06 अक्तूबर 2021

नशा मुक्त समाज की अवधारणा

फ़िल्मी सितारों के या फिर उनकी संतानों के किसी मामले में पकड़े जाने के बाद सम्बंधित मामला राष्ट्रव्यापी बन जाता है. इधर फ़िल्मी संसार के किंग खान कहे जाने वाले शाहरुख़ के पुत्र का नशे सम्बन्धी मामले में पकडे जाने के बाद चारों तरफ इसी की चर्चा है. बहुतेरे लोग इसे भी राजनैतिक रंग देकर, सांप्रदायिक रंग देकर मुख्य मुद्दे को दरकिनार करने की कोशिश में हैं. बहरहाल, क्या होगा शाहरुख़ के बेटे आर्यन का और क्या होगा आने वाले दिनों में नशीले पदार्थों के धंधे का, ये अभी इस एक प्रकरण से कह पाना मुश्किल है मगर कहीं न कहीं नशा-मुक्त समाज की आवश्यकता समझ आती है. अब चर्चा इस पर होनी चाहिए कि किस तरह से समाज को नशे की लत से दूर किया जाये?


नशा-मुक्त समाज की संकल्पना समाज के प्रत्येक जागरूक व्यक्ति की चाह है. ऐसा होने के बाद भी, नशे के दुष्प्रभाव ज्ञात होने के बाद भी समाज में नशे के प्रति आसक्ति लगातार बढती ही जा रही है. शादी-विवाह के समारोह, किसी भी हर्ष-उमंग का अवसर होना, युवाओं की अपनी मस्ती आदि अब बिना नशे के पूरी नहीं हो पाती है. शराब के जाम छलकना, बीयर के झागों का बनना-बिगड़ना, सिगरेट के धुंए के छल्लों का हवा में उड़ना, तम्बाकू-पान की पीक की चित्रकारी अब आम बात लगती है. कहीं न कहीं समाज में और सरकार में इस नशे को स्वीकार्यता मिल चुकी है. अब इस तरह के नशे को लेकर उसके सार्वजनिक स्थलों पर, खुलेआम उपयोग पर कार्यवाही करने की खबरें आती हैं. समाज के लोग इसे समझते हैं और सरकारी तंत्र शराब की बिक्री बढ़ाने के साथ-साथ इसकी नकली बिक्री पर रोक लगाने का काम करती है. संभवतः लाइसेंस प्रक्रिया से गुजरने के कारण कहीं न कहीं शराब, सिगरेट, बीयर, तम्बाकू, गुटखा आदि को स्वीकार लिया गया है बस तनिक सामाजिकता के चलते शराब, बीयर के खुलेआम प्रयोग पर प्रशासन और आम नागरिक सक्रिय से दिखते हैं.

 


नशा-मुक्त समाज की जितनी संकल्पना अभी तक सामने आई है या फिर जितनी समझ में आई है उसके अनुसार सभी का एकमात्र विरोध उन नशीले तत्त्वों से है जो अवैध रूप से बाज़ार में चोरी-छिपे बेचे जा रहे हैं. विभिन्न ड्रग्स को लेकर समाज में एक तरह का विरोध लगातार देखने को मिलता है. देश के महानगरों से निकल-निकल कर अब ये बुराई दूर-दराज के गाँवों में भी पहुँच गई है. अनेक तरह की ड्रग्स अवैध तरीके से खरीदी-बेची जा रही है, सिगरेट-इंजेक्शन आदि के सहारे शरीर में पहुँचाई जा रही है. 


विभिन्न सरकारों की, सामाजिक संस्थाओं की, सामाजिक व्यक्तियों की समूची कवायद इसी नशे से मुक्ति की रही है किन्तु किसी का भी प्रयास एक बार भी इसके मूल को जानने की नहीं रही है. ये समझना होगा कि आखिर नशे की गिरफ्त में लोग, विशेष रूप से युवा वर्ग क्यों आ रहा है? ऐसे नशीले पदार्थ बाज़ार में आ कैसे जा रहे हैं? सुरक्षा एजेंसियां क्या महज नेताओं की सुरक्षा का जायजा लेने के लिए रह गई हैं? क्या हमारा सुरक्षा तंत्र महज बचाव कार्यों के लिए ही प्रयुक्त होने लगा है? पहली बात तो ऐसे नशीले पदार्थों की आवक पर ध्यान देने की जरूरत है, उसके स्त्रोतों को पकड़ने की जरूरत है, इनको बाज़ार में खपाने वाले तत्त्वों को खोजने की जरूरत है. यदि ऐसा होता है तो नशा-मुक्त समाज का बहुत बड़ा चरण अपने आप पूरा हो जायेगा.


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