महामना
मदन मोहन मालवीय जी का जन्म प्रयाग में 25 दिसम्बर 1861 को हुआ था. आपके पिता का नाम पं० ब्रजनाथ तथा माता का नाम मूनादेवी था. मध्य
भारत के मालवा प्रान्त से आने के कारण उनके पूर्वज मालवीय कहलाये. इसी को कालांतर
में उनके द्वारा जातिसूचक नाम के रूप में अपना लिया गया. उनके पिता संस्कृत भाषा के
प्रकाण्ड विद्वान थे और वे श्रीमद्भागवत की कथा सुनाकर अपनी आजीविका अर्जित करते थे.
मालवीय जी ने अपनी पढ़ाई के दौरान ही मकरंद उपनाम से कवितायें लिखनी प्रारम्भ कर दी
थीं. सन 1879 में उन्होंने म्योर सेण्ट्रल कॉलेज, जिसे आजकल इलाहाबाद
विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है, से दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण
की. उनकी प्रतिभा देखकर हैरिसन स्कूल के प्रधानाचार्य ने उन्हें छात्रवृत्ति देकर कलकत्ता
विश्वविद्यालय भेजा, जहाँ से उन्होंने 1884 ई० में बी०ए० की उपाधि
प्राप्त की. इस दौरान वे अखाड़े में व्यायाम और सितार पर शास्त्रीय संगीत का
अभ्यास भी करते रहे.
कालाकाँकर
के देशभक्त राजा रामपाल सिंह के अनुरोध पर मालवीयजी ने उनके हिन्दी अंग्रेजी समाचार
पत्र हिन्दुस्तान का 1887 में सम्पादन कार्य किया. सन 1907 ई० में साप्ताहिक अभ्युदय को निकालकर कुछ समय तक उसे भी सम्पादित किया. सन
1909 में दैनिक लीडर समाचार-पत्र निकालकर लोकमत निर्माण का महान
कार्य सम्पन्न किया तथा दूसरे वर्ष मर्यादा पत्रिका भी प्रकाशित की. इसके बाद उन्होंने
सन 1924 ई० में दिल्ली आकर हिन्दुस्तान टाइम्स को सुव्यवस्थित
किया तथा सनातन धर्म को गति प्रदान करने हेतु लाहौर से विश्वबन्धु जैसे अग्रणी पत्र
को प्रकाशित करवाया. हिन्दी के उत्थान में मालवीय जी ने ऐतिहासिक कार्य किया. हिन्दी
साहित्य सम्मेलन के प्रथम अधिवेशन (काशी-1910) के अध्यक्षीय अभिभाषण
में हिन्दी के स्वरूप निरूपण में उन्होंने कहा कि उसे फारसी अरबी के बड़े बड़े शब्दों
से लादना जैसे बुरा है, वैसे ही अकारण संस्कृत शब्दों से गूँथना
भी अच्छा नहीं और भविष्यवाणी की कि एक दिन यही भाषा राष्ट्रभाषा होगी.
प्रयाग के भारती भवन पुस्तकालय, मैकडोनेल यूनिवर्सिटी हिन्दू छात्रालय और मिण्टो पार्क के जन्मदाता मालवीयजी को कई संस्थाओं को स्थापित और प्रोत्साहित करने का श्रेय प्राप्त हुआ. इनमें उनका अक्षय-र्कीति-स्तम्भ काशी हिन्दू विश्वविद्यालय है जिसमें उनकी विशाल बुद्धि, संकल्प, देशप्रेम, क्रियाशक्ति तथा तप और त्याग साक्षात् मूर्तिमान हैं. इसके विशाल, भव्य भवनों एवं विश्वनाथ मन्दिर में भारतीय स्थापत्य कला के अलंकरण मालवीय जी के आदर्श के ही प्रतिफल हैं. अंग्रेजी शासन के दौर में देश में एक स्वदेशी विश्वविद्यालय का निर्माण मदन मोहन मालवीय की बड़ी उपलब्धि थी. मालवीय ने विश्वविद्यालय निर्माण में चंदे के लिए पेशावर से लेकर कन्याकुमारी तक की यात्रा की थी. उन्होंने 1 करोड़ 64 लाख की रकम जमा कर ली थी. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय बनाने के लिए मदन मोहन मालवीय को 1360 एकड़ जमीन दान में मिली थी. इसमें 11 गांव, 70 हजार पेड़, 100 पक्के कुएं, 20 कच्चे कुएं, 40 पक्के मकान, 860 कच्चे मकान, एक मंदिर और एक धर्मशाला शामिल था.
बताया जाता है कि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की पहली कल्पना दरभंगा नरेश कामेश्वर सिंह ने की थी. 1896 में एनी बेसेंट ने सेंट्रल हिन्दू स्कूल खोला. बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी का सपना महामना के साथ इन दोनों लोगों का भी था. 1905 में कुंभ मेले के दौरान विश्वविद्यालय का प्रस्ताव लोगों के सामने लाया गया. उस समय निर्माण के लिए एक करोड़ रुपए जमा करने थे. 1915 में पूरा पैसा जमा कर लिया गया. पांच लाख गायत्री मंत्रों के जाप के साथ भूमि पूजन हुआ. इसके साथ ही यूनिवर्सिटी निर्माण का काम प्रारंभ हुआ. मदन मोहन मालवीय का सपना था कि बनारस की तरह शिमला में एक यूनिवर्सिटी खोली जाए. हालांकि उनका ये सपना पूरा नहीं हो सका. साल 2014 में उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया.
आज उनके जन्मदिवस पर उनको सादर नमन.
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