26 मई 2024

अपराध की तरफ बढ़ते नौनिहाल कदम

विगत कुछ समय में बच्चों, किशोरों से संदर्भित जिस तरह की घटनाएँ सामने आई हैं, उनको देखकर ऐसा महसूस हो रहा है कि भले ही समाज में विकास का क्रम बना हुआ है मगर नैतिकता में, सामाजिकता में निरंतर गिरावट आ रही है. सामाजिक और नैतिक रूप से इस पीढ़ी को उस तरह से अनुशासित नहीं किया जा सका है, जैसी कि समाज में अपेक्षा होती है. इस पीढ़ी को नैतिक रूप से वैसा जिम्मेवार नहीं बनाया गया है जैसा कि किसी इंसान के लिए अपेक्षित होता है. सामाजिकता के नाम पर भी यह पीढ़ी संज्ञा-शून्य ही नजर आती है. ऐसा नहीं है कि वर्तमान समय के समस्त बच्चों, किशोरों के सन्दर्भ में ये सही है मगर बहुतायत में इस पीढ़ी के साथ यही समस्या बनी हुई है. उसके लिए नैतिकता, सामाजिकता से कहीं अधिक बड़ी बात उनका अपना मनोरंजन, अपना पैशन हो गया है. इसके लिए वे कुछ भी करने को तैयार बैठे होते हैं, बिना ये जाने-समझे कि उनका एक गलत कदम किसी की जान भी ले सकता है.

 



इस तरह से भाव-विहीन होती जा रही पीढ़ी के किशोरों, बच्चों द्वारा की गई हरकतों की संख्या उँगलियों में गिने जाने से बहुत आगे निकल चुकी है. बीते दिनों में हुई ऐसी कुछ घटनाओं को समाज अभी भूला नहीं होगा. पुणे का हालिया केस देशव्यापी चर्चा का विषय बना हुआ है जहाँ एक किशोर की तेज रफ़्तार कार से दो व्यक्तियों की मृत्यु हो गई. यहाँ गौरतलब ये है कि उस किशोर को जरा सा भी भय समाज का अथवा अपने परिवार का नहीं था कि उसके द्वारा नशे में कार को तेज रफ़्तार से चलाया जा रहा है, जबकि वह खुद नाबालिग है और अभी उसका कार ड्राइविंग लाइसेंस भी नहीं बना है. ऐसी गैर-कानूनी स्थिति से उस लड़के के भयभीत न होने की स्थिति उस समय स्पष्ट हो गई जबकि वह अपने अमीर पिता के रसूख के चलते न केवल जमानत पा गया बल्कि मेडिकल टेस्ट में भी एल्कोहल न होना पाया गया. इससे भी बड़ी बात ये हुई कि अदालत द्वारा उसको तीन सौ शब्दों का निबंध लेखन, कुछ दिनों यातायात पुलिस के साथ नियम-कानून सीखने का काम सजा के तौर पर मिला. एक और घटना के रूप में उत्तराखंड के एक स्कूल की घटना का जिक्र करना भी यहाँ आवश्यक हो जाता है जहाँ पर एक लड़के द्वारा अपनी ही कक्षा की चौदह वर्ष की लड़की का अश्लील वीडियो बनाकर वायरल कर दिया गया. बदनामी के डर से उस लड़की ने आत्महत्या कर ली. इस मामले में अदालत द्वारा उस लड़के को इस आधार पर जमानत नहीं दी गई क्योंकि अदालत ने उसे अनुशासनहीन माना और जमानत पर उसकी रिहाई को समाज के लिए खतरा बताया. 

 

ऐसी यही दो घटनाएँ ही नहीं हैं बल्कि लगभग रोज ही इस तरह की घटनाएँ हमारे आसपास हो रही हैं. यदि इन घटनाओं के मूल में देखें तो स्पष्ट रूप से समझ में आएगा कि जिस तरह की जीवन-शैली वर्तमान में होती जा रही है, उससे परिवार में, समाज में एक-दूसरे के लिए अब समय ही नहीं रह गया है. संयुक्त परिवारों के बिखरने के साथ-साथ सामाजिक ढाँचे में हुए विघटन ने भी अपने पड़ोसियों से संबंधों में मधुरता का, दायित्व का लोप करवा दिया है. इसके चलते भी मोहल्ले में, आसपास के घरों में बच्चों पर ध्यान दिए जाने की सामाजिकता समाप्त ही हो चुकी है. सामाजिक विकास के क्रम में अब जबकि ये पढ़ाया जाने लगा हो कि अभिभावक और बच्चे अब दोस्त हैं, बचपन की गोद में खेलते बच्चों को भी उनके स्टेटस का, उनकी इज्जत-बेइज्जती का पाठ सिखाया जाने लगा हो तो स्वाभाविक सी बात है कि बच्चों में, किशोरों में खुद में एक तरह का जिम्मेवार होने का भाव जागने लगता है. देखा जाये तो यह भाव-बोध उनको एक तरह की नकारात्मकता की तरफ ले जाता है. यही कारण है कि कम उम्र में नशे का शिकार हो जाना, तेज रफ़्तार से वाहन चलाना, शारीरिक संबंधों का बनाया जाना, रोमांचकता के लिए जीवन को खतरे में डालना, अपने शौक और थ्रिल के लिए आपराधिक कृत्य में संलिप्त हो जाना आदि सहजता से समाज में दिखने लगा है.

 

दरअसल कोरोनाकाल में लॉकडाउन के दौरान जिस तरह शिक्षा के लिए मोबाइल, कम्प्यूटर, इंटरनेट को बच्चों के लिए अनिवार्य सा बना दिया गया था, वह लॉकडाउन की समाप्ति के बाद यथावत बना हुआ है. इसका सुखद परिणाम सामने भले ही न आया हो मगर अनेकानेक स्वास्थ्य समस्याओं के साथ-साथ मानसिक समस्याओं ने, सामाजिक समस्याओं ने, आपराधिक घटनाओं ने अवश्य ही जन्म ले लिया है. चौबीस घंटे इंटरनेट की, मोबाइल की उपलब्धता ने बच्चों, किशोरों को अपनी उम्र से पहले ही युवा कर दिया है. इसके इनके स्वभाव में, दैनिक-चर्या में फूहड़ता, अश्लीलता, हिंसा, हैवानियत, नृशंसता, क्रूरता आदि का समावेश होता जा रहा है. इसकी दुखद परिणति हिंसक, आपराधिक घटनाओं के रूप में हम सभी आये दिन देख रहे हैं. समाज को जल्द से जल्द इस पर विचार करते हुए संस्कारित, सामाजिक वातावरण का निर्माण अपने ही परिवार से करना पड़ेगा. इस तरह के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का कम से कम उपयोग करने का कदम उठाना होगा. शिक्षा, संस्कारों को मोबाइल, कम्प्यूटर के स्थान पर परिवार के बड़े-बुजुर्गों द्वारा, शैक्षिक संस्थानों के माध्यम से दिए जाने का कार्य पुनः करना होगा.


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