18 जनवरी 2025

मीडिया की आड़ में महाकुम्भ की नौटंकी

मीडिया में जिस तरह से असंवेदनशील लोग घुस चुके हैं, उससे विषयों का लगातार क्षरण हो रहा है. हर हाथ में स्मार्ट फोन का कैमरा, इंटरनेट, सोशल मीडिया का मंच होने से सभी को किसी न किसी मीडिया मंच का मालिक बना रखा है. जहाँ मन हुआ मुँह उठाकर घुस गए. इसी मुँह उठाकर घुसने की प्रवृत्ति के कारण विषयों का गाम्भीर्य गायब होता जा रहा है. इसका उदाहरण प्रयागराज में चल रहा पावन महाकुम्भ है. जिसे देखो वो मुँह उठाये खुद को स्वयंभू मीडिया चैनल घोषित करके गम्भीरता से इतर बस दो कौड़ी की रील बना-बना ठेलने में लगा है. किसी को माला बेचती युवती की आँखें दिख रही हैं, किसी को IIT वाला बाबा दिख रहा है, किसी को स्त्री-सौन्दर्य आकर्षित करने में लगा है.

 



मोबाइल के सहारे क्रांति करते कथित मीडिया व्यक्तियों को शायद जानकारी नहीं होगी कि महाकुम्भ किसे कहते हैं? नागा बाबा कौन हैं? अखाड़ों का वास्तविक अर्थ क्या है? पूरे महाकुम्भ में मात्र कुछ दिन ही विशेष स्नान क्यों होते हैं? त्रिवेणी में तीसरी नदी कहाँ है? और भी बहुत सी महत्त्वपूर्ण जानकारी इन कम-दिमाग वालों के लिए महत्त्वपूर्ण नहीं. इनको बस ये पता करना है कि किस युवती की आँखें ज्यादा मोहक हैं? कौन सी युवती सर्वाधिक मोहक साध्वी है? देह के आकर्षण में खोये ये बददिमाग कथित मीडियामैन महाकुम्भ में भी सिर्फ रील बनाने का 'माल' खोज रहे हैं. इनको महाकुम्भ की गहराई से कोई मतलब नहीं. महाकुम्भ के भावार्थ से कोई लेना-देना नहीं. प्रयागराज की गम्भीरता का कोई मोल नहीं? त्रिवेणी के अलौकिक सौन्दर्य का कोई महत्त्व नहीं.

 


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