कभी हसरत थी आसमां को छूने की, अब तमन्ना है आसमां के पार जाने की.
गुरूर रहा जिन्हें ज़िन्दगी भर,
निर्भर न रहने का किसी पर कभी.
निकले जब अंतिम यात्रा को तो,
उनको जरूरत चार कांधों की पड़ी.
++ आज इतना ही, कल इस पर लिखा जायेगा कुछ, बहुत कुछ.
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