04 अक्तूबर 2021

मौज, मस्ती, अपनेपन से सजी यात्रा

इधर लगभग चार साल के लम्बे अन्तराल के बाद प्रयागराज जाना हुआ. जबसे प्रयागराज जाना शुरू किया है, इतना लम्बा अन्तराल कभी नहीं आया. प्रयागराज, तबके इलाहाबाद की पहली यात्रा वर्ष 1994 में हुई थी. उस समय एक प्रतियोगी परीक्षा को देने के लिए वहाँ जाना हुआ था. पहली बार देर रात पहुँचने का भी अपना जबरदस्त अनुभव रहा था. युवावस्था के जोश में उस समय दिमाग में नहीं आया कि देर रात दो बजे किसी मोहल्ले, कॉलोनी में कोई इस इंतजार में नहीं बैठा होगा कि हम वहाँ आयें और उससे अपने मित्र के कमरे का पता पूछें. रेलवे स्टेशन उतरने के बाद प्रयागराज के शिवकुटी इलाके के लिए रिक्शे से चल दिए. उरई से उस इलाके की सामान्य सी जानकारी लेकर चले थे और उसी जानकारी को रिक्शे वाले के सामने उड़ेलते हुए उसके सामने यह दिखाने की कोशिश कर रहे थे जैसे कि हमें वहाँ के बारे में बहुत गहरी जानकारी हो. उस समय अँधेरे में तो रिक्शे वाले का चेहरा दिख नहीं रहा था मगर बाद में जब सोचते तो लगता कि वह निश्चित ही हम पर हँस रहा होगा या फिर हमें इंजीनियरिंग कॉलेज के हॉस्टल के किसी विद्यार्थी का परिचित समझ कर घबराया हुआ होगा.


बहरहाल, रिक्शे वाले से बतियाते हुए, आसपास की जानकारी लेते हुए शिवकुटी पहुँचने की जल्दी में थे. उस जल्दी में भी, उस अँधियारे में भी एक बार भी ख्याल नहीं आया कि यदि अपने मित्र का कमरा न मिला तो इतनी रात वापसी कहाँ के लिए करेंगे? रुकने के लिए ठिकाना कहाँ लिया जायेगा? रिक्शा चलते-चलते इंजीनियरिंग कॉलेज के हॉस्टल के पीछे आ गया. अभी तक के सन्नाटे भरे रास्ते के बाद अब चहल-पहल दिखाई दी. कुछ लड़कों के छोटे-छोटे से झुंड एक चाय के ढाले को अपने शोरगुल, मस्ती से गुलज़ार किये थे. उन्हीं से अपने मित्र का पता पूछा तो एक लड़के ने वहाँ का रास्ता बताया. काफी देर रिक्शे वाले सहित भटकने के बाद देर रात लगभग ढाई बजे गलियों में टहलते-धुआँबाजी करते कुछ लड़कों ने हमें हमारे मित्र के कमरे तक पहुँचाया.


उसके बाद प्रयागराज का चक्कर लगातार लगता रहा. हमारे एक अभिन्न मित्र या कहें कि किसी दूसरे नाम, रूप, आकार में हमारी ही छवि संदीप की नौकरी का आरम्भ प्रयागराज से हुआ. इफ्को की अपनी ट्रेनिंग से लेकर अभी तक प्रयागराज में ही जमा हुआ है और हमारा उसी ट्रेनिंग के समय से अभी तक लगातार उसके पास जाना होता रहता है. ट्रेनिंग के समय में बहुत-बहुत समय तक रुकना होता था उसके पास. उसके साथ उसके सहकर्मी भी रहा करते थे. सभी युवा, सभी अविवाहित, सभी मस्ताने सो बस ट्रेनिंग और उसके बाद प्रयागराज की घुमक्कड़ी. उस घुमक्कड़ी के साथ-साथ संदीप और उसके सहकर्मियों ने प्लांट भ्रमण करवा कर हमें बहुत सारे लोगों से परिचित करवा दिया.  


संदीप 


इस बार बहुत ही लम्बे अन्तराल बाद जब प्रयागराज जाना हुआ. एक शाम इफ्को के लिए निर्धारित की गई. हमारा अन्तराल भले ही बहुत लम्बा रहा हो मगर संदीप और अखिलेश ने हमारी उपस्थिति को अपने प्लांट में बनाये रखा. हमारी बातों, हमारी रचनाओं, हमारे लेखों ने हमारे नाम को उनके सहकर्मियों के बीच उपस्थित रखा. इसका एहसास उस शाम हुआ जबकि हमारा उन सभी लोगों से मिलना हुआ. एक शानदार पार्टी के बीच शेरो-शायरी की महफ़िल जमी रही, चुटकुलों की, ठहाकों की बारिश होती रही. मिलने वाले कुछ चेहरे परिचित रहे और बहुत सारे चेहरे अपरिचित थे, पहली बार मिल रहे थे मगर उस मुलाकात में आत्मीयता ऐसी जैसे कि बरसों से जानते हों. देखा जाये तो यह सही भी था. हम भले बहुत से लोगों को न जान रहे हो, पहचान रहे हों मगर संदीप और अखिलेश के कारण हमसे सभी परिचित थे.


अखिलेश


मौज-मस्ती-अपनापन आदि से सजी इस यात्रा ने लम्बे अन्तराल से उपजी बोझिलता को दूर किया. इसके साथ ही उरई के हमारे बहुत पुराने मित्र से भी मुलाकात करवा दी. यद्यपि मुलाकात अल्प समय की रही तथापि वादा किया जल्द ही दीर्घ मुलाकात की, कुछ रचनात्मकता भरी पहल के साथ. 


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