महाराष्ट्र के एक शिक्षक की शिकायत पर उत्तर प्रदेश सरकार ने निर्णय लिया है कि प्रदेश में उन सभी वाहनों को बिना किसी नोटिस के जब्त कर लिया जायेगा जिन पर जाति सूचक शब्द लिखा होगा. इस बारे में एक आदेश भी तत्काल प्रभाव से जारी कर दिया गया है. यह सही है कि देश भर में लगभग सभी राज्यों में निजी वाहनों पर मालिकों द्वारा जातिगत शब्द लिखे होते हैं. सरकार की तरफ से जो पत्र जारी किया गया है, उसके अनुसार ऐसा करने से जातिगत विभेद बढ़ने की आशंका है. जातिगत अपराध होने की आशंका है.
यह कितना हास्यास्पद है, यह आसानी से समझा जा सकता है. समझने वाली बात है कि जिस देश/प्रदेश में जाति प्रमाण-पत्र सरकारी स्तर पर बनाया जाता हो, जहाँ जाति के आधार पर शिक्षा, छात्रवृत्ति, नौकरी, पदोन्नति, निर्वाचन आदि होते हों वहाँ वाहनों पर जाति लिखने से ही जातिगत खाई बढ़ेगी, जातिगत विभेद बढेगा, ऐसा मानना निरी बेवकूफी ही है. ऐसा करने के पीछे क्या आधार है समझ से परे है मगर इसके आधार पर भविष्य के कुछ संभावी खतरे नजर आ रहे हैं. क्या कल को कोई अपने मकान में अपने नाम की, जाति की प्लेट भी नहीं लगा सकेगा? यदि जाति एक खतरे का सूचक है तो सरकारें क्या कल को लोगों के नाम से उसकी जाति हटाने के लिए आदेश जारी करेंगी?
प्रथम
दृष्टया यह आनन-फानन में लिया गया एक फैसला समझ आता है. इसके दूरगामी परिणाम क्या
होंगे, इसके पीछे की वास्तविक सोच क्या होगी, अभी कहना मुश्किल है. फिलहाल तो अभी
यह स्पष्ट नहीं है कि पूरे वाहन में कहीं भी जातिगत शब्द लिखा होने पर वाहन जब्त
होगा अथवा वाहन की नंबर प्लेट पर ऐसा लिखा होने पर?
(फिलहाल तो आप सभी लोग सम्बंधित आदेश के संदर्भित बिन्दुओं पर गौर करें.)
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