आज़ादी का जश्न
मनाने वाला एक और दिन हम सबके बीच उपस्थित है. देश में स्वाधीनता दिवस हो या फिर
गणतंत्र दिवस, इन दोनों
दिनों में नागरिकों में, बच्चों-बड़ों में जबरदस्त उत्साह
रहता है. आखिर इन दोनों दिनों में स्वतः ही गौरव की भावना की अनुभूति होती है. ऐसी
अनुभूति के चलते सारा दिन उमंग में, उल्लास में गुजर जाता
है. स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस मनाते हुए अक्सर मन में सवाल उठता है कि हम
सब जितना प्रसन्न, जितने उल्लासित इन दो दिनों में रहते हैं उतना शेष दिनों में
क्यों नहीं रहते हैं?
यह सवाल कतई आश्चर्यचकित
करने वाला नहीं लगेगा क्योंकि ऐसा सवाल एक अकेले हमारे मन में नहीं उठता है बल्कि
उन सभी नागरिकों के मन में उठता है जो किसी न किसी रूप में देश के विकास में अपनी
जिम्मेदारी का निर्वहन पूरी ईमानदारी से कर रहे हैं. यदि पूरी निष्पक्षता से, बिना किसी पूर्वाग्रह के विचार करें, इन दो दिनों पर दृष्टिपात करें तो स्पष्ट रूप से दिखाई देता है कि इन दो
दिनों के उल्लास के समाप्त होने के बाद अगले दिन से दिल-दिमाग तिकड़म में व्यस्त हो
जाता है. भ्रष्टाचार करने के उपाय किये जाने लगते हैं, काम
निकालने को रिश्वत देने-लेने की चर्चा की जाने लगती है, स्वार्थ-लिप्सा
में लिप्त कदम उठाये जाने लगते हैं.
सोचिए एक पल को कि
क्या देश का वास्तविक विकास इसी तरह से हो सकेगा? क्या दो दिनों में अपनी राष्ट्रभक्ति दिखाने से ही देश की
वास्तविक आज़ादी का मंतव्य पूरा होता है? सच्चाई तो ये है कि
अब हम सभी आज़ाद हैं और अपनी स्वतंत्रता का जश्न किसी एक दिन नहीं, किसी विशेष दिन नहीं बल्कि प्रत्येक दिन मनाया जाना चाहिए. आखिर हम सभी
अपनी ही आज़ादी का, अपनी ही स्वतंत्रता का एहसास स्वयं नहीं
करेंगे तो कैसे अपेक्षा करेंगे कि विदेशी हमारी स्वतंत्रता का सम्मान करेंगे? इसके लिए सबसे पहले हम सभी को अपने-अपने दायित्वों,
कर्तव्यों का पूरी ईमानदारी से पालन करने की आवश्यकता है. देश के विकास के लिए
किसी दूसरे की तरफ ताकने के स्थान पर हम सबका प्रयास यही होना चाहिए कि स्वतः ही
अपना सकारात्मक योगदान दे सकें. जब तक इस तरफ की भावना एक-एक नागरिक में नहीं होती
है तो अपनी आज़ादी का हम सब सिर्फ जश्न ही मनाते रहेंगे, उसकी
वास्तविकता का लाभ नहीं उठा सकेंगे.
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