16 जुलाई 2024

जहाँ रहो खुश रहो, सुखी रहो

आज की तारीख वैसे तो खुश होने की है मगर चाह कर भी खुश नहीं हो पाते हैं. ऐसा नहीं कि खुश रहना नहीं आता या फिर ख़ुशी ने अपना रास्ता बदल लिया है. इस तारीख को अब चाह कर भी खुश न रह पाने का कारण इसी तारीख वाले छोटे भाई से सम्बंधित है. आज छोटे भाई मिंटू का जन्मदिन है. जब उसका जन्म हुआ तब हमारी उम्र ने पूरी तरह से छह वर्ष की संख्या को छुआ नहीं था, इसके बाद भी उसके जन्म के समय की बहुत सारी घटनाएँ आज भी दिल-दिमाग में जीवित हैं.

 



जुलाई का महीना था और उस समय लोग आज की तरह कमरे में बंद रहकर, कूलर-एसी को अपनी आदत बनाकर नहीं सोते थे. सही कह रहे हैं, आखिर वो समय 1979 का था. उस समय सीलिंग फैन ही जबरदस्त हवा दिया करता था. रात में अनिवार्य रूप से छत पर सोने का उपक्रम हुआ करता था. उस रात भी हम लोग छत पर हँसते-गुनगुनाते सोने की तैयारी में लगे थे जबकि मिंटू के आने की खुशखबरी घर में आई.

 

बहरहाल, आज मिंटू के जन्मदिन को ख़ुशी से मना भी नहीं पा रहे हैं. जैसे ही खुश होने के विचार सामने आता है, जन्मदिन मनाने का भाव जगता है वैसे ही आँखों से आँसुओं की धार स्वतः चलने लगती है. आखिर आज मिंटू होते तो 45 का आँकड़ा छू लिया होता. आज से तीन वर्ष पहले मिंटू की शारीरिक उपस्थिति हम लोगों के बीच शून्य में विलीन हो गई. उस दिन से उसका जन्मदिन मनाया जाता है मगर आँखों आँखों में, आँसुओं में, अकेले में.

12 जुलाई 2024

जल प्रबंधन का विकल्प नदी जोड़ो परियोजना?

मानसून की उठती-गिरती स्थिति के चलते देश के कई हिस्सों में अलग-अलग तरह की स्थितियाँ हैं. कुछ हिस्सों में बारिश की आवश्यकता महसूस की जा रही है तो कुछ जगहों पर बाढ़ की स्थिति बनी हुई है. जुलाई माह के पहले दो सप्ताह सामान्य से अधिक वर्षा के बाद मानसून कमज़ोर पड़ गया, जो कृषि के लिए सुखद नहीं है. निश्चित है कि सामान्य से कम बारिश से सिंचाई की समस्या हो सकती है, जिसका नकारात्मक प्रभाव फसलों पर, उत्पादन पर पड़ेगा. देश का पारिस्थितिकी-तंत्र इतना विविधता भरा है कि एक तरफ मानसून की कमी से फसलें प्रभावित हुई हैं तो दूसरी तरफ सामान्य से अधिक बारिश के चलते बाढ़ आई हुई है.

 

ऐसे समय में नदी जोड़ो परियोजना स्वतः चर्चाओं में आ जाती है. देश में अपनी तरह की इस अनूठी योजना के द्वारा कुल तीस रिवर-लिंक बनाने की योजना है. इनके सहारे सैंतीस नदियों को एक-दूसरे से जोड़ा जाएगा. योजना को मूर्त रूप देने के लिए लगभग पंद्रह हजार किमी लंबी नई नहरों का निर्माण किया जाना है. स्वतंत्र भारत में 1960 में तत्कालीन ऊर्जा और सिंचाई राज्य मंत्री के. एल. राव ने गंगा और कावेरी नदियों को जोड़ने का प्रस्ताव रखा. इसी क्रम में 1982 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी की स्थापना की. उस समय ऐसा अनुभव किया जा रहा था कि एजेंसी की स्थापना के बाद नदी जोड़ो परियोजना अपने वास्तविक रूप में सामने आये मगर ऐसा नहीं हो सका. 2002 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हस्तक्षेप करने के बाद सरकार पुनः सक्रिय हुई. अदालत द्वारा सरकार से 2003 तक नदियों को जोड़ने की योजना को अंतिम रूप देने और 2016 तक इसे क्रियान्वित करने को कहा गया. 2014 में देश की पहली परियोजना के रूप में केन-बेतवा नदी जोड़ने को कैबिनेट की मंजूरी मिली. इसके बाद केंद्र सरकार ने कोसी-मेची नदी को जोड़ने की स्वीकृति प्रदान की.

