23 मई 2024

व्यवस्था परिवर्तन करने का खोखला दावा

देश की राजधानी से भ्रष्टाचार विरोधी एक आन्दोलन उभरता है जो धीरे-धीरे तमाम सारे युवाओं, अनेक बुद्धिजीवियों, समाजसेवियों, गैर-राजनैतिक संगठनों के सहयोग से राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बनता है. आन्दोलन के साथ जुड़े लोगों ने देश से भ्रष्टाचार समाप्ति की कामना कर डाली, भ्रष्ट-रिश्वतखोर व्यक्तियों के जेल के पीछे होने की कल्पना कर ली, देश में लोकपाल व्यवस्था होने का सपना बुन डाला. हजारों-हजार लोगों के सपनों, कामनाओं को अपनी सीढ़ी बनाकर राजनैतिक क्षेत्र में जन्मी आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की सत्ता सँभाली. राजनीति को बदलने का दावा करने वाले, व्यवस्था परिवर्तन करने के नारे लगाने वाले जब सत्तासीन हुए तो उनके साथ जुड़े लोगों के साथ-साथ आशान्वित नागरिकों में आशा का संचार हुआ था.

 



ईमानदारी का चोला पहनकर आये लोगों ने, राजनीति को बदलने का दावा करने लोगों ने राजनीति को बदलकर रख दिया. संभवतः देश की राजनीति में ऐसा पहली बार हुआ होगा, पहले राजनैतिक दल के साथ ऐसा हुआ होगा कि उसका मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री दोनों ही पद पर रहते हुए जेल में हैं. ऐसा आबकारी घोटाले मामले के कारण हुआ. राजनीति से, देश से भ्रष्टाचार समाप्त करने का संकल्प लेकर सामने आई आम आदमी पार्टी का शीर्ष नेतृत्व जेल में है. इसे इस पार्टी की कार्यशैली ही कहा जायेगा कि इसके साथ आन्दोलन-काल में जुड़े लोगों को या तो पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है या फिर वे किसी न किसी तरह के मामलों में जेल में हैं. विगत कई दशकों में राजनीति में माफियाओं के, अपराधियों के घुस आने से गंद तो फैली हुई थी, इन लोगों ने उस गंद को और अधिक मचमचा दिया है. न केवल अपने बयानों से बल्कि अपने कामों से भी सिवाय विवाद पैदा करने के कुछ नहीं किया गया. अभी हालिया काण्ड इसका जीता-जागता उदाहरण है.

 

ये हालिया काण्ड आम आदमी पार्टी की महिला सांसद के साथ मारपीट किये जाने जाने का है. आश्चर्य की बात है कि एक सांसद को मुख्यमंत्री आवास पर पीटे जाने की घटना होती है. आबकारी घोटाले में जेल गए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को चुनाव प्रचार हेतु कुछ दिन के लिए अंतरिम जमानत पर रिहा किया गया. उनके बाहर आने के बाद ही आम आदमी पार्टी की राज्यसभा सांसद स्वाति मालीवाल ने आरोप लगाया कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के निजी सचिव विभव कुमार द्वारा उनके साथ मारपीट की गई. यहाँ विशेष बात ये है कि आरोप लगाने वाला व्यक्ति, साजिशकर्ता, घटनास्थल आदि सबकुछ आम आदमी पार्टी से सम्बंधित है मगर राजनैतिक व्यवस्था बदलने आये महानुभावों का कहना है कि ये भाजपा की साजिश है.  

