24 मई 2022

राष्ट्रपति चुनाव 2022 के संभावित समीकरण

देश के प्रथम नागरिक के रूप में परिभाषित राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल जुलाई 2022 को खत्म हो रहा है. जल्द ही देश में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव प्रक्रिया शुरू होगी. चूँकि राष्ट्रपति के चुनाव में आम जनमानस की सहभागिता सीधे-सीधे नहीं होती है, इस कारण भले ही इस तरफ बहुत ज्यादा रुचि न रहती हो मगर जनता का एक बहुत बड़ा वर्ग राष्ट्रपति चुनावों पर अपनी नजर अवश्य ही लगाये रखता है. भारतीय संसद के दोनों सदनों में जिस तरह की स्थिति भाजपा और उनके सहयोगी दलों की, उसे देखते हुए यह स्थिति तो एकदम साफ़ है कि राष्ट्रपति पद के लिए जो भी निर्वाचित होगा वह भाजपा आर उसके सहयोगी दलों से ही होगा. यह स्थिति उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद और भी स्पष्ट हुई है.

 

अब जबकि राष्ट्रपति चुनाव के लिए बहुत लम्बा समय नहीं है, तब राजनीतिक विश्लेषक, राजनीति विषय में रुचि रखने वाले, देश की राजनैतिक दशा-दिशा का आकलन करने वाले आदि लोग इस बार के राष्ट्रपति चुनाव को विशेष दृष्टिकोण से देख रहे हैं. इसके पीछे का कारण यह नहीं कि भाजपा या उसके सहयोगी दलों के व्यक्ति को राष्ट्रपति बनना है, ऐसा तो वर्तमान राष्ट्रपति पद हेतु सदस्य का नाम घोषित होने के समय भी था. देखा जाये तो इस बार विशेष दृष्टि रखने के पीछे का कारण भी वर्तमान राष्ट्रपति ही हैं. वर्ष 2017 में भाजपा ने या कहें कि नरेन्द्र मोदी ने सबको चौंकाते हुए देश के शीर्ष पद हेतु रामनाथ कोविंद के नाम की घोषणा की थी. ऐसा उस समय हुआ था जबकि रामनाथ कोविंद किसी भी रूप में राष्ट्रपति पद की दौड़ में नहीं थे. उनके नाम की घोषणा होने पर सबको आश्चर्य इसलिए भी और हुआ था कि उनको वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों के लिए उनके मनचाहे लोकसभा क्षेत्र जालौन-गरौठा-भोगनीपुर से टिकट नहीं दिया गया था.

 

राजनीति की गणित पढ़ने-समझने वालों ने उस समय रामनाथ कोविंद के राजनैतिक जीवन की समाप्ति की घोषणा सी कर दी थी. इस कारण लोगों को आश्चर्य होना स्वाभाविक था. ये और बात है कि अपने सरल स्वभाव के चलते लोकसभा चुनावों के कुछ महीने बाद रामनाथ कोविंद को बिहार का राज्यपाल बनाया गया. नरेन्द्र मोदी ने वर्ष 2017 में बिहार के उन्हीं तत्कालीन राज्यपाल को चुना, जो तब एक लो-प्रोफाइल दलित नेता माने-समझे जाते थे. उन्होंने 1998-2002 के बीच भाजपा के दलित मोर्चे का नेतृत्व किया था. नरेन्द्र मोदी ने दलित नेता के रूप में उनको राष्ट्रपति पद का सदस्य बनाकर तत्कालीन राजनैतिक समीकरण को अपने पक्ष में किया था.

 



अब राष्ट्रपति पद हेतु सभी की निगाहें भाजपा की तरफ ही लगी हैं. राजनैतिक समीकरण उनके पक्ष में होने के कारण भाजपा और उनके सहयोगी दलों के सदस्य का राष्ट्रपति बनना निश्चित है. अब लोगों में यह जानने की उत्कंठा है कि इस बार किसका नाम सदस्य के रूप में सामने आएगा? क्या रामनाथ कोविंद को दोबारा राष्ट्रपति पद के लिए सदस्य बनाया जायेगा? क्या उपराष्ट्रपति पद पर आसीन वैंकया नायडू को भाजपा सदस्य घोषित कर सकती है? यदि राष्ट्रपति पद का इतिहास देखा जाये तो अभी तक देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद अकेले व्यक्ति रहे हैं जिनको दो बार कार्यकाल मिला. ऐसे में इसकी सम्भावना कम ही समझ आती है कि भाजपा वर्तमान राष्ट्रपति को ही अपना सदस्य घोषित करे. इसके साथ-साथ रामनाथ कोविंद के दोबारा सदस्य न बनने के पीछे उनकी उम्र भी एक कारक हो सकता है. रामनाथ कोविंद वर्तमान में 76 वर्ष पूर्ण कर चुके हैं. भाजपा में नरेन्द्र मोदी के अघोषित निर्देशों के बाद से 75 वर्ष से अधिक उम्र वाले व्यक्ति को पद से दूर रखा जा रहा है. ऐसे में बहुत कम सम्भावना है कि वर्तमान राष्ट्रपति को दोबारा कार्यकाल मिले.