 

नदी जोड़ो परियोजना के पाँच प्रमुख लक्ष्य निर्धारित किये गए हैं. इन लक्ष्यों में व्यापक जल डेटाबेस को सार्वजनिक करना तथा जल संसाधनों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का आकलन करना; जल संरक्षण, संवर्द्धन और परिरक्षण हेतु नागरिक और सरकारी कार्रवाई को बढ़ावा देना; अधिक जल दोहन वाले क्षेत्रों सहित कमज़ोर क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना; जल उपयोग कुशलता में बीस प्रतिशत की वृद्धि करना और बेसिन स्तर तथा समेकित जल संसाधन प्रबंधन को बढ़ावा देना शामिल है. नदियों को आपस में जोड़ने से उन क्षेत्रों से अतिरिक्त पानी को स्थानांतरित किया जा सकता है जो बहुत अधिक वर्षा वाले हैं और बाढ़ की स्थिति से जूझते रहते हैं. इनके जल को स्थानांतरित किये जाने से उन क्षेत्रों के सूखे की स्थिति से निपटा जा सकता है, जहाँ वर्षा जल कम रहता है. इससे देश के कई हिस्सों में जल संकट को दूर करने में भी सहायता मिलेगी.

 

लाभ के इन अनेक पहलुओं के बीच आशंकाएँ भी व्यक्त की जा रही हैं. इन आशंकाओं में राज्यों के बीच जल बँटवारा एक बहुत बड़ी बाधा है. विस्थापन, पुनर्वास, जलमग्न, वन्य जीवों, वनस्पतियों के नकारात्मक रूप से प्रभावित होने जैसी अनेक समस्याएँ भी हैं. संभव है कि इस तरह की परियोजना पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को बदल दे. आशंकाओं में सबसे पहली चुनौती विस्थापन और पुनर्वास तो है ही क्रियान्वयन के लिये अत्यधिक धन की आवश्यकता भी बहुत बड़ी चुनौती है. नई नहरों और बाँधों के निर्माण, लोगों के विस्थापन-पुनर्वास के चलते इस परियोजना पर लगभग 5.6 लाख करोड़ रुपये की लागत आने का अनुमान है. लागत और जनशक्ति के आधार पर भी इस परियोजना पर सवाल उठाए जाते हैं.

 

सम्भव है कि यह विचार भ्रामक हो कि नदी जोड़ो परियोजना अथवा रिवर-लिंकिंग देश को बाढ़ की समस्या से निपटने अथवा जल की कमी को दूर करने का समाधान देगी. बावजूद इसके इस परियोजना पर अब कदम बढ़ाने की आवश्यकता है. ऐसी चुनौतियों के बीच इस परियोजना को एकसाथ सम्पूर्ण देश में क्रियान्वित न करके पायलट प्रोजेक्ट के रूप में इसको क्रियान्वित किया जाना चाहिए. जिस क्षेत्र में कम लागत आने की सम्भावना हो उस क्षेत्र में भी इस परियोजना पर कार्य किया जाना चाहिए. दो-तीन परियोजनाओं को पायलट प्रोजेक्ट के आधार पर क्रियान्वित करके उनका परीक्षण और विश्लेषण किया जाना चाहिए कि ये परियोजनाएँ बाढ़-नियंत्रण, सूखा-नियंत्रण आदि का समाधान प्रस्तुत करने में सक्षम हैं अथवा नहीं? केन-बेतवा और कोसी-मेची नदी जोड़ो परियोजना को इस सन्दर्भ में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में अपनाया जा सकता है.

 

ऐसी आशंकाओं के बीच नदियों के जोड़ने के लाभ अधिक दिखाई देते हैं. देश के धरातल पर प्रतिवर्ष उपलब्ध लगभग 690 बिलियन क्यूबिक मीटर जल का मात्र पैंसठ प्रतिशत जल ही उपयोग में आ पाता है, शेष जल बहकर समुद्र में चला जाता है. चूँकि देश में मानसून सदैव ही अनियमित अथवा परिवर्तनशील रहता है, ऐसे में जल प्रबंधन योजनाओं पर विचार किये जाने की आवश्यकता है. स्पष्ट है कि नदियों को आपस में जोड़ना नदी-जल का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित करने का एक तरीका है. इसके प्रति सभी को गंभीरता से सहयोगी बनने की आवश्यकता है.