 

मारपीट की इस घटना का अंजाम क्या होगा ये देखने वाली बात है लेकिन आम आदमी पार्टी के विगत तमाम कृत्यों से यह तो स्पष्ट हो चुका है कि इनका मकसद किसी भी रूप में राजनैतिक शुचिता का पालन करना नहीं है. व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर इनको महज सत्ता हासिल करनी थी, जिसे हासिल करके वे मलाई खाने में लगे हैं. राजनीति बदलने के लिए, भ्रष्टाचार मुक्ति के लिए, लोकपाल लाने के लिए इनके द्वारा चलाया गया आन्दोलन अभी बहुत पुराना नहीं हुआ है. देश के नागरिकों की याददाश्त इतनी भी कमजोर नहीं हुई होगी कि वे इसे भूल गए हों. सभी को अच्छी तरह से याद होगा कि आन्दोलन के दौरान केजरीवाल द्वारा मंचों से पानी का मीटर फूँकते हुए, सैकड़ों कागजों का बंडल दिखाते हुए दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को कटघरे में खड़ा किया जाता था; अनेकानेक राजनैतिक व्यक्तियों के, मंत्रियों, सांसदों, विधायकों के नाम लेकर उन पर भ्रष्टाचार का, रिश्वतखोरी का, परिवारवाद का आरोप लगाते हुए उनको जेल में डालने की हुँकार भरी जाती थी; अपने आपको शुचिता का एकमात्र केन्द्र साबित करने के लिए अनेकानेक आदर्शवादी बयान दिए जाते थे मगर असलियत इससे बहुत दूर निकली.

 

राजनीति से भ्रष्टाचार दूर करना तो दूर की बात रही, खुद इनका शीर्ष नेतृत्व भ्रष्टाचार मामलों में संलिप्त नजर आने लगा. व्यवस्था बदलने आये लोगों ने व्यवस्था के नाम पर संविधान का मखौल बनाना शुरू कर दिया. राजनैतिक शुचिता स्थापित करने आई पार्टी का शीर्ष नेतृत्व न केवल बाहर बल्कि सदन में भी कभी प्रधानमंत्री के लिए, कभी एलजी के लिए अपमानजनक शब्दावली का प्रयोग करता दिखाई दिया. राजनैतिक बदलाव करने की असलियत का पता इसी से लगता है कि जब ये लोग अथवा इनके मुखिया अरविन्द केजरीवाल आन्दोलन कर रहे थे तब इनका मुख्य उद्देश्य भ्रष्ट नेताओं को जेल पहुँचाना था. अब यही चुनावी गठबंधन में उनके साथ हाथ मिला बैठे तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर आरोप लगा रहे हैं कि वे सबको जेल भेजना चाहते हैं. समझ से परे है कि जिन-जिन नेताओं का नाम लेकर केजरीवाल उनको जेल भेजना चाहते थे, अब उनको जेल जाने से बचाने में क्यों लगे हुए हैं? जिस कांग्रेस को भ्रष्ट बताकर, दिल्ली की जनता को बदलाव का सपना दिखाकर अपने पहले चुनाव पश्चात् कांग्रेस से ही गठबंधन करके सत्ता में आये थे. यदि उनका उद्देश्य दिल्ली की व्यवस्था को दुरुस्त करना था तो इस्तीफ़ा देकर नरेन्द्र मोदी के विरुद्ध लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ा होता. आन्दोलन की नागरिक-सहानुभूति के द्वारा वे खुद को मुख्यमंत्री के रास्ते से प्रधानमंत्री पद तक ले जाना चाहते थे.

 

यदि आन्दोलन के परिदृश्य से उपजे आदर्शवादी विचारों, बयानों को दरकिनार करते हुए वास्तविकता का अध्ययन किया जाये तो स्पष्ट रूप से समझ आता है कि अरविन्द केजरीवाल जबरदस्त महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति हैं. यही कारण है कि राजनीति में, सत्ता में बने रहने के लिए उनके द्वारा लगातार उन्हीं बातों, सिद्धांतों, व्यक्तियों से समझौता, गठबंधन किया गया जिनके खिलाफ वे आवाज़ उठाते रहे हैं. स्वाति मालीवाल के आरोपों के बाद केजरीवाल के निजी सचिव विभव कुमार की गिरफ़्तारी भले हो गई हो मगर केजरीवाल की चुप्पी कुछ अलग ही संकेत करती है. फ़िलहाल, राजनीति बदलने आये लोगों ने जनभावनाओं के साथ खेलते हुए वही गंदगी फैला रखी है जो अन्य राजनैतिक दलों द्वारा फैलाई जाती रही है.

 


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