परिवार को एक
और आघात. जिस तरह की घटनाएँ कभी सोची भी न हों, कभी सपने में भी उस तरह की घटनाओं का आना न हो वैसी परिवार में वास्तविकता
में घटित हो जाएँ तो मन व्यथित रहता है. बस, कुछ कहने का मन नहीं. विगत एक वर्ष से लगातार किसी न किसी रूप में आघात
पहुँच रहा है, भावनात्मक रूप से कमजोर हो रहे हैं.
नमन संजू भैया.
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