आज, 05 जुलाई को विश्व बैडमिंटन दिवस का
आयोजन किया जाता है. वर्ष 1934 में आठ संस्थापक सदस्यों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय बैडमिंटन
महासंघ की स्थापना की गई. इसकी स्थापना 5 जुलाई 1934 को लंदन में हुई थी. इसके संस्थापक सदस्यों में नाडा, डेनमार्क, इंग्लैंड, फ्रांस,
आयरलैंड, नीदरलैंड, न्यूजीलैंड,
स्कॉटलैंड और वेल्स थे. कालांतर में यही संगठन बैडमिंटन वर्ल्ड फेडरेशन
(BWF) के रूप में जाना गया. सुखद स्थिति यह है कि आज यही
फेडरेशन समूची दुनिया में प्रत्येक देश और महाद्वीप का प्रतिनिधित्व करते हुए वहाँ
बैडमिंटन के प्रति सकारात्मक कदम उठा रहा है. वर्ष 2023 में फेडरेशन के द्वारा
निर्णय लिया गया कि 5 जुलाई वह दिन होगा जब इसकी स्थापना के लिए सम्पूर्ण दुनिया
में बैडमिंटन से सम्बंधित प्रतेक चीज़ के लिए जश्न मनाया जाएगा.
बहरहाल, ये तो हुई थोड़ी सी इतिहास की बात अब
थोड़ी सी अपनी बात, वो भी बैडमिंटन की. बैडमिंटन का शौक बचपन से ही रहा. जैसा कि इस
देश में आम चलन में है कि क्रिकेट को सभी खेलों पर वरीयता दी जाती रही है, हमारे
समय में भी ऐसा ही था. इस चाल-चलन के कारण क्रिकेट भी हमारे शौक में था और नियमित
खेलने वाले खेलों में भी. इस शौक और नियमितता के बाद भी बैडमिंटन को अनियमित नहीं
होने दिया गया. जहाँ कहीं भी, जब कभी भी, जैसे भी मौका मिला, समय मिला,
जगह मिली बैडमिंटन की उठापटक शुरू हो जाती रही. उस समय (वर्ष 1990) की बात कहें तो
आज के बच्चों की तरह न तो कैरियर की टेंशन थी और न ही सर्वाधिक अंक लाने की दिमागी
परेशानी. बोर्ड की परीक्षा देने के पहले तय कर लिया जाता कि शाम को कहाँ मिलना है
बैडमिंटन खेलने के लिए.
यहाँ एक बात विशेष
ये है कि उस समय शहर के प्रतिष्ठित महाविद्यालय के कोर्ट में बैडमिंटन खेलने के
साथ-साथ सड़क किनारे तक बैडमिंटन खेली गई. महाविद्यालय कोर्ट में समय के साथ
खिलाड़ियों की,
प्राध्यापकों की भीड़ बढ़ जाने के कारण हम मित्रों को बैडमिंटन खेलने के लिए नई जगह
तलाशना अनिवार्य हो गया. दिमाग दौड़ाया गया. हमारे ही मित्र मंडली के सर्वाधिक
सक्रिय और अत्यधिक मिलनसार राहुल ने इस समस्या का समाधान भी कर निकाला. राहुल का
निवास जिस जगह पर था वहीं बाद में विधायक-मंत्री रहे एक माननीय की खाली पड़ी जगह का
सदुपयोग किया गया. राहुल सहित अभिनव, रवि, ऋषि, संदीप और हम पूरी तन्मयता से पसीना बहाते हुए
अपने शौक को पूरा करते.
समय बीता, हम सब मित्र अपनी-अपनी पढ़ाई के लिए
इधर-उधर हो गए. कॉलेज के समय में भी बैडमिंटन पर हाथ आजमाते रहे मगर किसी
टूर्नामेंट में खेलने की हिम्मत न जुटा सके. इसका भी कारण हॉस्टल के अपने एक सशक्त
मित्र प्रवीण का इस क्षेत्र में जबरदस्त हस्तक्षेप था. बाद में पढ़ाई के बाद के
रोजगार सम्बन्धी संघर्ष के दिनों में क्रिकेट कतिपय कारणों से दूर होते-होते बहुत दूर
चला गया किन्तु बैडमिंटन से मोह बना रहा, उसका शौक पूरा होता
रहा. शहर के प्रतिष्ठित चिकित्सक और हमारे पारिवारिक सदस्य अखिलेन्द्र जी के आवास
पर बने कोर्ट पर अपने बड़े भाई संजय भैया और मित्र अनुज के साथ धमाचौकड़ी मचाई जाती
रही.
समय आगे बढ़ता रहा, हम भी आगे बढ़ते रहे और फिर एक दिन
उसी आगे बढ़ने की जद्दोजहद में वहीं के वहीं रुके रह गए. रुकना भी ऐसा हुआ कि समय
हमारे लिए न रुका मगर बाकी सारी गतिविधियाँ रुक गईं. न बैडमिंटन साथ रुका, न क्रिकेट साथ रुका, न समय साथ रुका बस साथ रुके
रहे तो मित्र, साथ में बना रहा तो शौक. साथ में मित्र, परिजन तो कुछ रहमदिल बन भी जाते मगर शौक अन्दर ही अन्दर कचोटता, खरी-खोटी सुनाता, दुनिया जहान के उदाहरण देता और
आगे बढ़ने को उकसाता रहता. कई बार लगता कि समय के साथ शौक की बात मान ली जाये मगर
जिम्मेदारियाँ ने हर बार रोक लिया. कई बार लगा कि जिम्मेदारियों के साथ ही आगे चला
जाये तो समय ने साथ न दिया. अपनी शारीरिक स्थिति के बाद भी उरई के एकमात्र
स्टेडियम में जाकर वहाँ एक समय की माँग की गई मगर अभ्यास कराने के लिए किसी खिलाड़ी
का सहयोग न मिल सका तो बात वहीं की वहीं रह गई. लगा कि सही भी है आखिर हमारे साथ
आधे कोर्ट में कोई वो खिलाड़ी क्यों अभ्यास करेगा जिसे पूरे कोर्ट में अपनी
प्रतिद्वन्द्वी का सामना करने उतरना है.
कोर्ट में भले अपने शौक को पूरा न कर सके किन्तु जब भी मौका मिला अपनी बिटिया रानी अक्षयांशी के साथ छत पर दो-दो हाथ करके मन को तसल्ली दे ली, दिल को दिलासा दे ली. बस, इसी बात के साथ स्टेडियम आज भी जाते
हैं, यहाँ के बैडमिंटन क्लब का हिस्सा बने हैं. खिलाड़ियों के
जीतने पर उनको प्रोत्साहित करते हैं. कभी-कभी किसी परिचित के महँगे रैकेट से
दो-चार हाथ चला लेते हैं. दीर्घकालिक समस्या के साथ अपने शौक को अल्पकालिक रूप में
पूरा करके संतुष्टि का एहसास कर लेते हैं. बहरहाल, विश्व
बैडमिंटन दिवस की सभी खिलाडियों को शुभकामनायें.
जिंदादिल बने रहिये
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