19 दिसंबर 2020

छोटे-छोटे सपनों के साथ बढ़ें सफलता की राह

कहते हैं कि सपने बड़े देखना चाहिए, बड़े सपने लगातार आगे बढ़ने को प्रेरित करते हैं. ऐसा कहने वालों का हो सकता है कि अपना अनुभव रहा हो इस तरह का. उनके द्वारा कोई बड़ा सपना देखा गया हो और वे उसी के लिए लगातार कार्य करते रहे हों, संघर्षशील रहे हों और अंततः अपने सपने को सच करने में सफल रहे हों. इसके उलट हमारा अपना व्यक्तिगत अनुभव है कि सपने बड़े उन स्थितियों में देखना चाहिए जबकि उनको सच करने के लिए संघर्ष करने की क्षमता असीमित हो. बड़े सपनों को देखने के बारे में उसी समय सोचना चाहिए जबकि अपने उस सपने को सच करने के अलावा किसी और तरह के कदमों को न बढ़ाना हो. यदि ऐसी स्थिति नहीं है तो छोटे-छोटे सपने देखने चाहिए और उनको लगातार सच करते हुए क्रमिक रूप से बड़े सपने की तरफ बढ़ते रहना चाहिए.


इस सन्दर्भ में अपने अनुभव के द्वारा इसलिए भी कह सकते हैं क्योंकि बहुत लम्बे समय से सामाजिक जीवन में सक्रियता बनी हुई है. लगातार व्यावहारिक कार्य करने के साथ-साथ युवा वर्ग को इसके लिए प्रोत्साहित भी करते रहे हैं. अनेकानेक अवसरों पर राष्ट्रीय सेवा योजना के, राष्ट्रीय कैडेट कोर के बच्चों के साथ संवाद करने का मौका मिला. इसके अलावा बहुत सी स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में भी लोगों को सामाजिक कार्यों के प्रति, कैरियर के प्रति जागरूक करने का अवसर मिला. इन सबके अपने अनुभवों से यह सीखने को मिला कि किसी भी सपने को, अपने किसी भी लक्ष्य को पूरा करने के लिए लगता मेहनत की जाती है, लगातार प्रयास किया जाता है और इसके बाद भी यदि असफलता मिलती है तो बहुत ज्यादा निराशा होती है. लगातार मिलती असफलता, निराशा व्यक्ति में हताशा भी पैदा कर देती है.




जिन लोगों ने बड़े सपने, बड़े लक्ष्य निर्धारित करने के बारे में कहा होगा उनका भी अपना अनुभव रहा होगा. यहाँ उनके द्वारा कही गई बात को अथवा उनके अनुभव को गलत साबित करना हमारा इरादा नहीं है. आज जिस तरह से प्रतिस्पर्द्धा का माहौल है, आज जिस तरह से आपस में गलाकाट प्रतियोगिता हो रही है, इस समय जिस तरह से एक-दूसरे की टांग खींचते हुए खुद आगे निकल जाने की स्थिति दिखाई दे रही है उसमें सफलता की राह में एक-एक कदम बढ़ाना मुश्किल साबित हो रहा है. इसके साथ-साथ संसाधनों का लाभ लगभग सभी को मिल रहा है. इसमें उन्नीस-बीस का आँकड़ा भले हो मगर आज सभी किसी न किसी रूप में संसाधनों का लाभ ले उठा रहे हैं. ऐसे में योग्यता, तकनीक, ज्ञान, जानकारी किसी एक वर्ग अथवा एक व्यक्ति तक सीमित नहीं रह गई है. इससे भी आपसी प्रतिस्पर्द्धा में, प्रतियोगिता में बहुत ज्यादा संघर्ष बढ़ गया है. ऐसी स्थिति के चलते भी सफलता की तरफ बढ़ते कदमों में कदम-कदम पर अवरोध दिखाई देते हैं.


ऐसी स्थिति में आज की पीढ़ी बहुत जल्दी हताशा, निराशा, अवसाद में चली जाती है. एक-दो प्रयासों के बाद सफलता का मिल पाना उनके लिए जैसे जीवन की सभी राहों को बंद होने जैसा हो जाता है. ऐसा समझ में आते ही उनके द्वारा गलत कदम भी उठा लिए जाते हैं. आज की स्थिति को देखते हुए भी, आज के बहुसंख्यक युवाओं की कमजोर इच्छा-शक्ति को देखते हुए भी हमारा विचार यही रहता है कि सपने छोटे-छोटे देखे जाएँ, लक्ष्य छोटे-छोटे निर्धारित किये जाएँ. ये सपने सच भी हो सकते हैं, लक्ष्य की प्राप्ति भी हो सकती है, इससे हौसला भी बढ़ेगा और नए सपने, नए लक्ष्य की तरफ बढ़ने का प्रोत्साहन भी मिलेगा.



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वंदेमातरम्

1 टिप्पणी:

  1. बिलकुल सही कहा आपने। बड़े सपने देखना अच्छी बात है, पर पूर्ण न होने पर हताशा बढ़ जाती है और ग़लत क़दम लोग उठा लेते हैं। मुझे लगता है कि बच्चों को बचपन से असफल होने पर निराश न होना भी सिखाना ज़रूरी है। छोटे-छोटे सपने हों, और कुछ भी पूरे हों तो आनंदित होना चाहिए।

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