28 दिसंबर 2020

हमारा दिल तो बच्चा है जी

दिल वाकई बच्चा ही होता है. यह किसी फिल्म का डायलाग मात्र नहीं कि दिल तो बच्चा है बल्कि इसे बहुत से लोगों ने अपने जीवन में इस फ़िल्मी डायलाग के पहले भी महसूस किया होगा, इस पंक्ति को कई बार बोला भी होगा. ये भी नहीं कह सकते कि ऐसा सबके साथ होता होगा क्योंकि बहुतेरे लोगों ने अंधी दौड़ में भागते हुए अपने दिल को ही नहीं मारा है बल्कि उसके बचपने को भी मार डाला है. यह आश्चर्य लगेगा आपको मगर यह सत्य है. असल में व्यक्ति की उम्र कितनी भी क्यों न हो जाए, उसके पास अनुभव कितना ही क्यों न हो जाए, वह किसी भी पद पर क्यों न पहुँच जाए मगर उसके अन्दर का बच्चा, उसके दिल का बचपना कभी बड़ा नहीं होता. गौर करिए, मौका मिलते ही, कोई ऐसा अवसर आने पर जबकि बच्चों के साथ घुलने-मिलने का समय हो तो कोई भी व्यक्ति अपना पद, प्रस्थिति, प्रतिष्ठा भुलाकर बच्चों के साथ आनंदित होने लगता है, उनके साथ खेलने लगता है.


दिल का यह बचपना, दिल का इस तरह बच्चा होना बहुत से लोग जीवित बनाये रखते हुए अपनी उम्र के साथ-साथ उसे साथ लिए रहते हैं. इसके उलट बहुत से लोग जीवन के एक मोड़ पर उस बच्चे को कहीं पीछे छोड़ देते हैं, उसकी हत्या कर देते हैं. आज बात दूसरों की नहीं बल्कि खुद अपनी. ज़िन्दगी का एक बहुत बड़ा हिस्सा गुजारने के बाद, उम्र का एक बहुत बड़ा भाग निकालने के बाद, सामाजिक जीवन से बहुत सुखद-दुखद अनुभव हासिल करने के बाद भी हम अपने दिल को अकेला नहीं छोड़ सके हैं. दिल आज भी बचपना करता है. आज भी हमारा मन करता है तो सड़क पर चीखते-चिल्लाते हैं, जैसे कि कभी कॉलेज, स्कूल के समय में करते थे. आज भी मन करता है तो किसी भी कार्यक्रम के पसंद न आने पर हूटिंग करते हैं, मुँह में उँगली डालकर सीटी मारते हैं. दिल की ऐसी हरकतों के साथ-साथ आज भी वे हरकतें भी हमारा दिल कर जाता है जो टीनएजर्स की हरकतें कही जाती हैं.




जी हाँ, हमारा दिल आज भी इश्क, मुहब्बत फरमाने से बाज़ नहीं आता है. फ्लर्ट करने जैसी स्थिति भले ही हम न बनने देते हैं मगर आज भी आये दिन पहली नजर का प्रेम हम कर बैठते हैं. इसके अलावा भी हमारा दिल मुहब्बत कर बैठता है. इस मुहब्बत का इजहार, इकरार करना या न करना उसकी नितांत व्यक्तिगत स्थिति है. हो सकता है कि इस पोस्ट को पढ़ने के साथ ही बहुत से लोगों को आपत्ति होने लगेगी. आपत्ति इसलिए क्योंकि जब कोई व्यक्ति सामाजिक रूप से अपना दायरा बना ले तो उससे अपेक्षा की जाती है कि वो गधे की तरह सिर झुकाए खड़ा रहे, अपने को बौद्धिक बनाये रहे. कोई क्या कहता है, इससे हमें फर्क नहीं पड़ता है, हम आज भी वही करते हैं जो हमें अच्छा लगता है, हमारे दिल को पसंद आता है.


इसे पता नहीं हमारी स्वीकारोक्ति समझी जाए या फिर कुछ और मगर सच यही है कि यदि आप किसी को निस्वार्थ भाव से पसंद करते हैं, उसके प्रति गलत ख्याल नहीं रखते हैं तो किसी को प्रेम करना, उसे पसंद करना किसी भी रूप में गलत नहीं, ऐसा हमारा मानना है. कोई न कोई आये दिन अपनी किसी न किसी व्यक्तिगत चारित्रिक विशेषता के कारण, अपने गुणों के कारण, अपने कार्यों के कारण पसंद आता रहता है तो इसमें हमें कुछ भी बुरा नहीं समझ आता है. इन दिनों कुछ ऐसा हो भी रहा है. किसी के प्रति एक आकर्षण सा महसूस हो रहा है. ऐसा एहसास खुद में हो रहा है कि उसका साथ ख़ुशी भी देता है, दिल को संतुष्टि देता है. यह एक सामान्य सी स्थिति है और इसको लेकर किसी भी तरह की असामान्यता, असहजता नहीं है. यदि कहा जाता है कि दिल तो बच्चा है तो ये भी कहा जाता है कि ज़िन्दगी चार दिन की है. बस इन चार दिनों को याद रखते हुए उन्हें खुशनुमा तरीके से गुजारने की कोशिश करनी चाहिए.


ज़िन्दगी एक सफ़र की तरह है. जैसे सफ़र में दसियों लोग लोग मिलते, पसंद आते हैं इसके साथ-साथ वे बिछड़ते भी हैं, दूर भी होते हैं मगर ऐसी स्थिति के कारण हम उनके प्रति या खुद अपने प्रति किसी भी तरह का पूर्वाग्रह नहीं रखते हैं. कुछ ऐसा ही हमारे साथ है, दिल के मामले में. कोई पसंद आता है, किसी से प्यार होता है, कोई पसंद आ रहा है, किसी से प्यार हो रहा है तो महज इसलिए कि हमारा दिल तो आज भी बच्चा है जी.


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वंदेमातरम्

2 टिप्‍पणियां:

  1. हा हा हा दिल तो बच्चा है और उसको बच्चा रहने देना चाहिए, teen ager बने तो खतरे की घण्टी सुन लेनी चाहिए. बच्चा यानी निर्मल-मना. निर्मलमना प्यार में किसी प्रकार का छल,कपट, दुर्भाव नही होता. तो फिर .... बच्चे को संभालिये.... जीवन के अंतिम पड़ाव तक उसे दुलराइये और उसके साथ जीयें.
    वैसे बड़ी सहजता से जो आपने स्वीकारा, आम तौर पर आम लोग इसे नही स्वीकारते. 😊

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  2. दिल तो हमेशा बच्चा ही रहता है, लेकिन कम्बख़्त दुनिया और दुनियादारी ज़बरदस्ती बुजुर्ग बनाती है। जो भी आपने लिखा सबके साथ होता है, बशर्ते दिल संवेदनशील हो। कोई कह देता कोई छुपा जाता। दिल बच्चा रहे, यही कामना है।

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