 

राजनैतिक शतरंज की बिसात पर वैसे तो सभी के अपने-अपने आकलन हैं. उत्तर प्रदेश के वर्तमान विधानसभा चुनावों में जिस तरह से बसपा सुप्रीमो मायावती द्वारा घोषित-अघोषित एकतरफा समर्थन भाजपा प्रत्याशियों को दिया था, उसके बाद से मायावती के राष्ट्रपति पद हेतु सदस्य के रूप में नाम सामने आने की चर्चाएँ विभिन्न मंचों से सुनाई देने लगी थीं. हालाँकि इस बारे में मायावती ने मीडिया के द्वारा अपने नाम को लेकर अपनी स्थिति पूरी तरह से स्पष्ट कर दी है. बहरहाल, यह राजनीति की डगर है, यहाँ आज क्या है, कल क्या होगा कोई नहीं कह सकता है, इसके बावजूद राजनैतिक विश्लेषकों द्वारा उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू, आनंदी बेन पटेल, आरिफ मोहम्मद खान, थावरचंद गहलोत, बी.एस. येदुरप्पा, डॉ. तमिलिसाई सुंदरराजन आदि नामों पर सम्भावना जताई जा रही है. नाम भले ही राजनैतिक शतरंज पर कितने भी देखने को मिलें मगर यदि गहनता से देखा जाये तो उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू और केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को शीर्ष वरीयता में रखा जा सकता है.

 

उपराष्ट्रपति वेकैंया नायडू के नाम पर सहज सहमति भी बन सकती है. ऐसा इसलिए भी क्योंकि पिछली बार जब उपराष्ट्रपति पद हेतु उनका नाम सामने आया तो बहुत से लोगों का विचार था कि उनके राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया जाना चाहिए था. इस विचार को तब न सही, अब बल मिल सकता है, समर्थन भी मिल सकता है. उपराष्ट्रपति के रूप में उन्होंने कर्तव्यों का निर्वहन भली-भांति किया है. उनकी निष्पक्ष छवि सभी दलों के बीच मान्य है. इसके साथ-साथ उनका आंध्र प्रदेश से होना भी भाजपा को लाभान्वित कर सकता है. उनको राष्ट्रपति बनाकर भाजपा दक्षिण भारत में अपनी स्थिति को मजबूत कर सकती है. उपराष्ट्रपति नायडू वर्ष 2002 से वर्ष 2004 तक भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहने के साथ-साथ वे अटल बिहारी सरकार में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री रहे हैं. नरेन्द्र मोदी सरकार में उनके पास शहरी विकास, आवास, शहरी गरीबी उन्मूलन, सूचना प्रसारण तथा संसदीय कार्य जैसे महत्वपूर्ण विभागों का अनुभव रहा है.

 

उपराष्ट्रपति वेकैंया नायडू के नाम के साथ-साथ केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान का नाम भी संभावी फलक पर दिखाई देता है. उत्तर प्रदेश के निवासी आरिफ मोहम्मद खान शाहबानो केस के विरोध में राजीव गांधी सरकार में केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद सुर्खियों में आए थे. वर्तमान में वे तीन तलाक, सीएए जैसे बिन्दुओं पर भाजपा के लिए तारणहार बनते रहे हैं. भाजपा भी उनको प्रगतिशील विचारधारा का मानती है. वैसे तो भाजपा द्वारा अब्दुल कलाम के रूप में मुस्लिम चेहरा राष्ट्रपति पद पर पहुँचा चुकी है मगर वर्तमान सन्दर्भों में भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा पुनः एक मुस्लिम चेहरे को राष्ट्रपति बनाकर सम्पूर्ण विश्व को अपने मुस्लिम विरोधी न होने का सन्देश दिया जा सकता है.

 

उक्त दो नामों के साथ-साथ एक अन्य नाम उत्तर प्रदेश की राजपाल आनंदी बेन पटेल का भी चर्चा में है. वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बेहद करीबी मानी जाती हैं. नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद उनको ही गुजरात मुख्यमंत्री पद सौंपा गया था. यद्यपि आनंदी बेन पटेल के साथ उनकी उम्र उनके नाम की घोषणा में बाधक बन सकती है. 80 वर्षीय आनंदी बेन पटेल की उम्र को एक पल को नजरंदाज कर दिया जाये तो भाजपा द्वारा मुस्लिम और दलित के बाद अब एक महिला को राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाकर वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों से पूर्व महिलाओं को एक सकारात्मक राजनैतिक संदेश दिया जा सकता है.

 

हालाँकि ये संभावित नाम अभी सियासी फलकों पर तमाम राजनैतिक विश्लेषकों की, मीडिया से जुड़े अनेक बुद्धिजीवियों के आकलन का परिणाम है. राजनीति के पटल पर अंतिम-अंतिम क्षण तक किसी भी सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता है. इस बारे में कतई इंकार नहीं किया जा सकता है कि राष्ट्रपति पद के लिए जो नाम भी घोषित होगा उस पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और नरेन्द्र मोदी की सहमति होगी. रामनाथ कोविंद भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से अपने करीबी रिश्तों के कारण और नरेन्द्र मोदी की चौंकाने वाली कार्यशैली के चलते देश के प्रथम नागरिक के रूप में हम सबके बीच उपस्थित हैं. ऐसा ही कुछ अप्रत्याशित जुलाई 2022 में होने वाले राष्ट्रपति पद के चुनाव हेतु देखने को मिले तो कोई बड़ी बात नहीं.

 


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