विकास की दौड़ में
अंधाधुंध भागते समाज में यदि मानसिकता की बात की जाये तो बहुतायत में ऐसे लोग
मिलेंगे जो नकारात्मकता से भरे दिखते हैं. आपने अपने आसपास महसूस किया होगा कि सड़क
पर चलते हुए लोग हों,
बाजार के खरीददारी करती भीड़ हो, कार में बैठकर यात्रा पर
निकले मुसाफिर हों, अपने काम के सम्बन्ध में दौड़ते-भागते लोग
हों अथवा अन्य कोई और समूह, बहुतायत लोग परेशान से, विचारों में खोये, उदास से नजर आते हैं. बहुसंख्यक
लोगों के चेहरों से एक तरह की मुस्कान, एक तरह की संतुष्टि, एक तरह की सकारात्मकता गायब मिलती है. यदि नकारात्मकता के सम्बन्ध में गणितीय
नियमों पर ध्यान दें तो गणित के अनुसार दो नकारात्मक (निगेटिव) मिलकर धनात्मक
(पॉजिटिव) की उत्पत्ति करते हैं. ऐसा निश्चित रूप से गणितीय संरचना में सम्भव है
मगर सामाजिक रूप में, किसी व्यक्ति के जीवन में एक निगेटिव
ही परेशानी पैदा कर देता है.
वर्तमान में समाज
में बहुतायत में नकारात्मकता देखने को मिल रही है. काम करने का ढंग, जीवन-शैली, सोचना-समझना, तर्क-वितर्क, सामाजिक सरोकार आदि में नकारात्मकता परिलक्षित हो
रही है. विकासोन्मुख इन्सान अपने विकास के सापेक्ष नकारात्मक होता जा रहा है. इसके
पीछे खुद इन्सान की ही बहुत बड़ी भूमिका है. किसी भी तरह की जरा सी परेशानी को, छोटे से कष्ट को, किसी छोटी सी घटना को वह अपने दिल-दिमाग में
इस कदर बैठा लेता है कि उसके सापेक्ष सम्पूर्ण जीवन का निर्धारण करने लगता है, उन्हीं घटनाओं के सन्दर्भ में आने वाले समय
की सफलताओं-असफलताओं को निर्धारित करने लगता है. अतीत की समस्याओं, परेशानियों, कष्टों को वर्तमान अथवा भविष्य के साथ जोड़कर कार्य
करने से जहाँ एक तरफ कार्य-क्षमता प्रभावित होती है वहीं दूसरी तरफ अन्य
विकासात्मक कार्यों में भी व्यवधान पड़ता है.
यह सच है कि
परिस्थितियाँ किसी न किसी रूप में मनुष्य के सोचने-समझने को प्रभावित करती हैं
किन्तु यह भी सच है कि यदि मनुष्य अपने आपको स्थिर रखे, संयमित रखे, नियंत्रित रखे तो निसंदेह वह अपनी सोच को भी
नियंत्रित कर सकता है. इसी सोच के द्वारा जीवन में सकारात्मकता, नकारात्मकता का निर्माण होता है. देखा जाये
तो किसी के भी जीवन में सकारात्मकता हो या फिर नकारात्मकता, वह कहीं बाहर से नहीं आती है. ये उसकी सोच
और उसके व्यावहारिक क्रियान्वयन पर निर्भर करती है. यह मानवीय स्वभाव की बहुत बड़ी
कमजोरी होती है कि किसी भी असामान्य स्थिति के उत्पन्न होने पर, किसी भी तरह की असहज स्थिति सामने
आने पर व्यक्ति के मन-मष्तिष्क में सबसे पहले नकारात्मक विचार ही आते हैं. इस तरह
की नकारात्मक स्थिति पर अंकुश नहीं लगाये जाने से ऐसे व्यक्तियों के स्वभाव में
नकारात्मक लक्षणों की तीव्रता बढ़ती जाती है. इसके चलते वह अपने परिजनों, सहयोगियों, सामाजिक क्रियाकलापों में अकेलेपन का अनुभव करने लगता है. इससे उसके
स्वभाव में भी बदलाव आने लगता है.