08 जुलाई 2024

नरेन्द्र मोदी की रूस यात्रा के निहितार्थ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार को अपनी दो दिवसीय यात्रा पर रूस पहुँचे. यहाँ वे रूसी राष्ट्रपति पुतिन के साथ भारत-रूस द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे. तीसरे कार्यकाल की उनकी यह पहली द्विपक्षीय विदेश यात्रा है. ऐसे समय में जबकि नरेन्द्र मोदी का प्रधानमंत्री के रूप में तीसरा कार्यकाल है; रूस-यूक्रेन युद्ध लम्बे समय से बेनतीजा चल रहा है; रूस और चीन के बीच सम्बन्ध दोस्ताना दिख रहे हैं, यह यात्रा महत्त्वपूर्ण हो जाती है. यह यात्रा उनकी पिछली परम्परा से हटकर है, इसलिए भी उनकी इस यात्रा को अलग नजरिये से देखा जा रहा है. नरेन्द्र मोदी ने पूर्व के दोनों कार्यकालों में पहली द्विपक्षीय यात्रा में पडोसी देशों को महत्त्व दिया था. पहले और दूसरे कार्यकाल में उनकी यात्रा क्रमशः भूटान और मालदीव की हुई थी. ऐसे में इस बार उनका पहली द्विपक्षीय विदेश यात्रा के लिए रूस जाना कूटनीतिक, व्यापारिक, सामरिक केन्द्र में है.

 

रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते भी मोदी की रूस यात्रा महत्त्वपूर्ण है. मोदी ने वर्ष 2022 में उज्बेकिस्तान के समरकंद में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन में पुतिन संग द्विपक्षीय वार्ता के दौरान यूक्रेन से युद्ध समाप्त करने को कहा था. पुतिन और यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की के साथ मोदी ने कई बार टेलीफोन पर बातचीत करते हुए युद्ध समाप्ति हेतु कूटनीतिक दबाव बनाना जारी रखा है. चूँकि इस बार भारत शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के कजाकिस्तान शिखर सम्मेलन में शामिल नहीं हुआ. रक्षा मामलों के विशेषज्ञों की राय है कि भारत इस उम्मीद के साथ एससीओ में शामिल हुआ था कि उसका प्रभाव मध्य एशिया में बढ़ेगा किन्तु इसमें चीन के बढ़ते हस्तक्षेप के कारण ऐसा नहीं हो सका. इसके अलावा पाकिस्तान भी अब एससीओ का सदस्य है. ऐसे में चीन के बढ़ते प्रभाव और हस्तक्षेप के कारण भारत को अपनी स्थिति महत्त्वपूर्ण न लगी होगी. विशेष बात ये है कि रूस और चीन इस संगठन के सदस्य हैं. ऐसे में इस रूस यात्रा में सम्भव है कि मोदी द्वारा चीन के बढ़ते प्रभावों का मुद्दा भी उठाया जाये.

 



रूस भारत का सबसे पुराना और भरोसेमंद मित्र, सहयोगी है. रूस के द्वारा अनेक मुश्किल पलों में भारत का साथ दिया गया. आज भी भारत के साथ उसके गहरे व्यापारिक सम्बन्ध हैं. दोनों देशों में लम्बे समय से रणनीतिक साझेदारी के अन्तर्गत रक्षा, अंतरिक्ष और आर्थिक समझौतों पर सहमति है. भारत द्वारा भी रूस के साथ अपनी मित्रता और भरोसे को बनाये रखा गया है. रूस पर लगे प्रतिबंधों के बावजूद भारत-रूस का आयात-निर्यात सम्बन्ध बना हुआ है. भारत से निर्यात की जाने वाली प्रमुख वस्तुओं में फार्मास्यूटिकल्स, कार्बनिक रसायन, विद्युत मशीनरी और यांत्रिक उपकरण, लोहा और इस्पात शामिल हैं जबकि रूस से आयात की जाने वाली प्रमुख वस्तुओं में तेल और पेट्रोलियम उत्पाद, उर्वरक, खनिज संसाधन, कीमती पत्थर और धातु, वनस्पति तेल आदि शामिल हैं. व्यापारिक संबंधों की महत्ता को वाणिज्य विभाग के आँकड़ों से समझा जा सकता है. उसके अनुसार वित्त वर्ष 2023-24 में द्विपक्षीय व्यापार 65.70 बिलियन डॉलर में भारत का निर्यात 4.26 बिलियन डॉलर और आयात 61.44 बिलियन डॉलर रहा जो अपने सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुँच गया है.

