्यालय नहीं जा रहे हैं, तो उनसे कैसे अपेक्षा की जा सकती है कि वे कुछ किमी दूर स्थित विद्यालय जायेंगे? विद्यालयों का दूर होना बालिकाओं के लिए और बड़ी समस्या होगी. निम्न सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि, घरेलू ज़िम्मेदारियाँ, सुरक्षा चिंताओं आदि के कारण उनकी शिक्षा पर पहले से ही संकट छाया रहता है. विद्यालय विलय पश्चात् उनके स्कूल छोड़ने की आशंका और ज़्यादा है. इसके साथ-साथ शिक्षकों के पदों की कटौती, नई शिक्षक भर्ती पर संकट, रसोइयों, शिक्षामित्रों का असुरक्षित भविष्य भी इसी से सम्बद्ध है.

  

यदि कम नामांकन पर ध्यान दें तो सरकारी नियम और कार्य-प्रणाली भी इसके लिए जिम्मेदार है. शिक्षा का अधिकार अधिनियम में प्रावधान के बावजूद सरकारी प्राथमिक विद्यालय के एक किमी परिक्षेत्र में खुलेआम निजी विद्यालयों को मान्यता दी जा रही है. निजी विद्यालयों का लगातार बड़ी संख्या में खुलते जाना और अधिनियम के अन्तर्गत गरीब विद्यार्थियों को प्रत्येक निजी विद्यालय द्वारा अपने यहाँ निशुल्क प्रवेश देने की बाध्यता भी कम नामांकन का एक कारक है. नियमानुसार निजी विद्यालयों द्वारा गरीब विद्यार्थियों को प्रवेश देने पर सरकार द्वारा निजी विद्यालयों को प्रतिपूर्ति शुल्क दिया जाता है, अभिभावकों को भी एक निश्चित राशि प्रदान की जाती है. इस आर्थिक पक्ष के कारण अभिभावकों, निजी विद्यालयों ने विद्यार्थियों को प्राथमिक विद्यालयों से दूर कर दिया. इसी तरह सरकारी प्राथमिक विद्यालय में प्रवेश आयु छह वर्ष और निजी विद्यालय में तीन-चार वर्ष होने के कारण भी नामांकन पर असर पड़ा है. इसके चलते भी बहुत से माता-पिता अपने बच्चों को सरकारी विद्यालय के स्थान पर निजी विद्यालय में प्रवेश दिला देते हैं. इनके अलावा शिक्षकों की कमी, शिक्षकों का दूसरे सरकारी कार्यों में व्यस्त रहना, विद्यालयों में प्राथमिक सुविधाओं की कमी होना, स्मार्ट क्लासेज की शून्यता आदि भी कम नामांकन के लिए उत्तरदायी बिन्दु हैं.

 

विद्यालयों का विलय स्थायी अथवा दीर्घकालिक समाधान नहीं है. इसकी गारंटी कौन लेगा कि भविष्य में विलय किये गए विद्यालय में कम नामांकन नहीं होगा? ऐसे में विचारणीय बिन्दु यह होना चाहिए कि उन कारणों का पता लगाकर उनका समाधान किया जाये जिनके कारण विद्यालयों में कम नामांकन हो रहा है. सरकार को चाहिए कि विद्यालयों के मूलभूत ढाँचे को सुव्यवस्थित करे. शिक्षकों की कमी को पूरा करने के साथ अन्य कार्यों के लिए अलग से कर्मचारियों की नियुक्ति करे. कक्षाओं को विकसित बनाया जाये तथा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा हेतु नवीनतम तकनीकों से विद्यार्थियों को परिचित कराया जाये. सरकारी नीतियों, योजनाओं को सहज तरीके से अनुपालन योग्य बनाया जाये ताकि अभिभावक परेशान न हों. सरकार प्राथमिक शिक्षा क्षेत्र में आ रही समस्या का समाधान करे, लगातार गहराते जा रहे रोग का इलाज करे न कि सम्बंधित अंग को ही काट कर अलग कर दे. शिक्षक संगठनों, अभिभावकों द्वारा इस निर्णय का विरोध किये जाने के बाद सरकार से अपेक्षा की जा सकती है कि वह अपने निर्णय पर पुनर्विचार करके शिक्षा को सुलभ, सहज बनाने का प्रयास करेगी. सरकार को ध्यान रखना चाहिए कि उसका लक्ष्य बच्चों को शिक्षा उपलब्ध करवाना है न कि उनको शिक्षा से वंचित करना, इसके लिए उसे अतिरिक्त आर्थिक बोझ ही क्यों न उठाना पड़े.

