01 अक्तूबर 2022

पोस्टकार्ड का जन्मदिन

संभवतः वर्तमान पीढ़ी संचार के एक माध्यम पोस्टकार्ड के बारे में जो भी जानकारी रखती होगी, वो उसे इंटरनेट से मिली होगी. इसके पीछे एक बहुत बड़ा कारण ऐसे संचार माध्यमों का लगभग बंद हो जाना है. अब मोबाइल और ई-मेल के ज़माने के बहुत कम लोग ऐसे हैं जो पोस्टकार्ड का उपयोग करते होंगे. अभी कुछ साल पहले तक इसका उपयोग परीक्षा फॉर्म प्राप्ति के लिए अवश्य उपयोग करते देखा गया है मगर इसका उपयोग समाचार भेजने या फिर कोई जानकारी भेजने के रूप में देखना नहीं हुआ है. 


आज एक अक्टूबर को पोस्टकार्ड का जन्मदिन मनाया जाता है. ये और बात है कि इस जन्मदिन के बारे में न तो मीडिया में बहुत चर्चा होती है और न ही सोशल मीडिया इस बारे में बहुत बखान करता है. इसके पीछे भी एक कारण बाजार है. आज बाजार की निगाह में पोस्टकार्ड का कोई महत्त्व नहीं, ऐसे में उसके जन्मदिन की चर्चा करना किसी के लिए उपयोगी सिद्ध नहीं. खैर, यदि पोस्टकार्ड की बात की जाये तो सबसे पहले पोस्टकार्ड का अविष्कार ऑस्ट्रिया में सन १८६९ को आज ही के दिन हुआ था. इस हिसाब से आज पोस्टकार्ड १५३ वर्ष का हो गया है. यहाँ के डॉक्टर इमानुएल हरमान ने पत्राचार के लिए एक सस्ते माध्यम की कल्पना करके पोस्टकार्ड का आविष्कार किया. पोस्टकार्ड ने अपने जन्म के साथ ही इतनी अधिक प्रसिद्धि प्राप्त कर ली कि एक महीने में ही पंद्रह लाख पोस्टकार्ड की बिक्री हो गई. उसकी लोकप्रियता देखकर बाकी देशों ने भी इसे अपनाने में देरी नहीं की. ब्रिटेन ने सन १८७२ में पोस्टकार्ड जारी कर दिया. इसके सात वर्षों बाद ही सन १८७९ में भारत ने भी पोस्टकार्ड को जारी कर दिया. 


भारत में पहले पोस्टकार्ड की कीमत तीन पैसे थी. यहाँ भी इसकी लोकप्रियता में किसी तरह की कमी नहीं आई. पहले नौ महीने में ही भारत में ७.५ लाख रुपए के पोस्टकार्ड बिक गए.  भारत में पोस्टकार्ड की डिज़ाइन और छपाई का कार्य मेसर्स थॉमस डी०ला०रयू० एण्ड कंपनी लंदन के द्वारा किया था. उस समय पोस्टकार्ड को दो मूल्यवर्गों में बाँटा गया था. इसमें एक पोस्टकार्ड वे थे जिनका मूल्य एक पैसा था. यह कार्ड अन्तरदेशीय प्रयोग के लिए उपयोग में लाया जाता था. दूसरी तरह के कार्ड में डे‌ढ़ आना मूल्य वाला कार्ड था. इसका उपयोग उन देशों के लिए था जो अंतरराष्ट्रीय डाक संघ से संबद्ध थे.


पोस्टकार्ड भले ही किसी तरह के संदेश भेजने का सबसे सस्ता माध्यम हो किन्तु भारत सरकार के लिए यह एक महंगा सौदा है. प्रत्येक पोस्टकार्ड के लिए सरकार को उसके प्रिंट मूल्य से कहीं अधिक मूल्य चुकता करना पड़ता है. इस तरह से सरकार को पोस्टकार्ड छापने में घाटा उठाना पड़ता है. इस घाटे की पूर्ति के लिए सरकार ने पोस्टकार्ड में एक तरह का विज्ञापन देना शुरू किया. २१ जुलाई १९७५ में जारी किए गए पोस्टकार्ड में सरकार ने एक तरफ अपनी ओर से संदेश छापना शुरू किया. बाद में इस तरह के पोस्टकार्ड की बिक्री मेघदूत के नाम से की गई. आज भी सामान्य पोस्टकार्ड की कीमत ५० पैसे और मेघदूत पोस्टकार्ड की कीमत २५ पैसे बनी हुई है.


आप सबके आश्चर्य की बात ये है कि हम आज भी पोस्टकार्ड का उपयोग करते हैं. हमें भले ही कोई जवाब दे या न दे मगर हम आज भी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित रचनाओं के लेखकों को, सोशल मीडिया के मित्रों को अपने अन्य परिचितों को मेघदूत पोस्टकार्ड भेजा करते हैं.   

 










 

1 टिप्पणी:

  1. वाह!! रोचक जानकारी। अंतर्देशी का प्रयोग तो मैंने भी किया है लेकिन पोस्ट कार्ड का प्रयोग नहीं किया है। ये जानकर अच्छा लगा कि आज भी आप पोस्ट कार्ड भेजते हैं।

    जवाब देंहटाएं