किसी भी देश की, समाज की मजबूती
के लिए आर्थिक पक्ष का, सामरिक पक्ष का सशक्त होना जितना महत्त्वपूर्ण
है उससे कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण वहाँ के नागरिकों के मध्य आपसी सामंजस्य का बना होना
है. नागरिकों की सामंजस्यता, समन्वय से ही सफलता-उन्नति के मानक
निर्धारित होते हैं. विदेशी संबंधों में भी किसी भी देश की साख उसके नागरिकों की जीवन-शैली,
उनकी सामाजिकता, उनके आपसी व्यवहार, सद्भाव पर भी निर्भर करती है. देश के मानवीय और समन्वयपूर्ण माहौल को देखकर
ही न केवल आंतरिक सशक्त बढ़ती है वरन विदेशी निवेश, पर्यटन को
बढ़ावा मिलता है. इससे जहाँ देश की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है, वहीं देश के नागरिकों को रोजगार के अवसर मिलते हैं.
नागरिकों के आपसी समन्वय, भाईचारे
की भावना को एकसूत्र में बाँधने का कार्य उनके बीच का विश्वास करता है. इधर देखने में
आया है कि मानवीय समाज जितनी तेजी से उन्नति करता जा रहा है उसी तेजी से उनके बीच अविश्वास
का माहौल बढ़ता जा रहा है. इस अविश्वास के कारण लोगों को आपस में बातचीत करने में डर
लगने लगा है. साथ जाने का डर, साथ बैठने का डर, बाज़ार जाने में डर, ऑफिस में डर, बस में डर, घूमने में डर, घर में
डर. हर तरफ बढ़ते इस डर-भय का कारण हम सभी के बीच पनपता अविश्वास है.
भौतिकता की अंधी दौड़ में शामिल समाज रिश्तों की मर्यादा
को भुलाता जा रहा है. प्रगतिशीलता के नाम पर कुतर्कों को रखा जा रहा है. फैशन के नाम
पर अश्लीलता फैलाई जा रही है. मनोरंजन के नाम पर नग्नता को दिखाया जा रहा है. अभिभावकों
और बच्चों के बीच विश्वासपूर्ण सम्बन्ध में नकारात्मकता आई है. पति-पत्नी के आपसी विश्वास
में गिरावट आ रही है. शासन-प्रशासन, सरकार-जनता, चिकित्सक-मरीज, शिक्षक-शिक्षार्थी आदि के साथ विभिन्न
ताने-बाने को अविश्वास का शिकार होना पड़ रहा है. यही अविश्वास रिश्तों की गरिमा को
तार-तार कर रहा है. महिलाओं-बच्चियों के प्रति आपराधिक प्रवृत्ति को जन्म दे रहा है.
युवाओं में भटकाव पैदा कर उनको अपराध की दिशा में ले जा रहा है.
ऐसे अविश्वास के माहौल में जहाँ व्यक्ति कमजोर होता
है वहीं समाज और देश भी कमजोर होता है. ऐसे में आपसी विश्वास को बढ़ाने की जरूरत है
जिसके लिए किसी बिल की नहीं, किसी अध्यादेश की नहीं वरन भाईचारे
की, स्नेह की, प्रेम की, विश्वास की आवश्यकता है. आने वाली पीढ़ी को यदि सभ्य समाज देना है; भविष्य को स्वर्णिम बनाये रखना है; रिश्तों के मध्य तनावरहित
सम्बन्ध स्थापित करना है; सामाजिक मान्यताओं को बचाए रखना है,
देश को सशक्त बनाना है तो बहुत तेजी से फैलते जा रहे अविश्वास को जड़
से समाप्त करना ही होगा.
दिनांक 30 सितम्बर 2021 के दैनिक जागरण, कानपुर के संस्कारशाला कॉलम में उक्त विचार प्रकाशित किये गए.
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