 


24 जून 2025

इजराइल-ईरान युद्ध का असमंजस

ऐसा समझा जा सकता है कि पर्ल हार्बर की घटना से हम सभी परिचित ही होंगे? ऐसे समय में जबकि विश्वयुद्ध जैसा खतरा मंडरा रहा है तब पर्ल हार्बर घटना याद आना स्वाभाविक है. इसी घटना ने अलग-थलग, खामोश पड़े अमेरिका को न केवल द्वितीय विश्वयुद्ध में घसीटा बल्कि जापान पर परमाणु हमले का आधार भी तैयार किया. दरअसल द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिका तब तक शामिल नहीं हुआ था लेकिन जापान को भय था कि प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका अपने इस नौसैनिक बेड़े के द्वारा जापान के क्षेत्रीय विस्तार को बाधित करेगा. इसी आशंका में जापानी वायुसेना ने अमेरिकी नौसैनिक अड्डे पर्ल हार्बर पर हमला करके अमेरिका को सैनिकों, नौसैनिक जहाजों, विमानों का भयंकर नुकसान पहुँचाया.

 

पर्ल हार्बर घटना का स्मरण तब हुआ जबकि इज़राइल-ईरान युद्ध से विश्वयुद्ध का खतरा नजर आया. ईरान के परमाणु कार्यक्रम को समाप्त करने की अपनी जिद के चलते इज़राइल ने ईरान पर हवाई हमले कर दिए. ऐसे में ईरान ने भी पूरी तीव्रता से इजराइल पर पलटवार किया. युद्ध की इस स्थिति में अमेरिका के असमंजस भरे रुख को देखकर शंका हो रही थी कि कहीं इजराइल ने ईरान पर हमला करके गलती तो न कर दी? शंका से भरे वातावरण में अमेरिका ने ऑपरेशन मिडनाइट हैमर के द्वारा ईरान के तीन परमाणु ठिकानों- फोर्दो, नतांज और इस्फहान पर हमला कर दिया. इस हमले में 125 एयरक्राफ्ट, सात बी-2 स्टेल्थ बॉम्बर्स के द्वारा ईरान के परमाणु ठिकानों पर 13,608 किलो वजनी बस्टर बम गिराए गए. युद्ध में शामिल होने के बाद भी अमेरिका ने कहा कि वह ईरान से युद्ध नहीं चाहता है मगर यदि इस हमले का पलटवार ईरान द्वारा किया गया तो उसके परिणाम बहुत बुरे होंगे.

 



अमेरिका द्वारा ईरान के परमाणु संयत्रों पर हमला करने के बाद इस तरह की धमकी भरे अंदाज में बयान देने के बाद ऐसा माना जा रहा था कि ईरान इसका जवाब नहीं देगा किन्तु जिस तरह से कतर, इराक, कुवैत पर उसने मिसाइलें दागी हैं, उससे ईरान ने दुनिया को दिखा दिया है कि वह अमेरिका की धमकी या उसकी दबंगई से डरने वाला नहीं है. ईरान के इस पलटवार को पर्ल हार्बर की घटना से इसी कारण संदर्भित किया जाने लगा क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अपने इस कार्यकाल में विध्वंसक मोड में दिख रहे हैं. आर्थिकी क्षेत्र हो, महाशक्तियों के साथ सम्बन्ध बनाये रखने का दौर हो, दो देशों के बीच युद्धविराम जैसी स्थिति लागू करवाने सम्बन्धी वार्ताएँ हों, अन्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों के साथ वार्तालाप का कूटनीतिक व्यवहार आदि ही क्यों न हो सभी जगह ट्रम्प आक्रामक रुख अपनाते ही दिखाई दिए. ऐसे में ईरान के पलटवार को विश्वयुद्ध की आहट समझा जा रहा था. यद्यपि ईरान द्वारा छोड़ी गई मिसाइलों से अमेरिकी एयरबेस को किसी भी तरह का नुकसान नहीं हुआ, किसी भी तरह के जानमाल को भी क्षति नहीं पहुँची है तथापि ये पलटवार अमेरिका के विरुद्ध था इसलिए वैश्विक चिंता होना स्वाभाविक थी.

 

शंकाओं, असमंजस भरे बादल उस समय छँटते नजर आये जबकि ईरान द्वारा अमेरिकी बेस पर मिसाइल दागने के बाद बदला पूरा हो जाने की बात कहे जाने पर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने ईरान के मिसाइल हमले को बहुत कमजोर बताते हुए मजाक उड़ाया. ट्रम्प ने ईरान को धन्यवाद देते हुए कहा कि तेहरान ने अपने परमाणु स्थलों पर अमेरिकी बी-2 स्टील्थ बॉम्बर हमले का जवाब देने का नाटक किया है. अपनी बात को अपनी सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा कि मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि किसी भी अमेरिकी को ईरानी हमले में नुकसान नहीं पहुँचा है. मैं ईरान को हमें पहले से सूचना देने के लिए धन्यवाद देना चाहता हूँ, जिससे किसी की जान नहीं गई और कोई भी घायल नहीं हुआ. शायद ईरान अब क्षेत्र में शांति और सद्भाव की ओर बढ़ सकता है. मैं उत्साहपूर्वक इजरायल को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करूँगा. इस तरह की सोशल मीडिया पोस्ट के साथ ही ट्रम्प द्वारा इजराइल और ईरान के मध्य युद्धविराम किये जाने सम्बन्धी पोस्ट भी लगाई गई. इस खबर को संतोषजनक और विश्वयुद्ध की आशंका के अंत के रूप में देखा जा रहा है.

