ओलम्पिक के चलते रोज ही अनेकानेक फोटो देखने को मिल रही हैं जहाँ कि खिलाड़ी तिरंगे के साथ खड़े हुए हैं. उनको देखकर अपने आपमें ही गर्व की अनुभूति होती है. वैसे शायद ही कोई ऐसा होगा जिसे तिरंगा देखकर गर्व की, गौरव की अनुभूति न होती होगी. सभी के साथ इससे जुड़े अनेक किस्से होंगे. तिरंगे के साथ की तमाम कहानियाँ हम सभी आये दिन सुनते रहते हैं जो हमें ऊर्जा से भरती हैं.
उस दिन हम दिल्ली में मेट्रो की पहली बार सवारी
कर रहे थे. उसके पहले दो-चार बार दिल्ली से ट्रेन से गुजरने के दौरान मेट्रो के
दर्शन हुए थे मगर उसमें बैठने का सुख प्राप्त नहीं हुआ था. वर्ष 2014 में एक
इंटरनेशनल सेमिनार में सहभागिता के लिए दिल्ली जाना हुआ था. उसी समय मेट्रो में
सफ़र का आनंद भी लिया. नोयडा से अपनी छोटी बहिन के साथ, गोल्फ कोर्स मेट्रो स्टेशन से बैठे थे राजीव चौक के लिए. किसी समय कनॉट प्लेस के नाम से जाने जाना वाला
स्थान अब राजीव चौक के नाम से जाना जाता है.
राजीव चौक मेट्रो स्टेशन पर उतरने के पहले
प्लेटफ़ॉर्म से हमें छोटी बहिन द्वारा मोबाइल के द्वारा लगातार गाइड किया जा रहा
था. उसे डर लग रहा था कि कहीं हम मेट्रो स्टेशन की भीड़ में कहीं भटक न जाएँ. किस
प्लेटफ़ॉर्म से कहाँ को जाना है और फिर कहाँ से, किस तरफ के
रास्ते से बाहर जाना है, यह उसके द्वारा लगातार बताया जा रहा
था. हमने उससे फोन पर कहा भी कि गुड़िया, हम इतने छोटे नहीं कि खो जाएँ और फिर कहीं
भटकने की स्थिति में किसी से पूछ लेंगे. इसके बाद भी वो लगातार हमें मार्गदर्शन
देती रही, आखिर उसे जानकारी थी कि हम पहली बार मेट्रो की
सवारी कर रहे हैं.
बहरहाल, राजीव चौक मेट्रो
स्टेशन से बाहर निकले तो वहाँ की धूप से आँखें कम चकाचौंध हुईं, अपनी आँखों के सामने बड़ा सा तिरंगा लहराते देख ज्यादा चमक उठीं. जैसे
पहली बार मेट्रो देख कर आँखें चमकी थीं, वैसे ही पहली बार
इतना बड़ा तिरंगा लहराते देख कर बच्चों जैसी स्थिति हो रही थी. ये भूलकर कि हम किस
काम से राजीव चौक पर आये हैं, मोबाइल निकालकर तिरंगे के
लहराने को कैद करने लगे. वीडियो बनाते समय, फोटो खींचते समय
ध्यान दिया कि पहले वहाँ कोई भी ऐसा नहीं कर रहा था, शायद
संकोच रहा होगा मगर अब कई लोग ऐसा करने में लगे थे. कुछ लोगों की फोटो भी फिर हमने
खींची.
उस बड़े से तिरंगे के लहराने को अपने दिल में
बसा कर हम अपने गंतव्य की तरफ चल दिए जहाँ हमारे मित्र हमारा इंतजार कर रहे थे.
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