ऐसा नहीं है कि
किसी व्यक्ति के जीवन में आई नकारात्मकता को दूर नहीं किया जा सकता है. चूँकि यह
स्थिति विशुद्ध सोच पर, मानसिकता
पर आधारित है, इस कारण
इससे छुटकारा भी पाया जा सकता है. नकारात्मकता को सकारात्मकता में परिवर्तित किया
जा सकता है. इसके लिए सबसे पहले तो किसी भी व्यक्ति को अपने विश्वास को, अपनी सोच को कमजोर नहीं मानना चाहिए.
आत्मविश्वास को सर्वोच्च स्तर तक बनाये रखने वाले व्यक्ति किसी भी तरह की
नकारात्मकता को अपने आसपास फटकने भी नहीं देते. ऐसे व्यक्ति जिनको छोटी-छोटी
समस्याओं, परेशानियों के
चलते नकारात्मक विचार आने शुरू हो जाते हैं उन्हें सदैव ऐसे लोगों से मिलने से
बचना चाहिए जो सिर्फ और सिर्फ नकारात्मक बातों को प्रश्रय देते हैं, उन्हें बढ़ावा देते हैं. अक्सर देखने में आता
है कि व्यक्ति आपसी वार्तालाप में नकारात्मक शब्दों का प्रयोग करता है, अपने साथ होने वाले कष्ट को, दुःख को बहुत बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत करता है, उसे ऐसा करने से बचना चाहिए. सकारात्मक
शब्दों का अधिकाधिक प्रयोग करना चाहिए. इसके साथ-साथ जीवन को निरुद्देश्य समझकर
गुजारने की प्रवृत्ति से बचना चाहिए. प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का अपना महत्त्व है
और वह उसी के अनुसार इस समाज में अपना योगदान दे रहा होता है. समाज में अपना
योगदान से रहे ऐसे लोगों को अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए साथ ही अपने
किसी शौक को भी स्थापित करने की आवश्यकता है. बहुधा देखने में आता है कि व्यक्ति
लगातार कार्य करने के बाद भी समाज में, परिवार में उस प्रस्थिति को प्राप्त नहीं कर पाता है
जिसका हक़दार वह खुद को समझता है. इसके चलते भी उसमें नकारात्मक सोच का जन्म होने
लगता है. ऐसे व्यक्तियों को अपने किसी न किसी शौक के द्वारा अपने व्यक्तित्व को
निखारने का प्रयास करना चाहिए.
नकारात्मकता से
दूर रहने के लिए अथवा नकारात्मकता को स्वयं से दूर रखने के लिए प्रत्येक व्यक्ति
को खुद को तनावमुक्त रखने की आवश्यकता है. वर्तमान जीवन-शैली जिस तरह से होती जा
रही है, उससे जरा-जरा सी
बात पर व्यक्ति तनावग्रस्त होने लगता है. इससे बचने का एक सूत्र सदैव याद रखना
चाहिए कि जो कार्य व्यक्ति के नियंत्रण में, उसकी पहुँच में
है उसको कर लेना चाहिए, उसके लिए तनाव लेने की आवश्यकता नहीं
और कोई ऐसा कार्य है जो उसके वश में नहीं, उसके द्वारा उसका
समाधान किया जा पाना सम्भव नहीं तो ऐसे विषय पर उसे तनाव लेने की आवश्यकता नहीं. गणितीय
नियमों की तरह सामाजिक जीवन में भी निगेटिव भी पॉजिटिव में बदलता है किन्तु इसके
लिए व्यक्ति को अपने कार्य से संतुष्टि, अपनी सोच में विश्वास, अपने रहन-सहन में नियंत्रण, अपने जीवन में उद्देश्य बनाये रखना चाहिए.
याद रखना होगा कि व्यक्ति की सकारात्मकता ही उसको सफलता प्रदान करवाती है, उसे मंजिल तक ले जाती है.
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