17 दिसंबर 2020

प्यार को प्रेम-स्नेह-विश्वास से देखने की आवश्यकता

 किसी से प्रेम हो जाना, किसी के प्रति आकर्षण होना, किसी का पसंद आने लगना, कोई दिल को अच्छा लगने लगता है आदि-आदि बातें लगभग सभी के साथ होती हैं. ये और बात होती है कि बहुतायत लोग अपनी पसंद, अपने आकर्षण को प्रदर्शित नहीं करते हैं, यहाँ तक कि जिसे पसंद करते हैं, जिसके प्रति आकर्षण का भाव रखते हैं उससे भी नहीं कह पाते हैं. ऐसा होने से बचने का भाव रखने वाले अथवा किसी के प्रति आकर्षण, पसंद का भाव न रखने वाले संभवतः संवेदनात्मक रूप से कठोर होते हैं. यहाँ आगे बढ़ने के पहले यह स्पष्ट कर दें कि इस आकर्षण, पसंद, दिल को अच्छा आदि लगने के पीछे विपरीतलिंगियों वाली मानसिकता का पोषण नहीं है बल्कि ऐसा सभी सन्दर्भों में है.


किसी व्यक्ति का पसंद आना उसके शारीरिक  सौन्दर्य के लिए भी हो सकता है, उसकी किसी विशेषता के सन्दर्भ में हो सकता है. किसी का बोलना उसके प्रति आकर्षण का कारण बनता है. किसी का लिखना उसके प्रति आकर्षण का कारण हो जाता है. किसी की कोई कलात्मक अभिव्यक्ति उसके प्रति प्रेम जगाती है. इन सबमें किसी भी रूप में स्त्री अथवा पुरुष रूप पहली बार में नहीं होता है. दरअसल इस तरह का जेंडर आधारित विभेद व्यक्ति उस समय करने लगता है जबकि स्वयं किसी न किसी तरह की ग्रंथि से ग्रसित होता है. समाज में एक आम धारणा है कि प्रेम का आधार सिर्फ स्त्री, पुरुष के बीच ही माना जाता है.




हमारा व्यक्तिगत स्तर पर अपना मानना यह रहा है कि कोई व्यक्ति यदि संवेदना से भरा हुआ है, यदि किसी व्यक्ति के दिल में सबके प्रति कोमल भावनाओं का समावेश है, यदि कोई व्यक्ति किसी को दुखी नहीं कर सकता है, यदि कोई व्यक्ति सबके साथ सहयोग की भावना रखता है, यदि किसी व्यक्ति में पावनता का गुण है तो वह सभी के साथ प्रेम की अभिव्यक्ति ही करता है. प्रेम की अभिव्यक्ति में, आकर्षण में किसी तरह की बुराई तब तक नहीं है जब तक कि उसमें आसक्ति न आये, जब तक कि उसमें दुर्विचार न आये. ऐसा होने की स्थिति में फिर वहाँ पावनता का लोप हो जाता है इसके चलते कोई भी व्यक्ति सही, गलत का भाव खो देता है.


समाज के बीच जिस तरह से प्रेम की पावनता पर चर्चा को गायब किया जा रहा है वह विचारणीय है. आज जिस तरह से एक-दूसरे के प्रति अच्छे लगने वाले भाव को कुत्सित रूप में देखा जाने लगा है वह आपराधिक प्रवृत्ति को बढ़ावा दे रहा है. आज जिस तरह से व्यक्ति व्यक्ति के बीच में सद्भाव, विश्वास, स्नेह को स्वार्थपूर्ति का साधन माना जाने लगा है उससे लोगों में समन्वय की कमी आई है. इन सब स्थितियों के दुष्परिणाम देखने को लगातार मिल रहे हैं. यही कारण है कि सदियों से प्रेम, स्नेह, प्यार चिल्लाने के बाद भी समाज में इसी एक एहसास की पर्याप्त कमी पाई जा रही है.


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वंदेमातरम्

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