08 अगस्त 2024

शांति, अहिंसा की वैचारिक छत्रछाया में युद्ध

हिरोशिमा और नागासाकी में परमाणु हमले के आठ दशक बाद भी सवाल उभरते हैं कि क्या समूचे विश्व ने उन परमाणु हमलों से उत्पन्न विभीषिका से सबक लिया? क्या विश्व की तमाम महाशक्तियों सहित छोटे-छोटे देशों ने युद्ध को रोकने जैसा कोई कदम उठाया है? 6 अगस्त 1945 और 9 अगस्त 1945 को अमेरिका द्वारा जापान के दो शहरों हिरोशिमा और नागासाकी में गिराए गए परमाणु बम से अनुमानित रूप में ढाई लाख नागरिक मारे गए थे. परमाणु हमला अपने आपमें भयावह घटनाक्रम था, जिसका परिणाम जापान को न केवल तत्कालीन दशा में भुगतना पड़ा बल्कि उससे उत्पन्न विकिरण के कारण आज भी वहाँ के नागरिक अनेक असाध्य रोगों का सामना करने को विवश हैं.

 

आँकड़ों में दर्ज हो चुकी मौतों, वर्तमान में विकिरण का दंश झेल रहे लोग वैश्विक पटल से गायब नहीं हैं, इसके बाद भी विश्व समुदाय ने युद्ध की उस विभीषिका से सबक लेने की कोशिश नहीं की. जापान आज भी प्रतिवर्ष शांति स्मारक समारोह आयोजित करता है. इस समारोह में विश्व भर से लोग एकत्रित होते हैं, जहाँ सामूहिक रूप से परमाणु परीक्षण और ऐसे हथियारों के प्रयोग को समाप्त करने पर सहमति बनती है. द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बम किसी भी युद्ध अथवा दो देशों के आपसी संघर्ष में प्रयोग किए गए एकमात्र उदाहरण हैं. यद्यपि उस विश्व युद्ध के पश्चात् वैश्विक समुदाय ने विश्व युद्ध जैसे संकट का सामना भले न किया हो मगर किसी न किसी रूप में सम्पूर्ण विश्व में युद्ध, संघर्ष चलता ही रहा है.

 



परमाणु हमलों से उत्पन्न विभीषिका को देखने, समझने के बाद वैश्विक स्तर पर परमाणु हथियारों की रोकथाम करने सम्बन्धी दिशा में कार्य करना शुरू किया गया. अनेक देशों के द्वारा चलाये गए दशकों के सार्वजनिक अभियानों और बहुपक्षीय वार्ताओं के बाद व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (सीटीबीटी) को व्यावहारिक रूप प्रदान किया गया. यद्यपि सीटीबीटी को हस्ताक्षर के लिए खोले जाने के बाद भी यह अभी तक पूर्णतः लागू नहीं हो सकी है क्योंकि कुछ विशेष राष्ट्रों, जिनके जिनके हस्ताक्षर संधि के लागू होने के लिए आवश्यक हैं, ने अभी तक संधि की पुष्टि नहीं की है तथापि इसको लागू किये जाने के प्रयास वैश्विक स्तर पर लगातार होते दिखते हैं. इस तरह के निरर्थक प्रयासों के बीच समूचे विश्व में कहीं न कहीं दो देशों के बीच तनाव, संघर्ष, युद्ध आदि को देख कर लगता है कि महाशक्तियों द्वारा, अन्य छोटे राष्ट्रों द्वारा सिर्फ परमाणु हथियारों की रोकथाम के लिए प्रक्रिया को दिखावे मात्र के लिए अपनाया जा रहा है. इस तरह के प्रयासों के द्वारा वे परमाणु हथियारों के निर्माण, उनके प्रसार, उपयोग को भले ही रोकना चाह रहे हो मगर उनका उद्देश्य आपस में युद्ध को रोकना नहीं है, दो देशों के बीच संघर्ष को रोकना नहीं है. विश्व की तमाम घोषित, स्व-घोषित, स्वयंभू महाशक्तियों, शक्तियों द्वारा यदि युद्ध रोकना, संघर्ष न होने देना ही उद्देश्य होता तो आज सम्पूर्ण विश्व पुनः विश्व युद्ध जैसी स्थिति के मुहाने पर आकर न खड़ा हो गया होता.

 

विश्व में किसी भी महाद्वीप की तरफ नजर उठाई जाये, किसी भी क्षेत्र की तरफ देखा जाये, किसी भी देश की स्थिति का आकलन किया जाये वहाँ संघर्ष, युद्ध, तनाव, हिंसा ही दिखाई दे रही है. दो वर्ष से अधिक समय से चलता आ रहा रूस-यूक्रेन युद्ध, पिछले एक वर्ष से चलता इजरायल-हमास युद्ध के साथ ही आरम्भ हुआ इजरायल-ईरान युद्ध, लम्बे समय से अपना अस्तित्व बनाये सऊदी अरब और ईरान के बीच का विवाद आदि ऐसे हैं जो समूचे विश्व का ध्यान अपनी तरफ बनाये हुए हैं. विश्व की तमाम महाशक्तियाँ आये दिन किसी न किसी रूप में इन युद्धों में अपनी उपस्थिति दर्शा ही देती हैं. रूस-यूक्रेन युद्ध में तो परमाणु हमले की आशंका तक नजर आने लगती है. इन युद्धों के अलावा दक्षिण एशिया क्षेत्र विगत लम्बे समय से अशांत बना हुआ है. यहाँ दो देशों के बीच भले ही वर्तमान में युद्ध न चल रहा हो किन्तु स्थितियाँ युद्ध से कम नहीं हैं. भारत के अनेक पडोसी देशों से होने वाली आतंकी घटनाएँ एक तरह का युद्ध ही हैं. इसी में हाल के समय में पाकिस्तान, श्रीलंका, अफगानिस्तान, बांग्लादेश आदि की तख्तापलट की घटनाएँ, कई देशों के राष्ट्राध्यक्षों द्वारा अपनी जान बचाकर देश छोड़ने की घटनाएँ, इन देशों में आंतरिक हिंसात्मक घटनाएँ यहाँ के नागरिकों को युद्ध की तरफ ही धकेलती हैं.

 

सोचने वाली बात है कि आये दिन किसी न किसी कार्यक्रम, समारोह के द्वारा शांति, अहिंसा, प्रेम, सद्भाव आदि का पाठ पढ़ाने वाले देश, युद्ध की विभीषिका से परिचित करवाते अनेक अंतर्राष्ट्रीय संगठन क्यों अपने प्रयासों में विफल हो जाते हैं? जापान सहित अनेक देशों ने हिरोशिमा, नागासाकी परमाणु हमलों की बरसी को मनाते हुए इससे प्रभावित हुए लोगों के सम्मान में विचार भी व्यक्त करेंगे मगर इससे सबक लेते हुए खुद को युद्ध से दूर रहने का संकल्प नहीं दिखायेंगे. शांति, अहिंसा, सद्भाव की वैचारिक छत्रछाया में पूरी दुनिया युद्ध से घिरी रहेगी.   


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