01 दिसंबर 2022

मानसिकता बदलनी होगी दिव्यांगजनों के प्रति

03 दिसम्बर को हम सभी अंतरराष्ट्रीय विकलांग दिवस मना रहे होंगे किन्तु दिव्यांगजनों के प्रति अभी वह व्यवहार चलन में नहीं ला सके हैं, जिसकी उनको आवश्यकता है. दिव्यांगजनों के प्रति अंतरराष्ट्रीयराष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर पुनरुद्धाररोकथामप्रचार और बराबरी के मौकों पर जोर देने के लिये योजना बनाने के उद्देश्य से वर्ष 1976 में संयुक्त राष्ट्र आम सभा द्वारा विकलांगजनों के अंतरराष्ट्रीय वर्ष के रूप में वर्ष 1981 को घोषित किया गया था. विकलांगों के प्रति सामाजिक कलंक को मिटाने और उनके जीवन के तौर-तरीकों को और बेहतर बनाने के लिये उनके वास्तविक जीवन में बहुत सारी सहायता को लागू करने के द्वारा तथा उनको बढ़ावा देने के लिये साथ ही विकलांग लोगों के बारे में जागरुकता को बढ़ावा देने के लिये इसे सालाना मनाने के लिये इस दिन को खास महत्व दिया जाता है. कालांतर में सन 1992 से इस दिन को पूरी दुनिया में प्रतिवर्ष मनाया जाने लगा.  


प्रतिवर्ष मनाये जाने वाले अनेकानेक दिवसों की तरह से आम नागरिक अन्तर्राष्ट्रीय विकलांग दिवस को भी देखता है जबकि इस दिवस को बहुत ही गंभीरता से लेने की आवश्यकता है. जनमानस समाचारों में, बैनरों में, होर्डिंग्स में इसके बारे में जान-समझकर अपने आपको उसी क्षण उससे जोड़ता है और अगले ही पल उसे विस्मृत कर देता है. आज समाज को इस बारे में जागरूक करने की अत्यधिक आवश्यकता है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयासों से देश में अब विकलांग के स्थान पर दिव्यांग शब्द प्रयोग होने लगा है किन्तु उनके साथ कार्य-व्यवहार में अभी भी स्थिति बदली नहीं है. अभी भी समाज में धारणा बनी हुई है कि दिव्यांगों के लिए कार्य करने जिम्मेवारी सिर्फ सरकार की है. ऐसा इसलिए है क्योंकि दिव्यांगजनों के प्रति किसी कार्य अथवा मानसिक स्थिति के बदलने के लिए समाज में, आम नागरिकों में जागरूकता देखने को नहीं मिलती है. समाज के बहुसंख्यक लोगों को इसकी जानकारी ही नहीं कि तीन दिसम्बर को इस तरह का कोई दिवस आयोजित भी किया जाता है.




यही कारण है कि देश में दिव्यांग शब्द अब सरकारी कार्यों में, आम बोलचाल में दिखाई देने लगा है किन्तु आम जनमानस में अभी भी एक तरह की सुसुप्तावस्था देखने को मिलती है. जनमानस को लगता है जैसे कि किसी दिव्यांग के प्रति एकमात्र सहानुभूति दर्शाकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री की जा सकती है. मदद के नाम पर चंद सिक्के, दो शब्द ही दिखाई देते हैं. अभी भी समाज में दिव्यांगों के प्रति सहानुभूति का, दया का भाव बना हुआ है. शिक्षित, समर्थ, योग्य दिव्यांग व्यक्ति के लिए भी समाज इसी तरह की धारणा बनाये हुए है. किसी भी दिव्यांग व्यक्ति से मिलते ही लोगों का नजरिया बदल जाता है. उसके प्रति सहयोग से अधिक सहानुभूति का भाव उमड़ने लगता है. ऐसा माना जाने लगता है कि वह व्यक्ति बिना किसी दूसरे की सहायता के कोई काम नहीं कर सकता है. छोटे से छोटे, बड़े से बड़े कार्य के लिए सामाजिक प्राणी उसके साथ ऐसे व्यवहार करता है जैसे वह दिव्यांग सम्बंधित कार्य को करने में अक्षम है. इसी कारण से दिव्यांगजनों के प्रति विभेद देखने को मिलता है. कई बार उनको उनके अधिकारों से वंचित कर दिया जाता है.


आज समाज को उन हौसलों से परिचित करवाए जाने की आवश्यकता है जिसकी कहानियाँ अनेकानेक दिव्यांगजन लिख चुके हैं. बहुतायत में अनेक दिव्यांगजन ऐसे हैं जिन्होंने अपनी मेहनत, अपनी कर्मठता, अपनी जिजीविषा से असंभव को संभव कर दिया है. उनको महत्ता देते हुए आम नागरिकों के बीच स्थापित किया जाये. जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में समाज में सभी विकलांग लोगों को शामिल करने की दिशा में काम करने को प्रेरित करना भी इस दिन का उद्देश्य है. दिव्यांगजनों के प्रति उपेक्षा का भाव रखने की स्थिति ये है कि ज्यादातर लोग ये नहीं जानते कि उनके घर के आसपास कितने लोग दिव्यांग हैं. लोगों को इसकी भी जानकारी नहीं कि समाज में दिव्यांगजनों को बराबर का अधिकार मिल रहा है या नहीं. ऐसे में दिव्यांगजनों की वास्तविक स्थिति के बारे मेंदिव्यांगजनों के बारे में लोगों को जागरुक करने के लिये इस दिवस को मनाना बहुत आवश्यक है.


दिव्यांग दिवस के आयोजन में आम नागरिकों की सहभागिता अधिक से अधिक होनी चाहिए. इससे एक तो नागरिकों को भी ऐसे आयोजनों से जुड़ने का अनुभव होगा, दूसरे समाज के लोगों को अपने बीच के लोगों की समस्याओं के बारे माँ जानने-समझने का अवसर मिलेगा. दिव्यांगजनों की समस्या आर्थिक सशक्तिकरण की उतनी नहीं है जितनी कि सामाजिक स्वीकार्यता की है, उनके विश्वास को बनाये रखने की है, उनका हौसला बढ़ाये रखने की है. दिव्यांगजन अपनी मेहनत, अपनी जिजीविषा, अपने हौसले, अपने विश्वास से स्वयं को समाज में बनाये हुए हैं, उन्हें बस यही एहसास करवाए जाने की आवश्यकता है कि वे इसी समाज का अंग हैं, इसी समाज के नागरिक हैं, वे हाशिये पर नहीं हैं, वे दोयम दर्जे के नहीं हैं. ऐसा समझा-समझाया जाना तभी संभव है जबकि समाज का एक-एक व्यक्ति दिव्यांगों को नागरिक ही समझे. उसकी दिव्यांगता किसी कारणवश उत्पन्न हुई हो सकती है, उसकी दिव्यांगता जन्मजात हो सकती है मगर इस कारण से उसे नकारात्मकता से गुजरना पड़े, यह सुखद नहीं.


समाज सभी विभेदों को मिटाकर दिव्यांगजनों को सहानुभूति की नजर से देखना बंद करे. उनको सहयोग की आवश्यकता तो हो सकती है मगर वे किसी दया के, किसी भीख के पात्र नहीं हैं. यदि इस सत्य को समझा जा सका तो इस वर्ष की अंतरराष्ट्रीय विकलांग दिवस मनाए जाने की थीम भविष्य के लिए निर्धारित किए गये सभी सत्रह लक्ष्यों की प्राप्ति को वास्तविकता में मनाया जा सकता है.

 





 

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