आज सुबह-सुबह
ही खबर सुनाई दी कि हिन्दी लेखिका गीतांजलि श्री को अन्तर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार
(साहित्य के क्षेत्र में सबसे प्रतिष्ठित) से सम्मानित किया गया है. गीतांजलि श्री
हिन्दी की पहली लेखिका हैं जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार मिला है. यह
पुरस्कार उनके उपन्यास रेत समाधि के अंग्रेज़ी अनुवाद टोम्ब ऑफ़ सैंड के लिए दिया गया.
इसका अनुवाद प्रसिद्ध अनुवादक डेज़ी रॉकवाल ने किया है. यह पहला मौक़ा है जब कोई हिन्दी
कृति बुकर के लिए पहले लॉन्गलिस्टेड फिर शॉर्टलिस्टेड होकर बुकर से सम्मानित हुई हो.
वास्तव में यह पल हिन्दी भाषी पाठकों, लेखकों के लिए ही
नहीं अपितु सम्पूर्ण भारतीय भाषाओं के लिए गौरवशाली है. साहित्य के क्षेत्र का
सर्वाधिक प्रतिष्ठित पुरस्कार माने जाने के कारण एक सर्वमान्य धारणा यही बनी हुई
थी कि यह पुरस्कार सिर्फ विदेशी भाषाओं को ही प्रदान किया जाता है. गीतांजलि के
रूप में हिन्दी कृति को यह सम्मान मिलने से यह धारणा भी दूर हुई है. संभव है कि इस
पल से प्रभावित होकर हिन्दी के साथ-साथ अन्य भारतीय भाषाओं के लेखक, साहित्यकार उत्कृष्ट लेखन की तरफ अग्रसर हों.
इस सुखद समाचार
के साथ-साथ सोशल मीडिया पर बहुत सी ऐसी बातें भी सुनाई-दिखाई दीं, जिनको देखकर
दुःख हुआ. हिन्दी भाषा के उपन्यास के लिए मिले इस सम्मान को बहुत से लोग पचा नहीं
पा रहे हैं. ऐसे में उनके लिए बजाय गर्व करने के वे रचनाकार की, कृति की, अनुवाद की कमियाँ निकालने-बनाने में लगे हैं. यह सच हो सकता है कि बहुधा
देखने में आता है कि एक साहित्यकार दूसरे साहित्यकार की आलोचना करता है, आलोचना भी बुराई करने के स्तर तक, दोषारोपण करने की हद तक मगर आज का दिन ख़ुशी
मनाने का दिन होना चाहिए था. साहित्यकार को लेकर, कृति को लेकर, उसके अनुवाद को लेकर आलोचना, समीक्षा
होनी चाहिए और ऐसा आगे भी किया जा सकता है. आज इस एक पल के लिए सोचना चाहिए था कि
ख़ुशी गीतांजलि के लिए न मनाई जाये, ख़ुशी उनके उपन्यास
रेत समाधि के लिए न हो, उनके अनुवाद टोम्ब ऑफ सैंड के लिए भले
ही प्रसन्नता व्यक्त न की जाये, भले ही अनुवादक डेज़ी
रॉकवाल को इसका श्रेय न दिया जाये मगर कम से साहित्य के लिए, हिन्दी भाषा के लिए, भारतीय भाषाओं के लिए तो ख़ुशी प्रदर्शित की ही जा सकती थी.
खैर, जिसका जैसा स्वभाव, वो वैसा ही करेगा. गीतांजलि
श्री को बधाई के साथ-साथ सभी हिन्दी भाषी पाठकों, साहित्यकारों, समस्त भारतीय भाषाओं के पाठकों, साहित्यकारों को भी बधाई-शुभकामना.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें