आजकल ओलम्पिक की चर्चा है सभी जगह. जो लोग खेलों
में रुचि रखते हैं, वे बहुत प्रसन्न नजर आ रहे हैं. उनकी
ख़ुशी उस समय और भी देखने लायक होती है जबकि हमारी कोई टीम या फिर हमारा कोई खिलाडी
पदक जीतने के नजदीक होता है. ऐसे समय में एक-दो व्यक्ति नहीं बल्कि लगभग समूचा देश
पूरी ऊर्जा के साथ उन खिलाड़ियों के साथ, उन टीमों के साथ नजर
आता है. सेमीफाइनल, क्वार्टरफाइनल में आने पर यहाँ तक कि पदक
की आस में खेलते खिलाड़ियों के हार जाने पर भी हम लोग ऐसा हंगामा मचाते हैं जैसे
कोई बहुत बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली है. ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि हम सभी लोग
ऐसी ख़ुशी बहुत कम देख पाते हैं. हमारे सामने कभी-कभी ऐसे अवसर आते हैं जबकि हम
खेलों के मामले में ऐसी ख़ुशी दिखा सकें. हमारे सामने बहुत कम ऐसे अवसर आते हैं
जबकि हम खुद को अन्तर्राष्ट्रीय स्पर्धा में कहीं खड़ा पाते हैं.
इसी के साथ बहुत से सवाल हैं जो हम सभी के मन
में उठना चाहिए. ऐसे बहुत से सवाल हैं जो हर भारतीय के दिल-दिमाग को मजबूर करें
सोचने के लिए. इन सवालों में एक सबसे बड़ा सवाल यही है कि किसी समय यदि हमारे
खिलाड़ियों ने, हमारी टीमों ने 20-25 स्वर्ण
जीत लिए तो हम सबका हंगामा किस स्तर का होगा? कभी विचार किया
गया है कि आखिर इतने बड़े देश में पदकों के लिए हमारी उंगलियाँ अधिक हो जाती हैं और
पदक कम पड़ जाते हैं,क्यों? आखिर क्या
कारण है कि हम महज फाइनल राउंड में पहुँचने पर ही हंगामा काटना शुरू कर देते हैं? कभी आप सबने विचार किया इस पर? शायद नहीं किया होगा
क्योंकि आपने अपने घर के किसी सदस्य को खेलों के प्रति गम्भीर बनाया ही नहीं.
इन एक-दो पदकों के आने, अंतिम
चार/सोलह में जगह बना लेने/पदक की दौड़ में होकर भी बाहर हो जाने पर हमारी अपार
खुशी कुछ और ही कहती लगती है. जैसे हम लोग अपने किसी नाकारा परिजन की छोटी सी
सफलता पर भी जबरदस्त धूम मचा लेते हैं, कुछ वैसा ही यहाँ भी
लगता है. क्या ऐसा नहीं है? हमें खुद अपने खिलाड़ियों से, अपनी टीमों से किसी तरह की उम्मीद नहीं होती है. ऐसे में जब कोई एक खिलाड़ी
या फिर कोई एक टीम भी ऐसा प्रदर्शन करती है जिसके सहारे पदक की आशा बंधती है तो हम
सभी ख़ुशी से पागल हो जाते हैं. उन खिलाड़ियों को, टीमों को
अपने सिर पर बिठा लेते हैं. उनकी हार पर भी हम गर्व करते हैं क्योंकि हमारे अपने
बीच का कोई व्यक्ति वहाँ तक भी नहीं पहुँच पाया होता है.
सत्यता तो यह है कि हम सब वास्तविक ख़ुशी के लिए ऐसा
करते ही नहीं हैं क्योंकि यदि हम खेलों में सफलता के लिए वास्तविक ख़ुशी तलाश रहे
होते तो अपने किसी परिजन को खेलों में पहुँचाने की कोशिश करते. यदि आप, हम सब वाकई खेलों के क्षेत्र में ख़ुशी देखना चाहते हैं, तलाशना चाहते हैं तो मल्टीनेशनल कंपनी के पैकेज से बाहर निकलना होगा. विदेश
भागकर धन कमाने की मानसिकता से उबरना होगा. अपने किसी बच्चे को खेलों में धकेलना
होगा.
आगे की कहानी आप समझ सकते हैं.
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