आज, 31 जुलाई को विश्व पत्र दिवस का आयोजन किया जाता है. हमारे छोटे भाई शरद इसे लेकर विगत कई वर्षों से एक अभियान छेड़े हुए हैं. चूँकि हमें पत्र लेखन का बहुत पुराना शौक है. आज भी प्रतिमाह पत्र लिखना होता है, भले ही किसी का जवाब आये या न आये.
आज इस मौके पर उन दिनों की एक घटना याद आ रही है
जबकि रोज ही दसियों पत्रों का लिखा जाना होता था और दस-पंद्रह पत्र रोज ही आते थे.
इसे संयोग ही कहा जायेगा कि अपने जन्म से लेकर अभी तक उरई में हमारे सामने मात्र
दो मकानों में रहने की, दो मोहल्लों में रहने की स्थिति आई.
पहले हम पाठकपुरा में किराये से रहते थे फिर रामनगर में अपने मकान में आ गए. ये भी
संयोग कहा जायेगा कि दोनों जगह डाकिया ऐसे मिले जो आत्मीयता से जुड़े रहे, पारिवारिक रूप में जुड़े रहे. इसका सुखद परिणाम ये हुआ कि कभी कोई पत्र
गायब नहीं हुआ. (हाँ, कुछ महीनों के लिए एक खुरापाती डाकिया
अवश्य मिला वो भी पिताजी की एक फटकार के बाद किसी और जगह के लिए निकल लिया था.)
खैर, घटना उन अत्याधिक
पत्रों के आने से सम्बंधित है. एक दिन हमें पत्र मिले तो लगभग सभी पत्र खुले हुए
थे कि वे अपने आप नहीं खुले बल्कि फाड़कर खोले गए थे. और खुले भी कुछ इस तरह से थे
कि वे मात्र खोले नहीं गए थे बल्कि ऐसा समझ आ रहा था कि खोलकर पढ़े भी गए हैं.
हमारे कुछ बोलने से पहले ही डाकिया ने कहा कि ये हमें खुले मिले हैं और
पोस्टमास्टर ने दिए हैं.
हम तुरंत ही डाकघर पहुँचे और पोस्टमास्टर से
मिले. उनको जब अपना नाम बताया तो वे तुरंत ही हमारे पत्रों के खोले जाने की बात
बताने लगे. उनके अनुसार ऊपर के आदेश पर कोई कमिटी बनाई गई है जो लगातार आते तमाम
सारे पत्रों को जांचेगी. उसी कमेटी ने हमारे पत्रों को खोलकर देखा था. पोस्टमास्टर
ने बताया कि आपके रोज ही पंद्रह-बीस पत्र आते हैं, इस कारण
से ऐसा किया गया.
अब इस कमेटी वाली बात में कितनी सच्चाई थी,
ये तो वही जानें मगर उसके बाद से हमारे किसी पत्र को खोलकर नहीं
देखा गया.
+
(आपको बताते चलें कि ये बात 1995-96 की थी, तब हम सामाजिक क्षेत्र में आज की तरह सक्रिय
नहीं थे. इस कारण भी शायद लगा होगा कि किसी अनाम, अपरिचित
नामवाले के इतने सारे पत्र क्यों और किसलिए आते हैं?)
हमने भी खूब पत्र लिखे हैं
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा लिखा है आपने
जवाब देंहटाएंयह भी जाने
OTP Kya Hai
Net Banking Kya Hai
User id Kya Hai