 

व्यापारिक महत्त्व के रूप में अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (आईएनएसटीसी) भी प्रमुख है. भारत और रूस दोनों के लिए यह सम्पर्क मार्ग अत्यंत महत्वपूर्ण है. यह गलियारा माल ढुलाई के लिए जहाज, रेल और सड़क मार्गों का 7200 किमी लंबा मल्टी-मोड नेटवर्क है. भारत, ईरान और रूस ने इससे सम्बंधित समझौते पर हस्ताक्षर किए थे ताकि ईरान और सेंट पीटर्सबर्ग के माध्यम से हिन्द महासागर और फारस की खाड़ी को कैस्पियन सागर से जोड़ने वाला सबसे छोटा परिवहन मार्ग प्रदान करने के लिए एक गलियारा बनाया जा सके. हाल ही में रूस ने पहली बार इसके द्वारा भारत को कोयला ले जाने वाली दो ट्रेनें भेजी हैं. यद्यपि यह मार्ग अभी पूर्ण रूप से शुरू नहीं हुआ है तथापि जब यह मार्ग पूरी तरह चालू हो जाएगा तो भारत और रूस के बीच व्यापारिक गतिविधियाँ तेज करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा.

 

पश्चिमी यूरोपीय देशों द्वारा रूस पर आर्थिक प्रतिबन्ध लगाने का उद्देश्य रूस को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अकेला करना था मगर भारत ने रूस का साथ देते हुए कहा कि पश्चिमी देशों द्वारा रूस के साथ किये जा रहे सौतेले व्यवहार के पक्ष में भारत नहीं है. ऐसे में भारत ने रूस के साथ व्यापारिक सम्बन्धों के साथ-साथ सामरिक सम्बन्धों को भी बनाये रखा. सामरिक महत्त्व में भारत द्वारा रूस से एस-400 मिसाइलों की खरीदारी महत्त्वपूर्ण विषय है. टी-90 टैंक, एसयू 30, एके 203 राइफलें भी भारत में ही संयुक्त उत्पादन में निर्मित हो रही हैं. इस तरह के रक्षा सम्बन्धों के साथ-साथ सहयोगात्मक विदेश नीति के कारण भारत-रूस सम्बन्धों का वैश्विक दृष्टि से व्यापक प्रभाव है.

 

विगत कुछ समय से वैश्विक स्तर पर युद्ध की स्थितियाँ चारों तरफ बनती दिखाई देने लगी हैं. बहुसंख्यक देशों के बीच तनाव भी नजर आ रहा है. ऐसे में वैश्विक व्यवस्था को अमेरिका, चीन, पश्चिमी देशों की अनावश्यक अराजकता, आक्रामकता, विस्तारवाद जैसी स्थितियों से बचाने के लिए शक्ति संतुलन की आवश्यकता है. नरेन्द्र मोदी सम्बन्धों को प्रगाढ़ बनाते हुए भारतीय सम्बन्धों को पश्चिमी देशों, यूरोपीय देशों सहित अमेरिका के साथ संतुलन बनाये रखने हेतु लगातार प्रयासरत हैं. निश्चित ही रूस की इस यात्रा से भारत के साथ-साथ सकल विश्व को भी सकारात्मक सन्देश प्राप्त होगा.


