26 अगस्त 2023

असफलता जीवन का अंत नहीं

अपने निर्धारित समय पर चंद्रयान 3 के चंद्रमा की सतह पर उतरते ही हम वैश्विक स्तर पर चौथे देश हो गए जिन्होंने चंद्रमा का स्पर्श किया है. इस उपलब्धि के साथ ही हम इसके दक्षिणी ध्रुव पर पहुँचने वाले पहले देश भी बने. चंद्रयान 3 अब किस तरह से चंद्रमा के, अंतरिक्ष के रहस्यों को उजागर करेगा; कैसे नवीनतम खोजों को आधार मिलेगा; कैसे ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में चंद्रयान 3 भारत का नाम रोशन करेगा; कैसे हमारा देश अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था की राह पर लगातार उन्नति के पथ पर बढ़ सकेगा; कैसे अंतरिक्ष यात्रा के लिए अन्य देशों को अपने यान प्रक्षेपित करने के लिए विश्वसनीय मंच उपलब्ध हो सकेगा आदि पर लगातार मंथन होता रहेगा, विमर्श होता रहेगा. इसके सापेक्ष अभियान की इस सफलता ने प्रमुखता से सिखाया है कि असफलताओं से खुद को निराश नहीं किया जाना चाहिए.  




मात्र चार साल की अल्पावधि में जिस तरह से इसरो के वैज्ञानिकों ने चंद्रयान 2 की असफल लैंडिंग की निराशा से बाहर निकल कर सफलता का झंडा चंद्रमा पर लहराया है, वह अनुकरणीय है. सन 2019 में भी हमारे वैज्ञानिकों ने चंद्रयान 2 को दक्षिणी ध्रुव पर उतारने का प्रयास किया था मगर चंद्रमा की सतह से कुछ पहले ही संपर्क नियंत्रण कक्ष से टूट गया था. लैंडर विक्रम की चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग न हो पाने और फिर ऑर्बिटर से उसका संपर्क टूट जाने बाद तत्कालीन इसरो प्रमुख के. सिवन भाव-विह्वल हो उठे थे. उनका अपने आँसू न रोक पाना और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उनको गले लगाकर उनका हौसला बढ़ाना भारतवासी आज भी भूले नहीं हैं. उन आँसुओं के पीछे छिपी भावनात्मकता को आज की सफलता के बाद उमड़े आँसुओं से समझा जा सकता है, आज की स्वर्णिम गौरवमयी गाथा को समझा जा सकता है.


चंद्रयान 2 की असफल लैंडिंग के बाद से लेकर चंद्रयान 3 की सफल लैंडिंग के बीच वैज्ञानिकों के धैर्य, उनकी मेहनत, आत्मविश्वास की कहानी उन बच्चों को अवश्य ही सुनाई जानी चाहिए जो किसी एक प्रतियोगी परीक्षा की असफलता के बाद हताशा, निराशा, अवसाद के अंधकार में जाकर अपने जीवन को समाप्त कर लेते हैं. देश का एक शहर कोटा लम्बे समय से जहाँ प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता दिलाने के लिए प्रसिद्ध रहा है वहीं अब वह बच्चों के द्वारा लगातार की जा रही आत्महत्याओं के लिए कलंकित हो रहा है. अभिभावकों को कोटा अथवा अन्य स्थानों पर कठिन परिश्रम कर रहे बच्चों के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तरह हौसला, हिम्मत बननी चाहिए. अभिभावकों को समझाना और समझना चाहिए कि दो-चार प्रतियोगी परीक्षाओं की असफलता ही ज़िन्दगी का अभीष्ट नहीं है. ज़िन्दगी इसके भी बहुत आगे तक है. सफलताओं के लिए और भी रास्ते हैं, और भी मंच हैं.


इस अभियान की सफलता से यह भी सीखने को मिलता है कि किस तरह से असफलता के तनाव से बाहर निकलकर अल्प समय में भी सफलता को प्राप्त किया जा सकता है. एक-एक अभियान में देश सैकड़ों करोड़ रुपये के साथ-साथ सैकड़ों वैज्ञानिकों की मेधा, श्रम, समय, संसाधन आदि का समन्वित स्वरूप कार्य करता है. एक ऐसे देश के लिए जहाँ पर जनसंख्या का दबाव बहुत अधिक है; गरीबी की रेखा से नीचे रहने वालों की संख्या भी अधिक है; जनहितकारी योजनाओं में धन की कमी नहीं रहने दी जाती है; प्राकृतिक आपदाओं में सरकारी खजाने से बिना किसी भेदभाव के सहायता उपलब्ध करवाई जाती है वहाँ स्पष्ट है कि न केवल आर्थिक संसाधनों पर बल्कि प्राकृतिक संसाधनों पर, मानवजन्य संसाधनों पर भी एक तरह का दबाव बन जाता है. संभव है कि अनेकानेक भावी योजनाओं को भविष्य के लिए सुरक्षित रख लिया गया होगा. संभव है कि अनेक संचालित योजनाओं के बजट को रोककर इस महत्त्वाकांक्षी अभियान को सफलता की राह ले जाया गया होगा. ऐसे में सफलता प्राप्त करने का दबाव किस स्थिति तक रहता होगा, इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता है.


इन स्थितियों का दबाव न केवल सरकार पर वरन वैज्ञानिकों पर भी रहता होगा. एक अभियान की असफल लैंडिंग का तनाव लेकर, देश की अनेकानेक परेशानियों, समस्याओं को जानते-समझते हुए, वैश्विक जगत में खुद को स्थापित करने के दबाव को लेकर भी हमारे वैज्ञानिकों ने महान उपलब्धि हासिल की है. उन्होंने दिखाया है कि हम भारतीय महज कीर्तिमान रचने के लिए नहीं वरन दुर्गम्य को सहज बनाने, अलभ्य को सुलभ बनाने के लिए पूर्ण मनोयोग, आत्मविश्वास से कार्य करते हैं. हमारे वैज्ञानिकों ने दिखाया है कि एक असफलता जीवन मे संभावनाओं का अंत नहीं करती है, बस हमें ही अपनी हिम्मत बनाये रखनी चाहिए. यही हौसला, हिम्मत ही मिशन चंद्रयान के बाद गगनयान और सूर्य मिशन के लिए प्रेरित कर रहा है. इसी हौसले को, असफलता के बाद सफलता पाने के जज्बे को हमें अपने बच्चों को समझाने की आवश्यकता है. 





 

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