 

इजराइल का ईरान पर हमला, ईरान द्वारा इजराइल को मुँहतोड़ जवाब देना, अमेरिका का असमंजस के बाद भी ईरान के तीन परमाणु ठिकानों को नष्ट कर देना, ईरान द्वारा अमेरिकी हमले का बदला लेने के लिए अमेरिकी एयरबेस पर मिसाइल हमला करने के भयग्रस्त वातावरण के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प द्वारा इजराइल-ईरान के बीच युद्धविराम की घोषणा करना अल्पकालिक राहत ही समझ आता है. ऐसा इसलिए क्योंकि इजराइल-ईरान के मध्य युद्ध की स्थिति जिस कारण से बनी थी, अभी उसका समाधान नहीं हुआ है. इस युद्ध के केन्द्र में ईरान का परमाणु कार्यक्रम था, जो फोर्दो परमाणु संयंत्र के पूरी तरह से बर्बाद हो जाने के बाद भी अस्तित्व में है. ऐसा अंदेशा लगाया जा रहा है कि ईरान ने अमेरिकी हमले से पहले ही संवर्द्धित यूरेनियम को किसी दूसरे स्थान पर स्थानांतरित कर दिया है. यदि यह अंदेशा सही है तो ईरान का परमाणु कार्यक्रम उसे परमाणु बम बनाने तक ले जा सकता है. निश्चित है कि ऐसी कोई भी आशंका न तो अमेरिका के हित में है न ही इजराइल के. बारह दिनों तक चले युद्ध के बाद भी, अमेरिका के हमले के बाद भी यदि ईरान का परमाणु कार्यक्रम अस्तित्व में बना रहा तो यह अमेरिका और इजराइल की प्रभुता, उसकी सैन्य क्षमता के लिए भी चुनौती होगी. फ़िलहाल तो देखना यह है कि जिस युद्धविराम की घोषणा ट्रम्प द्वारा की गई है वह कितने समय तक लागू रह पाता है.


16 जून 2025

भावनाओं से खिलवाड़

अहमदाबाद हवाई जहाज दुर्घटना के अंतिम कुछ सेकेण्ड के फोटो, वीडियो....

इस तरह की बहुत सी पोस्ट दिखाई देने लगी हैं. सोशल मीडिया में हवाई जहाज दुर्घटना के बाद से एकदम से फोटो और वीडियो की बाद सी आ गई. अपनी-अपनी पोस्ट पर लाइक, शेयर, कमेंट बटोरने के चक्कर में भावनात्मकता, संवेदना को दरकिनार करते हुए फोटो और वीडियो अपलोड करने में लगे हुए हैं. लाइक, शेयर, कमेंट करने वाले भी बिना सत्य जाने, बिना तथ्य जाने आँखें बंद किये उसी दिशा में बहे जा रहे हैं. अंतिम समय के फोटो में भी उन्हीं तीन मासूम बच्चों के फोटो सामने आ रहे हैं जो अपने माता-पिता के साथ लन्दन शिफ्ट होने के लिए जा रहे थे. निश्चित रूप से फोटो-वीडियो के द्वारा लोगों की भावनाओं से खेलने वाले जानते हैं कि किस फोटो से उनको ज्यादा से ज्यादा शेयर, लाइक मिलने वाले हैं.

 



यहाँ एक बात समझ नहीं आ रही कि ये सबकुछ ख़त्म होने के अंतिम कुछ सेकेण्ड पहले की फोटो, वीडियो किसने लिए? किसने सार्वजनिक किये?

 

क्या उन बच्चों के माता-पिता अपने पूरे परिवार की मौत को लेकर, हवाई जहाज की दुर्घटना को लेकर एक तरह से आश्वस्त हो चुके थे, तभी उन्होंने चिल्लाते-चीखते बच्चों को सँभालने की बजाय उनकी फोटो खींचकर अपने किसी परिचित को भेजे, अपने किसी सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर अपलोड किये?

 

क्या जहाज के अन्दर कोई सीसी टीवी कैमरा टाइप कुछ रहता है जो किसी नेटवर्क के माध्यम से लगातार फोटो, वीडियो बनाता हुआ कहीं धरती पर बने सेंटर को भेजता रहता है?

 

क्या इसी जहाज में कोई ऐसा व्यक्ति था जो बिना डर, भय, बचने की कोशिश के फोटो, वीडियो खींच कर अपने किसी परिचित को लगातार भेजता रहा?

 

क्या दुर्घटना स्थल से किसी व्यक्ति का अथवा कई व्यक्तियों के मोबाइल इस हालत में मिले हैं, जिनसे ये फोटो, वीडियो निकाल कर सार्वजनिक किये जा रहे हैं?

 

सोशल मीडिया में तैर रहे तमाम एविएशन एक्सपर्ट इस बारे में भी अपनी विशेषज्ञतापूर्ण राय दें.