02 जुलाई 2024

अब तो परिपक्वता दिखाएँ राहुल गांधी

दस साल के बाद वर्तमान लोकसभा को नेता प्रतिपक्ष के रूप में राहुल गांधी का मिलना हुआ. नेता प्रतिपक्ष बनाये जाने के एक नियम के कारण विगत दस वर्षों से लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष नहीं था. इस नियम के चलते किसी भी विपक्षी दल के पास लोकसभा के कुल सदस्यों की संख्या का कम से कम दस प्रतिशत सदस्य होने चाहिए. 2014 और 2019 की लोकसभा में किसी भी विपक्षी दल के पास आवश्यक दस प्रतिशत सदस्य नहीं थे अर्थात लोकसभा के कुल 543 सांसदों में से किसी के पास 55 सांसद नहीं थे. 2014 में सबसे बड़े विपक्षी दल के रूप में कांग्रेस के पास सिर्फ 44 सांसद थे. इसी तरह 2019 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस मात्र 52 सांसदों के साथ सबसे बड़ा विपक्षी दल था. अब 2024 लोकसभा में कांग्रेस 99 सीटों के साथ सबसे बड़ा विपक्षी दल है. इसीलिए राहुल गांधी संसद में नेता प्रतिपक्ष के रूप में हैं.   

 



राहुल गांधी अपने राजनैतिक जीवन में पहली बार कोई संवैधानिक पद सँभालेंगे. संसद में विपक्षी नेता अधिनियम 1977 के अन्तर्गत नेता प्रतिपक्ष केन्द्रीय मंत्री के समान होता है. नेता प्रतिपक्ष के रूप में राहुल को कई शक्तियाँ और अधिकार भी मिलेंगे. वे भारत सरकार की लोक लेखा समिति के अध्यक्ष होने के अलावा प्रधानमंत्री के साथ मुख्य निर्वाचन आयुक्त सहित चुनाव आयोग के दो अन्य सदस्यों का चयन करने वाले पैनल का हिस्सा होंगे. इसके अलावा वे प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में लोकपाल, ईडी-सीबीआई निदेशक, केंद्रीय सतर्कता आयोग, केन्द्रीय सूचना आयुक्त, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग प्रमुख को चुनने वाली समितियों के सदस्य होंगे. गांधी परिवार की दृष्टि से देखें तो वे इस परिवार के तीसरे सदस्य हैं, जिनको नेता प्रतिपक्ष का संवैधानिक पद प्राप्त हुआ है. इससे पहले उनके पिता और माँ क्रमशः राजीव गांधी और सोनिया गांधी इस पद पर रह चुके हैं.

 

पिछले कुछ वर्षों में राजनैतिक हलकों में राहुल गांधी को भावी प्रधानमंत्री के रूप में लगातार प्रोजेक्ट किया जा रहा है. कांग्रेस सहित उनके अन्य सहयोगियों द्वारा इस तरह से प्रचार भी किया जाता रहा है. भारत जोड़ो यात्रा को उनके परिपक्व होने के तौर पर प्रस्तुत किया जाता है. ऐसी स्थिति में जबकि किसी नेता को देश के भावी प्रधानमंत्री के रूप में प्रचारित किया जाता हो तब भी और अब जबकि वही नेता सदन में संवैधानिक पद का प्रतिनिधित्व कर रहा हो, तब उससे परिपक्वता की अपेक्षा की जाती है. यह अपेक्षा तब विवादों के, हंगामे के घेरे में फँस गई जबकि 18वीं लोकसभा के पहले सत्र में नेता प्रतिपक्ष के रूप में अपने पहले भाषण में ही राहुल गांधी हिन्दुओं को चौबीस घंटे हिंसा, नफरत, असत्य फ़ैलाने वाला कह गए. ये और बात है कि खुद राहुल गांधी और उनके बचाव में उतरे नेताओं द्वारा बार-बार कहा जा रहा है कि हिन्दुओं से उनका अर्थ सम्पूर्ण हिन्दू समाज से नहीं वरन भाजपा से था.

 

नेता प्रतिपक्ष के रूप में उनके लगभग नब्बे मिनट तक चले भाषण से ऐसा लगा कि वे अभी भी चुनावी मोड में हैं. एकबारगी भी नहीं लगा कि सदन के अन्दर किसी संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति भाषण दे रहा है. विगत वर्षों में जिस तरह से उनका लहजा रहा है, उसमें किसी तरह का बदलाव नहीं आया. लम्बे राजनैतिक सफ़र के बाद भी उनके हाव-भाव, भाषा-शैली, बर्ताव, आचरण आदि में परिपक्वता की कमी दिखी, भले ही स्थिति सदन में हो, सदन के बाहर हो, मंच पर हो या फिर पदयात्रा में हो. संसद में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के गले लगने के बाद आँख मारना, निलंबित किए विपक्षी सांसदों के विरोध प्रदर्शन के समय राज्यसभा के सभापति की मिमिक्री करने का वीडियो खुद राहुल गांधी बनाते दिखे. इसी तरह भाजपा के केन्द्र में आने के बाद राहुल गांधी ने जब भी अपने भाषणों में, प्रेस कांफ्रेंस में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जिक्र किया तो उनके लिए अशालीन, अमर्यादित शब्दावली का ही प्रयोग किया. प्रधानमंत्री के लिए पनौती, जेबकतरा, हत्यारा, भाग जायेगा, नरेंद्र मोदी कांपने लगा, वो झूठ बोलना शुरू कर देता है आदि शब्दावली का प्रयोग करना राहुल गांधी के लिए आम बात है.

