20 दिसंबर 2020

स्वर्णिम दिन तो आज भी हैं, बस मानसिकता स्वर्णिम नहीं रह गई

वे दिन जिन्हें हम आज स्वर्णिम दिन कहते हैं, बहुत जल्दी उड़ जाते हैं. उन स्वर्णिम दिनों में जहाँ उन दिनों की मौज-मस्ती का आनंद उठाने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती थी वहीं उन्हीं दिनों में अपने भविष्य को स्वर्णिम बनाने के लिए भी लगातार प्रयास करने पड़ते थे. ऐसा समय संभवतः पूरी ज़िन्दगी में किसी के साथ न गुजरता होगा जबकि कोई समय स्वर्णिम भी है और उसका भरपूर आनंद भी न ले पाया जाये. समझ ही नहीं आता है कि आखिर ऐसे समय को स्वर्णिम किस आधार पर लोग कह देते हैं जबकि उसका आनंद लिए बिना उसे गुजार दिया जाये? आज किसी से बात की जाये तो एक सामान्य सा, आम वाक्य यह अवश्य ही सुनने को मिलता है कि उन दिनों की बात ही निराली थी. कोई चिंता नहीं, कोई फिकर नहीं सबकुछ मजेदार, मौज-मस्ती में गुजरता था. वाकई वह दिन स्वर्णिम दिन थे.


उन दिनों को किस लिहाज से स्वर्णिम कहा जाता था? क्या इसलिए कि उस समय आज के जैसी भागदौड़ नहीं थी? क्या इसलिए वे दिन स्वर्णिम थे क्योंकि उन दिनों लोगों के पास आपसी व्यवहार के लिए समय था? क्या वे दिन इस कारण स्वर्णिम थे क्योंकि उन दिनों में बच्चों के सामने कैरियर को लेकर अंधी दौड़ नहीं थी? क्या वो दौर इसलिए स्वर्णिम माना जाता है क्योंकि उन दिनों में बच्चों की मानसिक, शारीरिक स्थिति पर किसी तरह का दवाब नहीं था? यदि ये सब स्थितियाँ किसी समय को स्वर्णिम बनाती हैं तो आज के समय को भी स्वर्णिम बनाया जा सकता है. आज भी वे सारी स्थितियाँ उत्पन्न की जा सकती हैं जो उस समय थीं. आज भी वैसा माहौल बनाया जा सकता है जैसा कि उन दिनों में होता था.  


आज के समय को देखते हैं तो आज के बच्चों के पास स्वर्णिम समय जैसा कुछ बचा ही नहीं है. जो भी समय उनके पास आता है वह सिर्फ और सिर्फ कैरियर के बारे में विचार करने में निकल जाता है. आज का बच्चा सिर्फ और सिर्फ तनाव में रहता है. चौबीस घंटे उसके ऊपर एक तरह का तनाव हावी रहता है. कभी परिवार का दवाब, कभी कॉलेज का दवाब, कभी कोचिंग का दवाब, कभी अच्छे अंक लाने का दवाब, कभी सबसे आगे दिखने का दवाब. इन सबके बीच आखिर कोई बच्चा कैसे स्वर्णिम समय की कल्पना कर सकता है? समझना चाहिए कि समय सदैव एक जैसा रहता है, उसे गुजारने का ढंग ही उसकी स्थिति का निर्धारण करता है. यह व्यक्ति की मानसिकता पर निर्भर करता है कि वह किसी समय को किस तरह से बनाना चाहता है, किस तरह से उसको बिताना चाहता है. आज भी एक-एक पल को स्वर्णिम बनाया जा सकता है, बस खुद को समझने की आवश्यकता है, अपनी मानसिकता को समझने की आवश्यकता है.


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वंदेमातरम्

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