22 नवंबर 2022

दिमागी सक्रियता पर कब्ज़ा करता बाजार

आज इंटरनेट पर एक साईट पर अपने फाउंटेन पेन और पुस्तकों को खोजते समय अपने आपमें एक अनोखी सी चीज बिकती दिखी. संभव हो कि बहुत से लोगों के लिए ये अनोखी सी न हो पर हमारे लिए थी. इस चीज को आप सबने भी इंटरनेट पर बिकते देखा होगा. ये चीज थी छोटी हो गई पेन्सिल को बड़ा करने का होल्डर. बाजार व्यवस्था के अधीन उपभोक्ताओं के मन को खँगालते हुए इस तरह के उत्पाद बनाये जाते हैं, उनका व्यापार किया जाता है, उनको प्रचारित किया जाता है. इस उत्पाद को देखकर आश्चर्य हुआ. आश्चर्य इसलिए हुआ कि क्या वाकई ऐसे उत्पाद को, ऐसे सामान को खरीदा जाता होगा? इससे ज्यादा आश्चर्य हुआ उसकी कीमत देखकर.




आज उपभोक्तावादी संस्कृति के चलन में आ जाने के कारण बाजार प्रत्येक वस्तु को अपने अधीन कर लेना चाहता है. इसी सोच के चलते उपयोग में लायी जाती पेन्सिल के छोटी हो जाने के बाद उसको बड़ा करने के लिए होल्डर बनाया गया. हम सभी में से जिसने भी बचपन में पेन्सिल का इस्तेमाल किया होगा या आज अपने बच्चों को पेन्सिल का उपयोग करते देखते होंगे, वे भली-भांति जानते होंगे कि उपयोग में लायी जाने वाली पेन्सिल को छीलते-छीलते एक समय ऐसा आता है जबकि पेन्सिल को पकड़ना मुश्किल होता है. छोटे आकार के कारण उससे लिखना कठिन हो जाता है और उतने हिस्से को फेंकना सामान की बर्बादी समझ आती है. ऐसे ही छोटे आकार के पेन्सिल के टुकड़ों को इस तरह के होल्डर में फँसा कर उनका आकार बड़ा कर लिया जाता है. इसके द्वारा पेन्सिल का उपयोग करना सहज हो जाता है.


इस उत्पाद को बिकते देखकर आश्चर्य के साथ बहुत हँसी भी आई. हँसी आने का कारण हमारा व्यक्तिगत रूप से पेन्सिल के ऐसे छोटे-छोटे टुकड़ों को उपयोग में लाने का अनुभव है. ड्राइंग, कैलीग्राफी, स्केचिंग आदि का शौक होने के कारण पेन्सिल का उपयोग बचपन से लेकर अभी तक करते आ रहे हैं. जाहिर सी बात है कि उसके छोटे होते हिस्सों से भी सामना होता है. ऐसे टुकड़ों को बड़ा करने के लिए बाजार में बिकते किसी होल्डर का उपयोग आज तक नहीं किया गया. बेकार हो गईं स्केच के हिस्सों को, बेकार हो गए पेन के ढांचे को अथवा कागज़ को गोलाकार रूप में बदलकर पेन्सिल के छोटे हिस्सों को उसी में फँसाकर बड़ा करते रहे.


इस उत्पाद को बिकते देखकर लगा कि आज बाजार कितनी आसानी से इंसानों की, बच्चों की सक्रियता को, उनकी दिमागी कल्पनाशीलता को छीन ले रहा है. अब बिना दिमाग लगाये कि पेन्सिल के इन छोटे हिस्सों को उपयोग में लाने के लिए कैसे बड़ा किया जाये, बच्चे भी, बड़े भी बाजार में बिकते उत्पाद को ले आते हैं. सक्रियता की इस तरह की कमी के चलते बहुत से इंसानों में नया सोचने-समझने की क्षमता का अभाव होता जा रहा है. वे सभी एक बंधी-बंधाई लीक पर ही चलते चले जा रहे हैं. अभिभावकों को, शिक्षकों को इस बारे में विचार करने की आवश्यकता है. उनको अपने बच्चों को इस तरह की क्रियाशीलता के बारे में बताना-समझाना चाहिए. यदि इसी तरह से सबकुछ बाजार के हाथों में ही नियंत्रित होता चला गया तो भावी जीवन में सोचने-समझने की क्षमता भी कुंद रूप में देखने को मिलेगी. 





 

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