 

एक मिनट को मान लिया जाये कि अभी तक की शब्दावली, राहुल की गतिविधि महज एक सांसद के तौर पर थी. तब किसी संवैधानिक पद पर न होने के कारण संभवतः वे उसकी गरिमा, महत्ता को न समझ पाते हों. हालाँकि ऐसा समझना भी अपने आपमें एक भूल होगी क्योंकि उनके परिवार ने मात्र सांसद ही नहीं दिए हैं बल्कि प्रधानमंत्री दिए हैं. अब जबकि वे खुद एक संवैधानिक पद पर हैं, संवैधानिक पद की गरिमा को, उसके आचरण को उन्होंने अपने परिवार में ही देखा है तब कम से कम ये अपेक्षा बनती ही है कि वे मर्यादित आचरण का परिचय देंगे. कहीं ऐसा न हो कि उनसे मर्यादित आचरण की अपेक्षा रखने वाले देशवासी उनके पिता की तरह कहें कि हमें देखना है, हम देख रहे हैं, हम देखेंगे. देश की संसद को भी एक मजबूत नेता प्रतिपक्ष की आवश्यक्ता है. आखिर वो उनकी आवाज और प्रतिनिधि है जो सत्ता और सरकार से मतभेद रखते हैं; जो सत्तारूढ़ दल की नीतियों, कार्यशैली में विश्वास नहीं करते. लोकतंत्र में विरोध भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि समर्थन. आशा है राहुल गांधी उस परिपक्वता को प्रदर्शित करेंगे जिससे असहमति और विरोध का स्वर भी सदन में सम्मान और उचित स्थान पा सके.

28 जून 2024

हम चिंता अपनी बेटियों की करें, फिल्म अभिनेत्रियों की नहीं

पिछले कई दिनों से देख रहे कि लोग सोनाक्षी सिन्हा की शादी को लेकर इस कदर चिंतित से होकर पोस्ट लगा रहे, मानो वे ही उसके अभिभावक हैं. 


ऐसे सभी लोगों से एक निवेदन है कि इस तरह की चिंतातुर अभिव्यक्ति वहाँ करें जहाँ आपकी राय को महत्त्व दिया जाये. सोनाक्षी के विवाह की ज्यादा चिंता हो रही हो तो एक बार उसके घर जाकर उससे या फिर शत्रुघ्न सिन्हा से चर्चा कर आओ, अपनी-अपनी औकात का पता चल जायेगा.


हाँ, सभी की ऐसी चिंता का स्वागत भी होना चाहिए क्योंकि कम से कम ऐसे लोग समाज के एक स्व-वर्ग के प्रति चिंतित हैं. तो फिर आप चिंतातुर लोग अपने घर-परिवार-पड़ोस-मित्रों-सहयोगियों की बेटियों की चिंता करें. उन परिजनों की बेटियों की चिंता करें जो आपकी राय, आपकी चिंता को महत्त्व देते हों.


ध्यान रखें, ये सब मसाला फिल्मों वाले लोग हैं. इनके पारिवारिक कार्यक्रम भी बाजार के हस्तक्षेप से चलते हैं, उसमें भी कमाई करते हैं. इनकी बेटियाँ न फ्रिज में मिलती हैं, न सूटकेस में, न किसी आपत्तिजनक स्थितियों का शिकार बनती हैं. ऐसा सिर्फ हम लोगों की बेटियों के साथ होता है. इसलिए अपनी-अपनी बेटियों को समझाएँ, उनको बताएँ कि उनका आदर्श सोनाक्षी जैसी लड़कियाँ न हों.