06 दिसंबर 2022

अध्यापन के सत्रह साल

06 दिसम्बर को कोई भारतीय कभी नहीं भूल सकता है. यह वो तारीख है जिस दिन भारतीय सांस्कृतिक पहचान पर जबरिया थोपे गए निशान को हटाया गया था. यह तिथि इसलिए भी महत्त्वपूर्ण मानी जानी चाहिए क्योंकि भले ही न्यायिक प्रक्रिया के बाद यह सिद्ध हो जाता कि अमुक स्थान पर भगवान श्रीराम की जन्मस्थली है मगर शायद कोई भी न्यायालय उस पर बने निर्माण को गिराने की अनुमति नहीं देता, वो भी तब जबकि वह किसी मजहब विशेष से सम्बंधित हो. ऐसे में सबूतों के आने के पहले उस विवादित ढाँचे के गिर जाने ने रामलला के जन्मस्थान को पुनर्स्थापित का अवसर सुलभ करवाया.


यह तिथि और भी कारणों से अन्य लोगों के लिए महत्त्वपूर्ण हो सकती है. हमारे लिए भी यह तिथि इसलिए भी स्मरणीय है क्योंकि इसी दिन हमने उस क्षेत्र में लगभग स्थायी रूप से कदम रख दिया था, जिस क्षेत्र में कभी भी जाने का सोचा नहीं था. प्रत्येक बच्चा अपने बचपन से लेकर कैरियर बनाने तक किसी न किसी रूप में अपने आपको स्थापित करता रहता है. कभी वह डॉक्टर को देखकर डॉक्टर बनने का सपना पाल लेता है, कभी पुलिस वाले को देखकर पुलिस सेवा में जाने का मन बना लेता है. कभी वह अध्यापक बनना पसंद करता है तो कभी उसके सपने में कोई व्यापारी आने लगता है. हमारे साथ भी ऐसा बहुत कुछ हुआ मगर कभी भी न ख्वाब में, ना वास्तविकता में यह आया कि अध्यापक बनना है. ऐसा क्यों हुआ, इस बारे में कोई स्पष्ट स्मृति नहीं है.




समय का खेल देखिये, जिस क्षेत्र में नहीं आना चाहते थे, उस क्षेत्र में आज की तारीख में आने को मिला. एक तरफ इस तारीख में संस्कृति पर कब्ज़ा करने वाला निशान ध्वस्त हुआ था और एक हम इसी तिथि में उस पहचान को अपने ऊपर स्थापित करने वाले थे जिसे हम पसंद नहीं करते थे. इसी को समय, भाग्य, तकदीर आदि कह सकते हैं कि जिस क्षेत्र को, जिस काम को पसंद नहीं करते रहे, आज उसी में आधिकारिक रूप से काम करते हुए पूरे सत्रह वर्ष बीत गए. इन सत्रह वर्षों में इस क्षेत्र में स्वयं के द्वारा की गई बहुत सारी उठापटक को किया भी, देखा भी मगर इस क्षेत्र से पीछा नहीं छूटा. अब जबकि इस पहचान पर स्थायी होने का ठप्पा लग गया है तब इससे पीछा छुड़ाना और भी कठिन हो गया है. यह सोच कर कि बहुत बार काम अपने लिए नहीं बल्कि अपने लोगों के लिए किये जाते हैं, बस उसी सोच के साथ यहाँ काम हो रहा है. देखा जाये तो यह सही भी है क्योंकि इसके द्वारा बहुत से ऐसे काम जो हमसे संभव नहीं थे, वे यहाँ से हो जाते हैं.


लोगों की सहायता के लिए शायद समय ने हमें इस क्षेत्र में बनाये रखा है, यही सोचकर अठारहवें साल में प्रवेश कर लिया है. यह समयावधि कहाँ तक ले जाएगी, यह देखने का विषय है. 





 

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