आये दिन खबरें आ रही हैं युवाओं की मौत की. बहुत बड़ी संख्या में मौत का शिकार
बन रहे युवाओं में बहुत कम ऐसे हैं जो सामान्य जीवन व्यतीत करते हुए मौत की नींद
सो गए. समाचारों, जानकारियों के अनुसार बहुत बड़ी संख्या में अवसाद के कारण, किसी बीमारी के कारण, हार्ट अटैक के कारण, आत्महत्या करके युवा मौत का शिकार बन रहे हैं. इन युवाओं की उम्र बहुत
अधिक नहीं है. इनमें से बहुत तो किशोरावस्था के होंगे. बहरहाल, इन युवाओं की उम्र कुछ भी रही हो, वह चिंता का विषय
हो उससे बड़ी चिंता का विषय उनका असमय चले जाना होना चाहिए. किसी भी युवा की मौत पर
कुछ दिन का मातम मना लिया जाता है, उसके कामों के कारण उसे
याद कर लिया जाता है और फिर सभी अपने-अपने काम पर लग जाते हैं. इस तरफ ध्यान देने
की कोई आवश्यकता महसूस नहीं की जा रही कि आखिर इतनी बड़ी संख्या में युवाओं की मौत
क्यों हो रही है? सभी युवा आत्महत्या नहीं कर रहे हैं मगर
बहुत बड़ी संख्या ऐसे युवाओं की है हो हार्ट अटैक का शिकार बने हैं. ये भी सोचने का
विषय होना चाहिए कि आखिर ऐसी किस तरह की जीवन शैली समाज में चलन में आती जा रही है
कि तीस से चालीस वर्ष तक के युवा भी हृदयाघात का शिकार होने लगे हैं?
वैसे यदि हम सकारात्मकता के साथ अपने आसपास निगाह डालें, अपनी ही दिनचर्या पर विचार करें, अपने संपर्क और
लोगों से मेल-मुलाक़ात पर ध्यान दें तो हमें खुद एहसास होगा कि किस तरह से हम सभी
लगातार एकाकी जीवन जीने की तरफ बढ़ रहे हैं. दिन-दिन भर सोशल मीडिया पर आभासी
संपर्क भले बना रहे मगर व्यक्तिगत रूप से हम लोग आपस में बहुत कम मिल रहे हैं.
बातचीत तो लगभग बंद सी ही है. अब बातचीत का सहारा सोशल मीडिया के तमाम मंच बन गए
हैं. सुबह-शाम के सन्देश पर उसी के अनुसार स्माइली भेजकर सामने वाले को जवाब भी दे
दिया जाता है. जिस औपचारिकता से सन्देश भेजा गया होता है,
उसी औपचारिकता से भेजी गई स्माइली को भी स्वीकार कर लिया जाता है. एक पल रुक कर यह
भी विचार नहीं किया जाता है कि कम से कम एक बार सामने वाले को फोन लगाकर बात कर ली
जाये, उसके हालचाल ले लिए जाएँ.
यह एक सार्वभौम सत्य है कि किसी भी व्यक्ति के मन का, उसकी मानसिकता का, हावभाव का पता मोबाइल पर भेजे
जाने वाले, पाए जाने वाले संदेशों से,
स्माइली से कदापि नहीं हो सकता है. सन्देश, फोटो, वीडियो या
स्माइली आदि किसी भी तरह से व्यक्ति के तात्कालिक मनोभावों को नहीं बता सकते. इसका
अंदाजा तो बस आपस में बातचीत के द्वारा हो सकता है. बात करने के लहजे से, सामने वाले के बोलने के अंदाज से समझ में आसानी से आता है कि वह खुश है
या दुखी है. बातचीत को हम सभी लोग जैसे समाप्त ही कर चुके हैं. मोबाइल के युग में, इंटरनेट के युग में आज एक ही घर में आपस में बातचीत न के बराबर हो रही
है. ऐसे में जाहिर है कोई युवा, किशोर यदि किसी भी तरह की
समस्या में घिरा है तो इसकी जानकारी नहीं हो पाती है. वर्तमान दौर में प्रत्येक व्यक्ति
को अनेक तरह की समस्याओं से सामना करना पड़ता है. किसी को पढ़ाई की समस्या है तो
किसी के सामने कैरियर की दिक्कत है. कोई पारिवारिक समस्याओं से दो-चार हो रहा है
तो कोई आर्थिक रूप से तंगहाली से गुजर रहा है. ऐसे में भावनात्मक सहारा, संबल न मिल पाने के कारण युवा, किशोर या तो अवसाद
में ग्रसित हो जाते हैं या फिर वे हताशा में कोई गलत कदम उठा लेते हैं.
जीवन सिर्फ जिन्दा रहने के लिए नहीं है वरन खुलकर आनंद
लेने के लिए है. हताशा, निराशा,
असफलता के दौर तो सबके साथ आते जाते हैं मगर यदि उसको भावनात्मक संबल मिल जाये तो
वह इन सबसे सहजता से उबर आता है. अपने युवाओं को, किशोरों को
असमय मौत के मुँह में जाने से रोकने के लिए आइये हम सब फिर से उसी दुनिया को बनाने
का प्रयास करें जहाँ मोबाइल, इंटरनेट ने हमारे रिश्तों को, संबंधों को, भावनात्मकता को नहीं खाया था.
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