बाजार में रोज की तरह सैर-सपाटा करने के दौरान आज एक परिचित से मुलाकात हुई. इधर-उधर की बातों, हालचाल के बाद उनके सामने एक सवाल उछाल दिया. वैसे जो सवाल हमने उनकी तरफ उछाला वो सवाल वैसे प्रतिवर्ष उनकी तरफ से उछाला जाता था. जी हाँ, यह सच है. चूँकि बाजार में उनसे लगभग रोज ही मुलाकात हो जाया करती है. इसी में दिसम्बर माह के अंतिम दिनों में उनकी तरफ से एक सवाल हर बार सामने आता है कि नए साल के लिए क्या संकल्प लिया है? नए वर्ष में क्या नया करने का विचार है? आज बहुत देर तक बातचीत करने के बाद भी उनकी तरफ से ऐसा कोई सवाल नहीं आया तो जरा आश्चर्य हुआ. आश्चर्य इस कारण हुआ कि दिसम्बर समाप्ति में अब चार-पाँच दिन शेष रह गए हैं फिर भी उनकी तरफ से शून्यता क्यों?
उनकी तरफ से किसी तरह की पहल न होते देख हमने ही इस बार उनकी जिम्मेवारी का निर्वहन करने का मन बनाया. उनकी तरफ सवाल उछाला कि आने वाले साल के लिए क्या संकल्प कर रहे हो? जवाब में बहुत बुरा सा मुँह बनाते हुए, लगभग नजरंदाज करने जैसा अंदाज दिखाते हुए बोले कुछ नहीं. अब संकल्प-बंकल्प लेना बंद. हमारा प्रश्नवाचक स्वरूप देख कर वे आगे बोले कि इस साल भी कुछ सोचा था, कुछ संकल्प लिए थे मगर इस साल की तो पूरी तरह से रगड़ लग गई. सारे के सारे संकल्प धराशाही हो गए. इसलिए अब आगे से कोई संकल्प नहीं. समय का कोई भरोसा नहीं कि कब क्या हो जाये. हमें समझ आ गया कि कोरोना के चलते वे इस वर्ष को कोसने में लगे हैं और उसी के चलते आने वाले वर्षों के लिए किसी तरह के संकल्प की नीति पर नहीं चल रहे.
हमने हँसते हुए उनको दिलासा दिलाई कि एक साल ऐसा निकल गया, इसका ये मतलब तो नहीं है कि आने वाले सभी वर्ष ऐसे ही निकलेंगे. हो सकता है कि आने वाला साल या फिर उसके बाद के आने वाले साल बहुत बेहतरीन निकलें. संभव है कि जो-जो सोचा जाये, जो भी संकल्प लिया जाये वो सब आने वाले वर्षों में पूरे हो जाएँ. उनके चेहरे पर संतुष्टि के भाव न दिखने पर उनके सामने फिर सवाल उछाला कि अच्छा चलो, यह साल ख़राब निकल गया. पिछले सालों में तुमने अपने कितने संकल्प पूरे कर लिए? पिछले वर्षों में तुम्हारे सोचे हुए कितने काम पूरे हुए? वे साल तो इस साल जैसे बुरे नहीं थे. उनमें तो इस वर्ष जैसी कोई बीमारी नहीं फैली थी. उनकी तरफ से कोई जवाब न आता देख समझाया कि समय के हाथों में बहुत कुछ है जो हमारे हाथ में नहीं मगर हमारे हाथ में इसके बाद भी इतना कुछ है जो समय को बदल सकता है. संकल्प लेना न लेना तुम्हारा अपना निजी मसला हो सकता है मगर किसी एक वर्ष के बुरे निकल जाने के कारण से आने वाले समूचे समय को बुरा समझने लगना नितांत नकारात्मक सोच है. इस नकारात्मकता से बाहर निकलने की जरूरत है.
उनके चेहरे की मुस्कराहट से लगा कि बात सही जगह पहुँच सकी है. ये हम सभी को ध्यान रखने की आवश्यकता है कि जो समय निकल गया जरूरी नहीं कि आने वाला समय भी वैसा ही निकले. निश्चित ही यह साल बहुत ही ख़राब रहा मगर इसके बाद भी इसमें बहुत कुछ अच्छी खबरें सुनने को मिलीं. देखा जाये तो प्रत्येक वर्ष अच्छे और बुरे का संयोग लेकर आता है. हम अपने ऊपर घटित होने वाली घटनाओं के अनुसार उस वर्ष का आकलन करने लगते हैं. वास्तविक रूप में तो हमें समय का स्वागत करना चाहिए और कोशिश करनी चाहिए कि हम सभी अपने कदमों से, अपने कार्यों से, अपने प्रयासों से उस समय को सुखद, खुशनुमा, बेहतर बना सकें.
नए युग का करें स्वागत, करें स्वागत, करें स्वागत; हर पल एक नया युग। सकारात्मक रहें।
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